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जेन जेड का आक्रोश?

06:00 AM Oct 03, 2025 IST | Aakash Chopra

आज दुनियाभर में जेनरेशन जेड की चर्चा है। अक्सर युवाओं के बारे में धारणा है कि यह जेनरेशन दिनभर मोबाइल हाथ में लिए घूमती रहती है। उनकी उंगलियां मोबाइल, लैपटॉप या टैबलेट पर चलती रहती हैं। जेनरेशन जेड किताबों से दूर हो गई है। इस पीढ़ी का समाज से कोई सीधा रिश्ता नहीं रहा, कोई संवाद नहीं रहा। वे अपनी दुनिया में रहते हैं लेकिन ​दुनिया की राजनीति, समाज और सत्ता के समीकरणों में सबसे बड़ा परिवर्तन जिस ताकत के कारण आया है वह है जेन जेड की यह पीढ़ी। जेनरेशन ज़ेड की चिंता को बढ़ाने वाली बात यह है कि वे अपने माता-पिता या दादा-दादी की तुलना में उसी उम्र में अलग तरह से समाचारों के संपर्क में आते हैं; युवा लोग सामाजिक मुद्दों और घटनाओं से जुड़ी सामग्री का लगभग लगातार उपभोग कर रहे हैं। सिर्फ़ एक स्मार्टफ़ोन के ज़रिए, लोग सोशल मीडिया साइट्स, सर्च इंजन, समाचार साइट्स और टीवी के ज़रिए 24/7 रिपोर्टिंग का फुटपाथ पा सकते हैं।

यह पीढ़ी, जो 1997 से 2012 के बीच जन्मी मानी जाती है, डिजिटल युग की संतान है। इसके हाथ में स्मार्टफोन है, इसकी भाषा सोशल मीडिया है और इसकी शक्ति टेक्नोलॉजी है। यह पीढ़ी पारंपरिक विचारधाराओं और बड़े नेताओं के भाषणों की जगह अब नए औज़ारों के जरिये सत्ता को चुनौती देती है। इतिहास गवाह है कि फ्रांसीसी क्रांति रोबेस्पियर जैसे वक्ताओं की वजह से हुई और क्यूबा की क्रांति फिदेल कास्त्रो जैसे नेताओं के भाषणों से उभरी, लेकिन आज क्रांति का समीकरण पूरी तरह बदल चुका है। अब आंदोलन का केंद्र है- युवा का गुस्सा सोशल मीडिया टेक्नोलॉजी। 21वीं सदी में जन्मी जेन ज़ेड पीढ़ी केवल उपभोक्ता या दर्शक नहीं है, बल्कि डिजिटल युग की असली शक्ति और मानसिकता की प्रतीक बन चुकी है। यह पीढ़ी इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के साथ पली-बढ़ी है, इसलिए इसकी सोच वैश्विक और तात्कालिक है। जेन ज़ेड तर्कसंगतता, पारदर्शिता और तेजी से बदलती परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता रखती है। जेन ज़ेड वह पीढ़ी है जिसने किताबों से ज्यादा स्क्रीन देखी, पोस्टकार्ड से ज्यादा ईमेल और सोशल मीडिया पोस्ट लिखी और अखबार से ज्यादा ​ट्वीटर/एक्स पर खबरें पढ़ीं।

