Top NewsindiaWorldViral News
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabjammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariBusinessHealth & LifestyleVastu TipsViral News
Advertisement

संघ का वटवृक्ष होना

संघ के 100 साल पूरे, प्रधानमंत्री ने की जमकर सराहना…

11:30 AM Mar 31, 2025 IST | Aditya Chopra

संघ के 100 साल पूरे, प्रधानमंत्री ने की जमकर सराहना…

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता सम्भालने के बाद पहली बार नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मुख्यालय के दौरे के बाद सियासत का बाजार गर्म है। मीडिया इस दौरे के राजनीतिक अर्थ निकाल रहा है। कई तरह के सवाल हवाओं में उछाले जा रहे हैं कि क्या प्रधानमंत्री का दौरा संघ और भाजपा में तालमेल बढ़ाने के लिए किया गया? क्या भाजपा के नए अध्यक्ष के नाम पर अंतिम मोहर लग गई है? क्या औरंगजेब, राणा सांगा, संभल विवाद के बीच हिन्दुत्व की राजनीति को नई धार देने की कोई योजना है? नरेन्द्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत की इस मुलाकात की पृष्ठभूमि 2029 के चुनावों की कोई नई पटकथा तैयार करना है? इन तमाम सवालों के बीच प्रधानमंत्री ने माधव नेत्रालय के शिलान्यास के मौके पर संघ की जमकर सराहना की और संगठन को भारत की अमर संस्कृति का वटवृक्ष बताया।

उन्होंने स्मृति मन्दिर जाकर आरएसएस के संस्थापक डाक्टर हेडगेवार और माधव सदाशिव गोलवरकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। उल्लेखनीय है कि संघ इस वर्ष अपने 100 साल पूरे कर रहा है। संघ की स्थापना डाक्टर हेडगेवार ने 1925 में की थी। संघ की स्थापना के मूल में एक ही भाव था कि बतौर राष्ट्र भारत पुनः ऐसी स्थिति में आए जहां वह दुनिया का मार्ग दर्शन कर सके ले​किन इसके लिए पहले भारतीय समाज का रूपांतरण होना जरूरी था। समाज के रूपांतरण के लिए संघ ने दैनिक शाखाओं के जरिए व्यक्ति निर्माण का काम शुरू किया था। संघ रूपी बीज ने अब अपनी 100 साल की यात्रा पूरी करते हुए वटवृक्ष का रूप ले लिया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विचारों के जिस आंगन में आठ वर्ष की आयु में कदम रख कर जीने की कला सीखी। संघ के संस्कार ग्रहण कर ही उनके दिल में राष्ट्रभक्ति की ज्योति प्रज्ज्वलित हुई। उसी संघ के आंगन में नरेन्द्र मोदी के जाने पर अलग-अलग कयास लगाने की जरूरत नहीं है। इस पर ज्यादा आश्चर्य भी जताने का कोई औचित्य मुझे नजर नहीं आता। क्योंकि संघ उनकी राजनीति की आत्मा है। उनका संघ से रिश्ता दशकों पुराना है। नरेन्द्र मोदी के साथ संघ हमेशा चट्टान की तरह खड़ा रहा है। नरेन्द्र मोदी संघ के प्रचारक बने फिर भाजपा में उनका प्रवेश हुआ। उन्हें गुजरात में संगठन की जिम्मेदारी मिली। 2001 में जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो संघ का उन्हें भरपूर समर्थन मिला। संघ की ही रणनीति का परिणाम था कि 2014, 2019 और 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सरकार बनाई और राजनीति के फलक पर नया इतिहास रच दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि संघ भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना को लगातार ऊर्जावान बना रहा है। स्वयं सेवक के लिए सेवा ही जीवन है और स्वयं सेवक देव से देश और राम से राष्ट्र का मंत्र लेकर चल रहे हैं। संघ की प्रासंगिकता समसामयिक संदर्भों में क्या है? इसके लिए संघ रूपी वटवृक्ष को समझना आवश्यक है। शिक्षा से लेकर चिकित्सा तक और धर्मजागरण से लेकर स्वदेशी तक सामाजिक जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां इस वटवृक्ष की शाखाएं पुष्पित, पल्लवित न हुई हों। सामान्य तौर पर लोग इस वटवृक्ष को संघ परिवार भी कहते हैं। हालांकि संघ का खुद ये मानना है कि ऐसा कोई संगठनों का समूह उसने तैयार नहीं किया जिसे संघ परिवार कहा जाए। समय-समय पर जिस क्षेत्र में भी राष्ट्रहित में प्रयास करने की जरूरत महसूस हुई वहां संघ के स्वयं सेवकों ने अपनी कोशिशें कीं और अंततः कार्य को सतत् प्रवाह व गतिशीलता देने के लिए एक संगठनात्मक ढांचा शुरू किया गया।

