पंजाब में फिर भाजपा-अकाली गठबंधन ?
पंजाब में इस समय जो माहौल बन चुका है वह बेहद ही चिन्ताजनक है। पंजाब एक समय…
पंजाब में इस समय जो माहौल बन चुका है वह बेहद ही चिन्ताजनक है। पंजाब एक समय सबसे सुखद, खुशहाल और शान्तिप्रिय राज्य हुआ करता था मगर वक्त के साथ-साथ सब कुछ बदलता चला गया। सभी राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने पंजाब के बजाए अपने निजी स्वार्थों को आगे रखा जिसका प्रणाम आज यह निकल कर आ रहा है कि पंजाब में भी दूसरे राज्यों की भान्ति लूटपाट, डकैती, हत्या यहां तक कि बलात्कार जैसे मामले आम बात हो गए है। इसके लिए जिम्मेवार किसी एक को नहीं ठहराया जा सकता।
किसानी मसलों का हल निकालने के लिए मुख्यमंत्री पंजाब ने केन्द्र से किसी तरह की बातचीत करने के बजाए उल्टा जिस प्रकार किसानों को खदेड़ा गया उससे भी पंजाब के लोग आहत हुए। पंजाब के लोगों को शायद अहसास होने लगा है कि पंजाब की बेहतरी के लिए केन्द्र से तालमेल रखने वाली सरकार को लाना होगा तभी पंजाब तरक्की की राह पर अग्रसर हो सकता है।
भाजपा का वोट शेयर हालांकि पहले से काफी मजबूत हुआ है पर बिना अकाली दल के उसका सरकार बनाना संभव नहीं है वहीं अकाली दल भी बिना भाजपा के किसी सूरत में सरकार नहीं बना सकता। जिसके चलते राजनीतिक माहिरों का मानना है कि चुनाव से पूर्व दोनों दलों को आपसी तालमेल बिठाते हुए मिलकर चुनाव लड़ना होगा। अकाली दल के नेता तो हमेशा से ही भाजपा से नाता जोड़ने पर उतारू दिखे हैं मगर अब तो भाजपा के अन्दर से भी आवाज आती दिख रही है कि बिना गठजोड़ के सरकार नहीं बन सकती। सुखबीर सिंह बादल के पुनः अध्यक्ष चुने जाने से हो सकता है कि टूटी तारें फिर जुड़ जाएं मगर सवाल यह भी बनता है कि अकाली दल ने बन्दी सिखों की रिहाई, किसानी बिल यां अन्य जिन मुद्दों के चलते नाता तोड़ा था बिना उनके हल के गठजोड़ करना अकाली दल को नुकसान भी पहुंचा सकता है।
जत्थेदार अकाल तख्त के बेबाक बोल
श्री अकाल तख्त साहिब के मौजूदा जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज जिन्हें लोग विवादित जत्थेदार यां एक दल का जत्थेदार भी कहते दिख रहे हैं मगर उन्होंने जिस बेबाकी और दिलेरी के साथ खालसा साजना दिवस के मौके पर केशगढ़ साहिब से संगत को सम्बोधन किया उसे देखकर ऐसा महसूस होने लगा कि आज कौम को वाक्य ही ऐसे जत्थेदार की आवश्यकता है जो सिख पंथ में सिखी जजबे को कायम रख सके। आमतौर पर देखा जाता है कि जत्थेदार की कुसी पर बैठते ही लोग सरकारी लाभ, निजी सुरक्षा पाने में अपना सारा समय निकाल देते हैं।
आज युवा वर्ग सिखी से दूर होता चला जा रहा है। शायद ही कोई सिख परिवार बचा हो जिसमे महिलाएं केशों की बेदबी ना करती हों। ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि सिखों का मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं है। कीर्तन दरबारों में महंगे-महंगे कीर्तनियों से कीर्तन सुनकर, लगर खाकर लोग घरों में आ जाते हैं मगर उसका लाभ क्या हो रहा है। पहले समय में परिवार बड़े हुआ करते, लोग दादी-नानी से सिख इतिहास, गुरु साहिबान के बारे में साखियां सुनते जो आज नहीं हैं। मगर जत्थेदार अकाल तख्त साहिब ने इस पर भी संज्ञान लेते हुए सभी महिलाओं को अपने बच्चों को घरों में सोने से पूर्व साखियां सुनाने की बात कही। जिस बच्चे को बचपन से ही अपने गौरवमई विरसे की जानकारी मिल जाए वह चाहकर भी सिखी से दूर नहीं जा सकता।
