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भ्रष्टाचार के पुल

भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है, भ्रष्ट आचरण। ऐसा कार्य जो अपने स्वार्थ सिद्धि की कामना के लिए समाज में नैतिक मूल्यों को ताक पर रख किया जाता है, वही भ्रष्टाचार कहलाता है।

03:29 AM May 02, 2022 IST | Aditya Chopra

भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है, भ्रष्ट आचरण। ऐसा कार्य जो अपने स्वार्थ सिद्धि की कामना के लिए समाज में नैतिक मूल्यों को ताक पर रख किया जाता है, वही भ्रष्टाचार कहलाता है।

भ्रष्टाचार के पुल
भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है, भ्रष्ट आचरण। ऐसा कार्य जो अपने स्वार्थ सिद्धि की कामना के लिए समाज में नैतिक मूल्यों को ताक पर रख किया जाता है, वही भ्रष्टाचार कहलाता है। भ्रष्टाचार के लिए केवल राजनीतिज्ञ, अफसर और माफिया ही जिम्मेदार नहीं बल्कि देश के आम नागरिक भी भ्रष्टाचार के विभिन्न स्वरूपों में भागीदार हैं। यह कहना अनुचित नहीं लगता कि आज के दौर में वही व्यक्ति ईमानदार है जिन्हें भ्रष्टाचार का मौका नहीं मिलता। देश में बड़े-बड़े करोड़ों-अरबों के घोटाले हुए हैं, जिन्हें पुस्तक के तौर पर लिखा जाए तो महाग्रंथ की रचना हो सकती है। सरकारी कामों में कितना भ्रष्टाचार होता है, इसका ताजा उदाहरण ​बिहार में मिला है। ​बिहार के भागलपुर जिले में सुल्तानगंज में 1710 करोड़ की लागत से पुल का निर्माण किया जा रहा था। रात के समय आई तेज आंधी और बारिश की वजह से ही पुल का स्ट्रक्चर ही गिर गया। जिस तरीके से पुल का हिस्सा गिरा उससे इसकी गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह पुल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। मुख्यमंत्री ने  2015 में पुल के निर्माण कार्य की शुरूआत की थी। पुल का निर्माण 2019 में ही पूरा कर लिया जाता लेकिन बाढ़ और भूमि अधिग्रहण के पेच के कारण इसकी डेडलाइन 2022 कर दी गई थी।
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जनप्रतिनिधि साफ तौर पर निर्माण में धांधली का आरोप लगा रहे हैं। ​​बिहार में पुल गिरने की यह कोई अकेली घटना नहीं है। अन्य राज्यों में भी पुल पहले भी गिरते रहे हैं। अगर आप ​बिहार या अन्य राज्यों में सरकार के किसी भी विभाग को देखें तो कहने के लिए भ्रष्टाचार भुक्त व्यवस्था है लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि सरकारी विभाग भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। अगर यह कहा जाए कि पुल, पुलिया और पथ निर्माण में सर्वाधिक घोटाले होते हैं तो यह झूठ नहीं होगा। बाढ़ के दौरान मरम्मत के नाम पर राजनीतिज्ञ और अधिकारी मालामाल होते हैं और ठेकेदार लोगों के जीवन से खिलवाड़ करते हैं। बाढ़ के दौरान मरम्मत के नाम पर करोड़ों खर्च किए जाते हैं। बाढ़ यहां के नेताओं और अधिकारियों के लिए पर्व-त्यौहार के समान है। पुलों का गिरना इस बात को स्पष्ट करता है कि मनुष्य किस हद तक गिर चुका है।
नरेश सक्सेना की पंक्तियां याद आ रही हैं।
‘‘कुतुबमीनार से चिल्ला कर 
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कहने की जरूरत नहीं है
कि कैसी है आज की हवा
और कैसा है इसका हस्तक्षेप 
कि चीजों के गिरने के नियम
मनुष्यों के गिरने पर लागू हो गए हैं।’’
बिहार में भारी बारिश के कारण कोरोेना काल के दौरान 2020 में ​मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा उद्घाटन करने के 29 दिन के भीतर ही गोपालगंज में करोड़ों की लागत से बना पुल बह गया था। झारखंड में भी पुल ढहने की खबरें आती रही हैं। पिछले एक दशक की बात करें तो पलामू में एक दर्जन के करीब पुल बह गए या टूट गए। अधिकतर मामलों की जांच और कार्रवाई की फाइलें धूल फांक रही हैं। कई लोगों ने घटिया निर्माण की आवाज कई स्तर पर उठाई लेकिन किसी को जनता के पैसे की​ चिंता ही नहीं। पुल बनते हैं फिर टिकते नहीं।  पिछले महीने बिहार में 500 टन का पुल चोरी होने पर मीम्स बड़े चर्चित हुए थे। एक मीम तो यादों की बारात फिल्म के मशहूर गाने की नकल पर बना था-
‘‘चुरा लिया है तुमने जो पुल को, नहर नहीं चुराना सनम।’’
एक जंग लगे लौहे के पैदल पुल की वजह से रोहतास जिले का अमियावार गांव काफी सुर्खियों में रहा। इस पुल को दिनदहाड़े कुछ चोरों ने इसे चुराकर इसे और खास बना दिया। चोर नकली अधिकारी बनकर आए और तीन दिन में 60 फीट लम्बे पुल को सिंचाई विभाग के कर्मचारियों से ही कटवा कर ले गए। चोरों ने इतनी चालाकी से काम लिया कि ग्रामीण और स्थानीय कर्मचारी भी झांसे में आ गए। हालांकि यह पुल जर्जर हो चुका था कि सिंचाई विभाग ने इसके समानांतर कंक्रीट का पुल बना दिया था। इसके बाद ही ग्रामीण इस पुल को हटवाने का आवेदन दे चुके थे। चोरों ने इस आवेदन का सहारा लिया। यह जानकारी भी चोरों को ग्रामीणाें से ही मिली होगी।
उत्तराखंड में पिछले पांच वर्षों में 32 पुल टूट चुके हैं। 27 पुलों की हालत जर्जर है। पुलों के नीचे नदियों में बेतरबीब ढंग से खनन और अवैध खनन उन्हें ध्वस्त कर रहा है। करोड़ों के पुल धराशायी हो रहे हैं, इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों और निर्माण कम्पनियों, ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। अगर हुई भी तो सिर्फ खानापूर्ति की गई। जिन अधिकारियों के कार्यकाल में पुल ढहे उन्हें पदोन्नति भी दी गई और सेवा विस्तार भी। यह देखना भी जरूरी है कि पुल निर्माण में तकनीकी खामी है भी या नहीं। अगर तकनीकी खामियां नहीं तो फिर इसके लिए सीधे भ्रष्टाचार ही जिम्मेदार है। हैरानी तो इस बात की है कि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए पुल आज भी काम कर रहे हैं, जबकि नए पुल बनते ही ढहने के ​िलए हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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