इस पीढ़ी की सबसे बड़ी विशेषता है स्पीड- यह बदलाव को जल्दी स्वीकार करती है और उतनी ही जल्दी विद्रोह भी खड़ा कर देती है। जेन ज़ेड पारंपरिक सत्ता ढांचे से सवाल पूछती है और पारदर्शिता की मांग करती है। जलवायु परिवर्तन से लेकर भ्रष्टाचार, लोकतंत्र से लेकर लैंगिक समानता तक, यह हर विषय पर मुखर है। ज़्यादातर सरकारें भ्रष्ट होती हैं। जैसे ही संचित भ्रष्टाचार अपनी सीमा पार कर जाता है, यह ख़तरनाक क्षेत्र में पहुंच जाता है, और बड़े पैमाने पर अशांति पैदा करने के लिए बस एक चिंगारी, जैसे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध, की ज़रूरत होती है। ऐसी अशांति को लगभग हमेशा विदेशी मदद मिलती है। जिस देश में भागता हुआ प्रधानमंत्री शरण मांगता है, वह आपको बताता है कि किस अन्य देश का इस अशांति को भड़काने में हाथ था, बांग्लादेश और श्रीलंका इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं। अन्ना हज़ारे आंदोलन के दौरान भारत में भी ऐसे ही हालात थे। इस साल कई देशों में जेनरेशन जेड का प्रदर्शन देखने को मिला। शुरुआत इंडोनेशिया से हुई थी और अब पेरू में युवाओं ने मोर्चा संभाला है। 27 सितंबर को पूरू की राजधानी लीमा में हजारों युवाओं ने राष्ट्रपति दीना बोलुआर्ते के खिलाफ नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन किया।

इस प्रदर्शन में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुई। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज भी किया, जिसके जवाब में युवाओं ने पथराव किया। दरअसल, ये विरोध 20 सितंबर को पेंशन प्रणाली में किए गए बदलावों के बाद शुरू हुए। नए नियम के अनुसार, पेरू में 18 साल से अधिक उम्र के हर व्यक्ति को किसी न किसी पेंशन कंपनी से जुड़ना होगा। इसके अलावा राष्ट्रपति बोलुआर्ते और संसद के खिलाफ लंबे समय से जनता में असंतोष बना हुआ है। इसी साल 31 अगस्त से लेकर 1 सितंबर के बीच इंडोनेशिया में युवाओं ने सांसदों के बढ़े भत्ते के खिलाफ आंदोलन किया था। इस प्रदर्शन में 8 लोगों की मौत हो गई थी। आंदोलन के बाद दबाव में राष्ट्रपति प्रबोवो ने आवास भत्ते का फैसला रोक दिया था। 1 सितंबर को नीदरलैंड में भी युवाओं ने आंदोलन किया था। इजराइल की मदद करने की बात को लेकर युवाओं का गुस्सा फूटा था। प्रदर्शन के बाद सरकार ने नीति बदलने का वादा किया था। 8 से 13 सितंबर के बीच नेपाल में युवाओं ने जोरदार प्रदर्शन किया था। सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार को लेकर युवाओं ने संसद का घेराव किया, आगजनी की। इस प्रदर्शन के दौरान 72 लोगों की मौत हुई और 2113 लोग घायल हुए। 10 सितंबर को फ्रांस में भी युवाओं ने बजट कटौती के विरोध में हड़तालें की।

हालांकि, सरकार अभी अडिग है। 15 से लेकर 17 सितंबर के बीच तिमोर-लेस्ते में सांसदों की जीवनभर पेंशन और कारों की योजना के खिलाफ जेनरेशन जेड ने प्रदर्शन किया। सरकार को दबाव में प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा और युवाओं की जीत हुई। 21 सितंबर फिलीपींस में बाढ़ नियंत्रण भ्रष्टाचार के खिलाफ करीब 1 लाख लोग जुट गए। इस आंदोलन के दौरान दो लोगों की मौत हुई, 205 लोग घायल हुए और 216 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई। दबाव में स्पीकर सीनेट-चीफ को इस्तीफा देना पड़ा। 25 सितंबर को मेडागास्कर में बिजली-पानी संकट और भ्रष्टाचार के विरोध में प्रदर्शन किया गया। इस दौरान 5 लोगों की मौत होने से युवा भड़के हुए हैं। मेडागास्कर के बाद अब मोरक्को में विरोध-प्रदर्शन और हिंसा का दौर देखा जा रहा है। मोरक्को में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी बुधवार को लगातार पांचवीं रात सड़कों पर उतरे हैं। विरोध प्रदर्शन में हिंसा और तोड़फोड़ के बाद सुरक्षाबलों ने बल प्रयोग किया है और सैकड़ों की संख्या में गिरफ्तारियां की गई हैं। भविष्य में जीत उसी की होगी जो जेन जेड की भावनाओं को समझे और युवाओं की ऊर्जा का सम्मान भी करे।

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