बिहार का ‘आदर्श’
बिहार ज्ञान और जनक्रांति की धरती है। बिहार ने अध्यात्म सभ्यता, संस्कृति को सहेज कर रखा है। बिहार वह भू-भाग है जिसके बिना भारत के इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती। बिहार में ही चाणक्य जैसा राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ, आर्यभट्ट जैसा वैज्ञानिक, सम्राट अशोक जैसा शासक और सिखों के दशम गुरु गुरु गोबिंद सिंह जैसे साहसी वीर पैदा हुए हैं। दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी नालंदा विश्वविद्यालय बिहार में ही स्थापित हुई। बिहार के लोगों के बुद्धि कौशल के बारे में मशहूर है कि शिक्षा के मामले में बिहार के लोग काफी कुशल होते हैं लेकिन बिहार को लेकर के आम धारणाएं अच्छी नहीं हैं। बिहार के लोग बुद्धिमान और मेहनती हैं, ऐसा हर जगह सुना जाता है। इसके बावजूद बिहार गरीब और पिछड़ा राज्य है, यह भी सुना जाता है। ज्ञान भौगोलिक परिस्थितियों में तय होने वाला विषय कैसे हो सकता है। पहनावा, खान-पान, घरों के प्रकार, भूगोल द्वारा तय हो सकते हैं लेकिन लोगों के ज्ञान का पैमाना धारणाओं से तय नहीं किया जा सकता। गरीब और पिछड़े राज्य ने डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जैसे विद्वान दिए हैं तो वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे सफल गणितज्ञ भी दिए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत को विश्व गुरु बनाने में बिहार के लोगों की बहुत बड़ी भूमिका है। बिहार में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं।
गरीबी में पले-बढ़े 18 वर्षीय छात्र-अन्वेषक आदर्श कुमार को बुधवार को लंदन में एक समारोह में एक लाख अमेरिकी डॉलर के 'ग्लोबल स्टूडेंट प्राइज 2025' का विजेता घोषित किया गया। आदर्श को 148 देशों से प्राप्त लगभग 11,000 नामांकनों और आवेदनों में से इस वार्षिक पुरस्कार के लिए चुना गया। यह पुरस्कार ऐसे असाधारण छात्र को दिया जाता है जिसने शिक्षा और समग्र समाज पर वास्तविक प्रभाव डाला हो। बिहार के चंपारण में जन्मे आदर्श का पालन-पोषण अकेले उनकी मां ने किया है। उनकी मां ने आदर्श की पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए दूसरे के घरों में झाड़ू-पोछा का काम किया। आदर्श जयपुर के जयश्री पेरीवाल इंटरनेशनल स्कूल (जेपीआईएस) में 30 लाख रुपये की पूर्ण छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले पहले छात्र बने और अब वह दूसरों को भी इसे प्राप्त करने के लिए मदद करते हैं। आदर्श को यूट्यूब और गूगल से छोटी उम्र में ही 'कोडिंग' और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी का तब पता चला जब उनकी मां ने उन्हें लैपटॉप दिलाने के लिए अपनी जीवन भर की बचत खर्च कर दी थी। उन्होंने आठवीं कक्षा में अपना पहला उद्यम शुरू किया, जो असफल रहा। लेकिन उनके दूसरे उद्यम, 'मिशन बदलाव' ने 1,300 परिवारों को आयुष्मान भारत कार्ड, पेंशन, कोविड-19 टीके और स्कूल नामांकन जैसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में मदद की।
आदर्श की कहानी उसकी व्यक्तिगत जीत से कहीं ज्यादा है। उसकी कहानी एक युवा के हौंसले, कुछ कर दिखाने का जुनून और धैर्य का प्रतीक है। ऐसे युवाओं की आवाज सुनी जानी चाहिए जिनसे भारत के युवा प्रेरित हो सकें। आदर्श सिर्फ 1000 रुपए लेकर आईआईटी, जेईई की कोचिंग लेने कोटा चला गया था। तब उसके पास कोचिंग के लिए पैसे भी नहीं थे तो उसने मुफ्त लाइब्रेरी के वाई-फाई का इस्तेमाल कर ज्ञान हासिल किया। बिहार सर्वाधिक युवा आबादी वाला राज्य है। यहां करीब 60 प्रतिशत लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। इन युवाओं में असीम क्षमता है। जो विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। हाल ही में जहानाबाद के आभाष कुमार को भारत सरकार के युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय द्वारा भारत सरकार का युवा ‘‘आइकन’’ चुना गया। आभाष कुमार ने सामाजिक नवाचार, डिजिटल साक्षरता, शिक्षा जागरूकता, ग्रामीण विकास और युवाओं के संगठित प्रयासों के माध्यम से समाज में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
बिहार के अनेक युवा ऐसे हैं जिनके परिवार गरीब होते हुए भी उन्होंने आईएएस की परीक्षा पास की है। जरूरत है देश के युवाओं को ऐसे मंच उपलब्ध कराने की जहां उनकी प्रतिभा को निखारा जा सके और फिर उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल किया जा सके। देशभर में ऐसी योजनाओं की जरूरत है जिनके तहत प्रतिभाओं की खोज की जाए और उन्हें शिक्षा के लिए हर तरह की सहायता दी जाए। कुछ वर्ष पहले पटना के जिस युवा को गूगल ने 1 करोड़ 20 लाख रुपए सालाना वेतन पर नौकरी दी थी उसका नाम भी आदर्श ही है। उसने आईआईटी रुड़की से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी। ऐसे युवा बिहार के लिए ही नहीं बल्कि देशभर के युवाओं के लिए ‘‘आइडल’’ बन सकते हैं। संदेश बहुत सरल है कि बदलाव भीतर से शुरू होता है। दुनिया उन लोगों का सम्मान करती है जो ऊंची उड़ान भरने की हिम्मत रखते हैं।