‘लालटेन’ से ‘लैपटॉप’ की ओर तेजी से बढ़ता बिहार!
युद्ध, महंगाई, मंदी से जूझती दुनिया में भारत को लेकर सकारात्मक आर्थिक संकेत मिलना केवल आकस्मिक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित बदलाव का नतीजा है। अच्छी बात यह है कि भारत की आर्थिक सफलता की कहानियां अब केवल मुंबई, बेंगलुरु या दिल्ली जैसे महानगरों तक सीमित नहीं रही हैं। परिवर्तन की असली पटकथा अब बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में लिखी जा रही है। ईमानदारी की बात है कि बिहार आज भारत के पटल पर बड़ा, दमदार, जानदार और शानदार राज्य बन कर उभरा है।
बिहार, जिसे कभी देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता था, अब आर्थिक पुनर्जागरण की मिसाल बनता जा रहा है। हाल ही में पटना में आयोजित एक विशेष औद्योगिक संवाद में देश की 55 आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने हिस्सा लिया। ये कंपनियां राज्य में निवेश की संभावनाएं टटोल रही थीं। ड्रोन, डेटा सेंटर, सोलर उपकरण, लैपटॉप निर्माण और सॉफ्टवेयर सेवाओं से जुड़ी कंपनियों ने जिस उत्साह से बिहार की नई नीतियों की सराहना की, वह बताता है कि राज्य अब ‘लालटेन’ से ‘लैपटॉप’ की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा निवेशकों के लिए 70 प्रतिशत तक प्रोत्साहन राशि देने की नीति, सिंगल विंडो क्लीयरेंस की व्यवस्था और निवेशकों के साथ संवाद की तत्परता ने उद्योग जगत को आकर्षित किया है। इस बार बदलाव केवल कागजों तक सीमित नहीं है, बल्कि ज़मीन पर भी दिखने लगा है। एक बार पूर्व प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि बिहार का दिमाग भारत को ही नहीं, विदेशों को भी तरक्की प्रदान कर रहा है, क्योंकि यहां के इंजीनियर, पत्रकार, शिक्षक आदि सभी सुपर ब्रेन हैं और अगर यहां के मजदूर बिहार वापस आ जाएं तो भारत के विकास का भट्ठा बैठ जाएगा।
पिछले साल दिसंबर में बिहार की राजधानी पटना में आयोजित इनवेस्टमेंट समिट के दौरान अडानी समूह, सन पेट्रोकेमिकल्स और कई अन्य बड़ी-छोटी कंपनियों ने राज्य में 1.81 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने का वादा किया। यह निवेश नवीकरणीय ऊर्जा, सीमेंट, खाद्य प्रसंस्करण और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में होगा। इससे पहले 2023 में आयोजित पहले निवेशक सम्मेलन में बिहार में 50,300 करोड़ रुपये के निवेश का वादा मिला था।
सन पेट्रोकेमिकल्स 36,700 करोड़ रुपये ऊर्जा
परियोजनाओं, जैसे पंप हाइड्रो और सौर संयंत्रों में निवेश करेगी। अडानी समूह, जो राज्य में सबसे बड़ा निजी निवेशक है, ने लगभग 28,000 करोड़ रुपये निवेश करने का वादा किया है। यह निवेश एक अत्याधुनिक थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने, सीमेंट उत्पादन क्षमता बढ़ाने, खाद्य प्रसंस्करण और लॉजिस्टिक्स व्यवसायों के विस्तार में किया जाएगा।
दरअसल बिहार में आर्थिक चेतना का एक नया अध्याय निवेशकों की भागीदारी से भी खुल रहा है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच वर्षों में बिहार में शेयर बाजार में निवेश करने वाले लोगों की संख्या 0.7 लाख से बढ़कर 52 लाख हो गई है। यह 68 गुना की वृद्धि न केवल देश में सबसे अधिक है, बल्कि यह दर्शाता है कि अब राज्य की जनता आर्थिक निर्णयों को लेकर अधिक जागरूक और आत्मनिर्भर होती जा रही है। यही नहीं, म्यूचुअल फंड में बिहार के निवेशक 89 प्रतिशत हिस्सा इक्विटी योजनाओं में लगा रहे हैं, जो यह संकेत देता है कि उन्हें बाजार की चाल और लाभ-हानि की समझ अब बेहतर हो चुकी है।
