थम नहीं रहे बैंक घोटाले
किसी भी देश का बैंकिंग सिस्टम उसकी अर्थव्यवस्था की नींव होता है। बैंकों को ज्यादा…
किसी भी देश का बैंकिंग सिस्टम उसकी अर्थव्यवस्था की नींव होता है। बैंकों को ज्यादा नुकसान होने से देश के हर एक शख्स पर फर्क पड़ता है क्योंकि बैंकों में जमा राशि देश के नागरिकों की होती है। लोग सेविंग करके बैंकों में छोटा-बड़ा निवेश करते हैं। देश के लिए दुर्भाग्य की बात है कि यहां बड़ी राशि एनपीए घोषित कर दी जाती है वहीं कई बड़े कारोबारी जनता के पैसे लेकर फरार हो जाते हैं।
अभी हाल में महाराष्ट्र के न्यू इंडिया को-आपरेटिव बैंक में 122 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ। इस मामले में मुम्बई पुलिस ने न्यू इंडिया को-आपरेटिव बैंक के पूर्व जनरल हितेश मेहता को गिरफ्तार किया है। बाद में आरबीआई ने बैंक पर प्रतिबंध लगा दिया। इसी प्रकार पीएनबी घोटाला इसका इसी तरह विजय माल्या के मामले की सुनवाई लंदन के कोर्ट में चल रही है। 11,400 हजार करोड़ का पीएनबी घोटाला देश का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला है। इसका मुख्य आरोपी नीरव मोदी है जो देश छोड़कर भाग गए हैं। इसमें नीरव के मामा मेहुल चौकसी भी शामिल हैं। धोखाधड़ी के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के खिलाफ जांच कर रहा है।
एक आंकड़े के मुताबित देश के सरकारी बैंकों को घोटाले की वजह से 22,743 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा फ्रॉड आईसीआईसीआई बैंक में हुए हैं और इसके बाद एसबीआई का नंबर आता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में मुंबई के न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर निकासी की पाबंदी सहित कई प्रतिबंध लगाए हैं। इस निर्णय ने एक बार फिर इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि बैंकों की अक्षमता और कुप्रबंधन के कारण लोगों को किस प्रकार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बैंकों में जमा राशि पर ही तमाम लोगों का जीवन निर्भर करता है। इस बात को लेकर भी बहस चल रही है कि क्या भारत को अभी भी सहकारी बैंकों की आवश्यकता है, क्योंकि तकनीक की बदौलत वाणिज्यिक बैंकों की पहुंच का बहुत अधिक विस्तार हो चुका है। एक अन्य संबद्ध क्षेत्र जिस पर बहस करना उपयुक्त होगा वह यह है कि क्या ऐसे मामले में लोगों को ही मुसीबत झेलनी चाहिए जबकि यह अपर्याप्त नियामकीय निगरानी और संबंधित बैंक के कुप्रबंधन का नतीजा होता है। इस मामले में जमाकर्ताओं को बचाने के लिए पांच लाख रुपये तक की जमा राशि जमा बीमा एवं ऋण गारंटी कॉर्पोरेशन द्वारा गारंटीड होती है।
रिपोर्ट में कहा गया, केवल लगभग 43.1 फीसदी पहुंच योग्य जमा ही बीमित है। खबर है कि सरकार बीमा की सीमा बढ़ाने पर विचार कर रही है। लगातार उजागर होते बैंक घोटालों की लंबी फेहरिस्त यह बयान कर रही है कि देश की बैंकिंग व्यवस्था में नीतिगत और क्रियान्वयन स्तर पर बड़ी खामियां व्याप्त हैं। बैंक से ऋण आदि सेवाओं की अपेक्षा करते ही दस्तावेजीकरण के जिन्न का सामने प्रकट होना सामान्य बात है। घर, कार या कारोबार हेतु ऋण लेने जाएं तो बैंकों के अनेक चक्कर काटने पड़ते हैं। तमाम तरह के अभिलेखों की फरमाइश की जाती है। अथक प्रयासों के बाद कहीं जाकर ऋण मिलता है। अगर ऋण की एक किश्त भी जमा करने में विलंब हो जाए तो बैंक वाले फोन करने लगते हैं। अनेक बार तो बैंक से उपभोक्ता को मिल रही धमकी विषयक खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। कोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ता है।
लिहाजा आज आम आदमी यह सवाल पूछ रहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से बड़े-बड़े कारोबारियों को महज दो-तीन दिन में 280 करोड़ का लोन कैसे मिल जाता है? मतलब समस्या स्वामित्व की नहीं बल्कि निगरानी की है। आरबीआई का स्पष्ट निर्देश है कि जिसे ऋण दिया जा रहा है, उसका ट्रैक रिकाॅर्ड अच्छा हो लेकिन आरबीआई ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह भी देख लिया जाए कि उसे पूर्व में जारी एलओयू का भुगतान हो चुका है या नहीं अथवा उसे तभी एलओयू जारी किया जाए जब उसने पूर्व में जारी एलओयू का भुगतान कर दिया हो। यहां बैंकों को स्व विवेक पर छोड़ दिया। चूंकि स्व विवेक का उपयोग लोग अपने लाभ के लिए करते हैं, बैंकों ने भी वही किया। एक साधारण जमाकर्ता से यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह निरंतर बैंक की स्थिति का आकलन करेगा। यह नियामक का काम है और इसे नियामक को ही अंजाम देना चाहिए। बैंक खाता नागरिकों की बुनियादी जरूरत है और राज्य को उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
यकीनन इसके साथ संबद्ध लागत भी होगी। यह लागत जमाकर्ताओं, बैंकों और सरकार के बीच साझा की जा सकती है क्योंकि बैंकिंग व्यवस्था की स्थिरता अर्थव्यवस्था के सहज काम करने के लिए महत्वपूर्ण है। अगर जमाकर्ता को पता होगा कि उसकी राशि सुरक्षित है तो वे पैसे निकालने की हड़बड़ी नहीं दिखाएंगे। अमेरिका में सिलिकन वैली बैंक संकट में बीमा का विस्तार हर जमा तक किया गया जिससे बड़ा बैंकिंग संकट टाला जा सका। भारत में बीमा कवरेज बढ़ाने से सरकारी और निजी बैंकों के बीच समान अवसर बन सकेंगे।