आरएसएस की स्थापना राष्ट्रवादी आंदोलन को एक मजबूत सांस्कृतिक आधार देने के लिए की गई थी। हमारी सदियों पुरानी प्राचीन सभ्यताएं जो धर्म, अहिंसा और भक्ति के सिद्धांतों पर आधारित थी उपनिवेशवाद के शोर में अपनी आवाज खो रही थी, स्वतंत्रता पूर्व भारत में मुसलमान देश के बाकी हिस्सों के समान वंश और डीएनए और जातीयता होने के बावजूद आश्वस्त थे कि खिलाफत आंदोलन नामक एक समर्थक-खिलाफत आंदोलन उनके हितों का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करता है। यह ब्रिटिश साम्राज्यवादी दर्शन के विभाजन और शासन के अनुकूल था। आरएसएस ने एक राष्ट्रवादी आंदोलन के तत्वावधान में भारत के लोगों को एक सांस्कृतिक छत्र के नीचे एकजुट करने का प्रयास किया और यह उन अभिजात्य लोगों को बहुत पसंद नहीं आया, जिन्होंने अपनी सांस्कृतिक पहचान को त्याग कर अपनी विदेशी शिक्षा और पश्चिमी मूल्यों के सम्पर्क में पश्चिम की नकल करने के पक्ष में थे।

अपनी समृद्ध विरासत से मुंह मोड़ते हुए उन्हें यकीन दिलाया गया कि भारतीय मूल्य आदिम और ​पिछड़े हैं और देश को केवल हिन्दू जीवनशैली की निन्दा करके ही बचाया जा सकता है। 100 साल की यात्रा में संघ पर बार-बार प्रतिबंध लगाए गए लेकिन उसके खिलाफ आरोप पूरी तरह से निराधार पाए गए। कौन नहीं जानता कि 1947 में संघ के स्वयं सेवकों ने कश्मीर सीमा पर बगैर किसी प्रशिक्षण के पाकिस्तान सेना की गतिविधियों पर नजर रखी थी और पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए शिविर लगाए, भोजन की व्यवस्था की थी। 1962 में भारत-चीन हमले के दौरान सैनिक आवाजाही मार्गों की यातायात व्यवस्था, रसद और आपूर्ति में मदद स्वयं सेवकों ने की थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को ​शामिल होने का न्यौता दिया था।

1965 के युद्ध में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिल्ली का यातायात नियंत्रण संघ के स्वयं सेवकों को सौंप दिया था। स्वयं सेवकों ने कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम भी किया था। देश में प्राकृतिक आपदाओं के समय सबसे पहले पहुंचने वाले संघ के स्वयं सेवक ही रहे। भयंकर चक्रवात हो या भोपाल की गैस त्रासदी, कारगिल युद्ध हो या उत्तराखंड की केदारनाथ त्रासदी, संघ ने राहत और बचाव का काम सबसे आगे रहकर ​किया। संघ अलग-अलग सामाजिक गतिविधियों के लिए एक लाख से ज्यादा प्रकल्प चलाता है। इन प्रकल्पों के तहत शिक्षा से लेकर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए काम किए जाते हैं। इन गतिविधियों के पीछे समुदाय की मजबूत स्वयंसेवी भावना है। राष्ट्रीय सेविका समिति एक मजबूत महिला शाखा भी है। संघ के स्वयं सेवक जीवन के हर क्षेत्र में सेवा करके मां भारती की सेवा कर रहे हैं। तमाम चुनौतियों के बावजूद संघ लगातार विस्तार पा रहा है। ऐसे वटवृक्ष को हम नमन करते हैं।

Advertisement
Advertisement
Next Article