इस बदलाव के कई आयाम हैं। एक तो यह कि अब सरकारी नौकरी को ही एकमात्र विकल्प मानने की मानसिकता में कमी आई है। दूसरा, यह कि डिजिटलीकरण और मोबाइल एप आधारित वित्तीय सेवाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच बना ली है। जेरौडा, ग्रो और अपस्टाक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स ने न केवल जानकारी को सहज बनाया है, बल्कि निवेश को भी सरल बना दिया है। आज समस्तीपुर का एक छोटा कारोबारी और दरभंगा की एक गृहिणी म्यूचुअल फंड में निवेश कर रही है। यह बदलाव छोटे दिख सकते हैं लेकिन जब इन्हें करोड़ों लोगों की आदत में शुमार कर लिया जाए तो इसका प्रभाव देश की पूरी आर्थिक संरचना पर पड़ता है। बिहार के इस बदलाव का संबंध शिक्षा और सूचना तक पहुंच से भी है। बीते एक दशक में राज्य में उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में वृद्धि हुई है। स्मार्टफोन और इंटरनेट ने ग्रामीण युवाओं को वैश्विक दुनिया से जोड़ा है। सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे माध्यमों ने जानकारी को लोकतांत्रिक बना दिया है। अब वित्तीय निर्णय केवल विशेषज्ञों का क्षेत्र नहीं रहा। आम जनता भी शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, बीमा और टैक्स प्लानिंग जैसी चीजों में रुचि ले रही है।
यह समझना भी जरूरी है कि भारत की आर्थिक उन्नति केवल जीडीपी के आंकड़ों या बाजार सूचकांकों से नहीं मापी जा सकती। यह बदलाव तब स्थायी और प्रभावी होगा जब देश के सभी हिस्से इस विकास में समान भागीदार बनें। बिहार जैसे राज्य जिनकी दशकों तक विकास दर कम रही, यदि तेजी से ऊपर उठते हैं तो यह भारत के लिए सामाजिक संतुलन और क्षेत्रीय न्याय का संकेत भी होगा। सेंसेक्स का एक लाख तक पहुंचना महज बाजार की उपलब्धि नहीं होगा, बल्कि यह उस सामूहिक प्रयास की सफलता होगी जिसमें देश के छोटे शहरों, गांवों, कस्बों और उनके नागरिकों का श्रम, शिक्षा और संकल्प शामिल होगा।
यह जरूरी है कि नीति निर्धारण में बिहार जैसे राज्यों को केवल लाभार्थी के रूप में नहीं, बल्कि साझेदार के रूप में देखा जाए। उनकी समस्याएं, संरचनात्मक बाधाएं, कौशल विकास की ज़रूरतें और उद्योगिक आधारभूत ढांचे की कमी को दूर करने के लिए केंद्र और राज्य मिलकर काम करें। भारत यदि वैश्विक आर्थिक शक्ति बनना चाहता है तो उसे बिहार जैसे राज्यों को शक्ति केंद्र बनाना होगा। विकास का मॉडल अब महानगरों तक सीमित नहीं रह सकता। वह दरभंगा से भी निकलेगा, और भागलपुर से भी। वह आरा की गलियों से होकर वैश्विक मंच तक पहुंचेगा।
अर्थव्यवस्था की यह नई कहानी केवल आंकड़ों की नहीं, आत्मविश्वास की भी है और यह आत्मविश्वास तब तक टिकाऊ रहेगा जब देश का हर हिस्सा, हर वर्ग और हर नागरिक इस यात्रा का सहभागी बने। सेंसेक्स एक लाख कब पहुंचेगा इसे लेकर अर्थशास्त्रियों के बीच बहस होती रहे लेकिन अगर भारत के गांव और कस्बे आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं तो यही असली आर्थिक क्रांति है। बिहार इसकी मिसाल बन चुका है। आज का बिहार भारत का ताज है।