सिखों के लटकते मसलों का समाधान होना चाहिए
सिख समाज के कई ऐस मसले हैं जिनका समाधान अगर मोदी सरकार के रहते ना हुआ तो शायद कभी हो ही नहीं सकता क्योंकि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी सिख मसलों के प्रति हमेशा गंभीर रहते हैं। उन्हीं की बदौलत आज साहिबजादों की वीरता का इतिहास देश के हर बच्चे को पता चल सका है। इसी प्रकार गुरु तेग बहादुर के 350वें शहीदी पर्व को मनाने के लिए सरकार गंभीरता पूर्वक विचार कर रही है जिससे हर देशवासी को पता चलेगा कि गुरु तेग बहादुर जी की शहादत क्यों, कैसे और किन कारणों से हुई थी। अगर वाक्य में ही ऐसा हो जाता है तो आगे से शहीदी पर्व को केवल सिख ही नहीं बल्कि हर हिन्दुस्तानी गर्व से मनाने की चाह रखेगा।
सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनैशनल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भारत विकास परिषद के सदस्य अमनजीत सिंह बख्शी का मानना है धार्मिक कमेटियों को भी चाहिए कि इसे केवल सिखों तक ही सीमित ना रखा जाए बल्कि गैर सिखों को भी साथ लिया जाए और जो भी कार्यक्रम करे उनमें खासकर कश्मीरी पंडितों को भी शामिल किया जाए जिनकी फरियाद पर गुरु साहिब ने अपनी शहादत देकर हिन्दू धर्म की रक्षा की।
उन्होंने हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह से मिलकर गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी हरिद्वारा, गुरुद्वारा डांगमार सिक्किम, जैसे सिखों के लम्बे समय से लटकते मसलों के समाधान की मांग की है।
सिख धर्म में सहज पाठ की महत्वता
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने देहधारी प्रथा को समाप्त करते हुए गुरु ग्रन्थ साहिब को गद्दी सौंप हर सिख को उन्हें गुरु मानने का आदेश दिया तभी से हर सिख गुरु ग्रन्थ साहिब को गुरु के रूप में स्वीकार करता आ रहा है। सिखों के परिवारों में होने वाले खुशी गमी के कार्यक्रमों में लोग गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ करवाते हैं। गुरुद्वारांें में भी निरन्तर पाठ चलते रहते हैं मगर आम तौर पर लोग अखण्ड पाठ साहिब को अधिक महत्वता देते हैं क्योंकि आज के समय में लोगों के पास समय का आभाव है दूसरा ज्यादातर सिख गुरु ग्रन्थ साहिब से जुड़ ही नहीं पाए हैं। वही दूसरी ओर सहज पाठ की अलग महत्वता है जिसकी कोई समय सीमा नहीं होती आप जितने मर्जी समय के साथ इसका पाठ कर सकते हो। वैसे हर सिख को अपने जीवन में एक सहज पाठ अवश्य करना चाहिए ताकि उसे गुरु की बाणी को समझने का मौका मिल सके। इसी के चलते दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा संगत को सहज पाठ से जोड़ने के उदेश्य से 3.5 लाख सहज पाठ गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित होकर करवाने का लक्ष्य रखा है जो कि कमेटी का सराहनीय कदम है। जब इसकी घोषणा की गई तो विरोधियों को लग रहा था कि कमेटी पदाधिकारी शायद इसका हिस्सा नहीं बनेंगे मगर कमेटी अध्यक्ष से लेकर अन्य पदाधिकारियों ने ना सिर्फ स्वयं बल्कि अपने पारिवारिक सदस्यों के संग इसका हिस्सा बनकर सहज पाठ आरंभ किए जिससे विरोधियों के मुंह बंद हो गए। वैसे देखा जाए तो यह किसी पार्टी यां दल का नहीं समूचे पंथ का पर्व है इसलिए पार्टीवाद से ऊपर उठकर बिना किन्तु-परन्तु किए सभी को इसमें अपना योगदान देना चाहिए।