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बीएलओ एवं चुनाव आयोग

06:15 AM Nov 24, 2025 IST | Aditya Chopra
बीएलओ

भारत के चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक सन्देहों से परे रही है परन्तु हालिया वर्षों के दौरान इसकी साख वह नहीं रही है जिसके लिए यह विश्व के लोकतान्त्रिक देशों में जाना जाता था। पूरे विश्व में सर्वाधिक मतदाताओं वाला भारत ऐसा देश है जिसमें सरकारों का गठन नागरिकों द्वारा मतदान करा कर किया जाता है। भारत में मतदाताओं की संख्या ही लगभग 98 करोड़ के आसपास है जो कि दुनिया के अधिसंख्य देशों की आबादी के मुकाबले बहुत बड़ी जनसंख्या है। इतनी बड़ी जनसंख्या के मतदाता समूह को नियमबद्ध करना कोई मामूली काम नहीं है। इसीलिए लोकतान्त्रिक दुनिया के अग्रणी देश तक भारत की चुनाव प्रणाली का अध्ययन करने आते रहे हैं। भारत की चुनाव प्रणाली की खूबी यह है कि इसमें देश के प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार है, चाहे उसका धर्म या जाति अथवा वर्ग या सम्प्रदाय कोई भी हो। यह वोट का अधिकार कोई छोटा अधिकार नहीं है क्योंकि इसी के माध्यम से भारत के हर नागरिक को गांधी बाबा स्वयंभू बना कर गये हैं।

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लोकतन्त्र में इस वोट की कोई भी कीमत नहीं आंकी जा सकती है। चुनाव आयोग का असल काम यही है कि वह लोगों को अपने इस अधिकार को अधिक से अधिक संख्या में प्रयोग करने के लिए प्रेरित करे जिससे किसी भी बनने वाली सरकार में लोगों की इच्छा का समावेश हो सके। हमारे संविधान निर्माताओं ने स्वतन्त्र व स्वायत्त चुनाव आयोग का गठन इसीलिए किया था कि देश की राजनीतिक प्रणाली में सत्ता पर काबिज कोई भी दल किसी भी सूरत में अपनी इच्छा न थाेप सके। इसके लिए चुनाव प्रणाली को इतना पाक-साफ बनाया गया कि चुनावों के अवसर पर प्रशासन की बागडोर भी चुनाव आयोग को सौंपने का निर्णय किया गया। मगर चुनाव आयोग का यह भी कर्त्तव्य बनता है कि वह भारत की बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप बढ़ते वयस्क नागरिकों को मतदाता बनाये। इस क्रम में चुनाव आयोग हर साल मतदाता सूचियों का संशोधन करता है परन्तु इस बार बिहार के चुनावों से पहले आयोग ने सूचियों का गहन पुनरीक्षण करने का फैसला किया जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गई।

देश की सबसे बड़ी अदालत यह तय करेगी कि क्या गहन पुनरीक्षण कराना संवैधानिक है? इस मामले में न्यायालय में बहस जारी थी कि इसी दौरान बिहार के चुनाव हो गये और उनके बाद आयोग ने देश के 12 राज्यों में गहन पुनरीक्षण कराने के आदेश जारी कर दिये। आजकल यह कार्य इन सभी प्रदेशों में जोर-शोर से चल रहा है। इन 12 राज्यों में तीन केन्द्र प्रशासित क्षेत्र भी शामिल हैं। गहन पुनरीक्षण का कार्य चुनाव आयोग राज्य सरकारों के कर्मचारियों की सेवाएं लेकर ही करता है जिनमें सरकारी स्कूलों के अध्यापक सर्वाधिक होते हैं। ये कर्मचारी ब्लाक स्तर पर मतदाता सूचियों की जांच करते हैं और मतदाताओं के नाम की तसदीक करते हैं। इन्हें अंग्रेजी में बीएलओ कहा जाता है। जिन 12 राज्यों में पुनरीक्षण का काम चल रहा है वहां से ऐसी खबरें आ रही हैं कि कई बीएलओ काम का भारी दबाव होने की वजह से आत्महत्या तक कर रहे हैं। यदि मीडिया की खबरों को सही मानें तो अभी तक पांच राज्यों प. बंगाल, केरल, गुजरात मध्य प्रदेश व राजस्थान में 14 बीएलओ खुदकशी कर चुके हैं।

यह बहुत गंभीर मामला है जिस तरफ चुनाव आयोग के साथ ही राज्यों की सरकारों को भी ध्यान देना चाहिए और बीएलओ पर डाली गई जिम्मेदारियों की समीक्षा करनी चाहिए। चुनाव आयोग ने आदेश जारी कर दिया है कि आगामी 4 दिसम्बर तक पुनरीक्षण का पहला चरण पूरा हो जाना चाहिए। इसका मतलब है कि 4 दिसम्बर तक अपने क्षेत्र के हर वयस्क मतदाता का हिसाब-किताब बीएलओ को अन्तिम रूप से करना होगा। सुनने में यह काम जितना सरल लगता है करने में उतना ही मुश्किल है क्योंकि बीएलओ को ही आम जनता के इस बारे में उठाये गये हर सवाल का जवाब देना पड़ता है।बीएलओ अधिकतर शिक्षक वर्ग के होते हैं और उन पर यह जिम्मेदारी होती है कि किसी भी तौर पर उनके द्वारा किया गया पुनरीक्षण पूरी तरह शुद्ध हो। इस प्रक्रिया में उन्हें सभी मतदाताओं की गहरी तसदीक करनी पड़ती है। प. बंगाल के नदिया जिले में 53 वर्ष की एक बीएलओ ने काम के बोझ की वजह से ही आत्महत्या की।

उनके परिवार के सदस्यों की मानें तो उन पर काम का बोझ इतना अधिक था कि वह अपना मानसिक नियन्त्रण नहीं रख पाईं। इसी प्रकार गुजरात के तापी जिले में एक बीएलओ की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु पिछले गुरुवार को हो गई। राज्य में इससे पूर्व भी दो और बीएलओ इसी तरह अपनी जान गंवा बैठे। मध्य प्रदेश में पिछले सप्ताह दो बीएलओ मौत का ग्रास बन गये। इनके परिवारजनों ने भी काम का अधिक बोझ होने की शिकायत की। चुनाव आयोग का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह इन सभी बीएलओ की मृत्यु का असली कारण जाने और समझे कि क्या काम का बोझ ही उनकी आत्महत्या का सबब बन रहा है। आयोग ने प. बंगाल के बीएलओ की आत्महत्या पर तो रिपोर्ट मांगी है मगर अन्य राज्यों में हुई ऐसी घटनाओं का अभी तक संज्ञान नहीं लिया है। बहुत जरूरी है कि चुनाव आयोग इस बारे में उच्च स्तरीय फैसला ले और बीएलओ के साथ कुछ अन्य कर्मचारी भी लगाये।

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