W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

चीन की हठधर्मिता

04:30 AM Nov 26, 2025 IST | Aditya Chopra
चीन की हठधर्मिता
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

भारत-चीन के सम्बन्ध 1962 के बाद से सामान्य नहीं रहे हैं जिसकी मूल वजह चीन की हठधर्मिता रही है क्योंकि वह दोनों देशों के बीच खिंची मैकमोहन रेखा का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता है। 1914 में यह रेखा भारत-तिब्बत व चीन के बीच खिंची थी मगर 1949 में आजाद होते ही चीन ने तिब्बत को कब्जा लिया था जिसके बाद चीन का रुख और भी ज्यादा हठीला हो गया और 1962 में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया और तिब्बत से लगा भारत का अक्साई चिन इलाका कब्जा लिया। इसके बाद से चीन के रुख में समय-समय पर कुछ परिवर्तन भी देखने को मिलता रहा परन्तु भारत का रुख हमेशा ही सह अस्तित्व का बना रहा और उसने हर चन्द कोशिश की कि चीन के साथ उसके सम्बन्ध मधुर बने रहे जिसके लिए दोनों देशों के बीच सीमा पर शान्ति व सौहार्द बनाये रखने के लिए कई समझौते भी किये गये परन्तु चीन ने अपनी हठधर्मिता के चलते कभी इनका पूरी निष्ठा के साथ सम्मान नहीं किया और यदाकदा भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण का क्रम जारी रखा। भारत की हर चन्द कोशिश रही कि इन विवादों का हल कूटनीतिक स्तर पर शान्तिपूर्ण तरीके से निकले किन्तु चीन इसके बावजूद अब तक अपनी आदत से बाज नहीं आता है और भारत के क्षेत्रों पर अपना दावा ठोकता रहता है।
1962 के बाद से भारत में जितनी भी सरकारों का गठन हुआ सभी ने चीन के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने के प्रयास किये और इस शृंखला में 2003 में सत्ता पर काबिज भाजपा नीत एनडीए सरकार के मुखिया स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार कर लिया। बदले में चीन ने सिक्किम को भारत का अंग मान लिया परन्तु इसके ठीक बाद चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोक दिया। उस समय वाजपेयी सरकार के तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार करने के कदम का देश के विपक्ष ने भी विरोध नहीं किया परन्तु जब 2003 में थोड़े ही दिनों बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश को अपने देश के नक्शे में दिखाया तो भारत की संसद में इसका तीव्र विरोध हुआ और विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ से लोकसभा व राज्यसभा दोनों में भारी हंगामा किया गया।
भारत सरकार द्वारा कड़ा विरोध पत्र लिखे जाने का चीन पर कोई असर नहीं पड़ा और इसके बाद भी वह अरुणाचल को अपना ही हिस्सा बताता रहा और अरुणाचल के निवासियों को चीन जाने के लिए भारत सरकार जो पासपोर्ट जारी करती थी उनके साथ वीजा को अलग प्रकार से नत्थी करके जारी करने की इसने नीति अपनाई और अरुणाचल वासियों को अपना नागरिक बताने की घृष्टता की। भारत द्वारा इसके विरोध का चीन पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और जब 2004 में केन्द्र में कांग्रेस नीत डाॅ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार का गठन हुआ तो इसने प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह द्वारा अरुणाचल में विकास योजना चलाने तक का विरोध किया और उनकी अरुणाचल यात्रा का भी बुरा मनाया। तब से लेकर आज तक चीन अरुणाचल के भारतीय नागरिकों के प्रति इसी प्रकार का रवैया अपनाता रहा है परन्तु हाल ही में पिछले 14 वर्ष से लन्दन में रहने वाली अरुणाचल मूल की एक भारतीय महिला प्रेमा थोंगडोक के साथ चीन ने अपने शंघाई हवाई अड्डे पर जिस प्रकार का व्यवहार किया उसे किसी भी सूरत में भारत स्वीकार नहीं कर सकता है। प्रेमा जी के भारतीय पासपोर्ट में उनका जन्म स्थान अरुणाचल प्रदेश दिखाया गया था। वह लन्दन से शंघाई होते हुए जापान जा रही थीं। शंघाई हवाई अड्डे पर सुरक्षा कर्मियों ने प्रेमा जी को 18 घंटे तक रोक कर रखा और उनसे कहा कि वह चीनी नागरिक हैं। उन्होंने बामुश्किल शंघाई स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास से सम्पर्क किया तब उनकी मदद के लिए भारतीय अधिकारियों का एक दल आया और उसने उनके पक्ष का दावा चीनी अधिकारियों के सामने रखा। चीनी अधिकारी जिद कर रहे थे कि वह चीनी हवाई सेवा की मार्फत जापान जायें क्योंकि वह चीनी नागरिक हैं। जबकि प्रेमा जी अरुणाचल के वेस्ट कमेंग जिले की रूपा तहसील की रहने वाली हैं।
इस घटना का भारत ने गंभीरता से संज्ञान लिया है और बीजिंग स्थित अपने दूतावास के माध्यम से कड़ा विरोध जताया है। नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास को भी इस बारे में सचेत किया है। सवाल यह है कि चीन एेसी हरकतें क्यों करता रहता है? इसका कारण यह है कि 2005 में चीन के साथ सीमा पर वार्ता के लिए जो उच्चस्तरीय तन्त्र स्थापित किया गया था उसका मोटा फार्मूला यह है कि सीमा क्षेत्र में जो स्थान जिस देश के शासन तन्त्र में चल रहा है वह उसी का हिस्सा माना जाये। इस वार्ता तन्त्र की अभी तक दो दर्जन से अधिक बैठकें हो चुकी हैं परन्तु कोई सर्वमान्य हल नहीं निकला है। इसमें भारत की ओर से इसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नेतृत्व करते हैं और चीन की ओर से इसके विदेश विभाग के समकक्ष मन्त्री। चीन ने जिस प्रकार 2020 में भारत के लद्दाख इलाके में अतिक्रमण किया था उसका मन्तव्य भी यह निकाला गया था कि चीन भारत-चीन के बीच बनी नियन्त्रण रेखा की स्थिति को बदलना चाहता है परन्तु भारत की ओर से इसका कड़ा प्रतिकार होने के बाद अब स्थिति तनावपूर्ण तो नहीं बल्कि सामान्य भी नहीं कही जा सकती क्योंकि लद्दाख में भारत व चीन की ओर से कम से कम पचास-पचास हजार फौजी तैनात हैं। इसके बावजूद चीन सीमावर्ती इलाकों में निर्माण कार्य करता रहता है। अरुणाचल को लेकर भी चीन का रुख सन्देहास्पद बना हुआ है। दरअसल यह चीन की हठधर्मिता ही है कि वह वार्ता तन्त्र के बावजूद एेसी बेहूदा हरकतें करता रहता है और भारत को पिन चुभोता रहता है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×