For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

बुलडोजर अन्याय का प्रतीक

किसी भी लोकतन्त्र में कथित बुलडोजर न्याय से बढ़कर दूसरा अन्याय नहीं हो सकता क्योंकि ऐसी कार्रवाई में कानून की सहमति नहीं बल्कि हुकूमत के जुल्म की दस्तरबारी होती है। लोकतन्त्र हर हालत में और हर शर्त में केवल कानून या संविधान से ही चलता है

10:29 AM Nov 14, 2024 IST | Aditya Chopra

किसी भी लोकतन्त्र में कथित बुलडोजर न्याय से बढ़कर दूसरा अन्याय नहीं हो सकता क्योंकि ऐसी कार्रवाई में कानून की सहमति नहीं बल्कि हुकूमत के जुल्म की दस्तरबारी होती है। लोकतन्त्र हर हालत में और हर शर्त में केवल कानून या संविधान से ही चलता है

बुलडोजर अन्याय का प्रतीक

किसी भी लोकतन्त्र में कथित बुलडोजर न्याय से बढ़कर दूसरा अन्याय नहीं हो सकता क्योंकि ऐसी कार्रवाई में कानून की सहमति नहीं बल्कि हुकूमत के जुल्म की दस्तरबारी होती है। लोकतन्त्र हर हालत में और हर शर्त में केवल कानून या संविधान से ही चलता है जिसमें नागरिकों को कुछ मूल अर्थात मौलिक अधिकार मिले होते हैं और इनमें अपना घर बनाने का सपना पालना एेसा ही मौलिक अधिकार है। इसलिए जब हुकूमत या सत्ता किसी व्यक्ति से उसका आशियाना छीनती है तो वह जंगल के कानून की तरह होता है जिसे सभ्य भाषा में अराजकता भी कहा जाता है। लोकतन्त्र में अराजकता तभी होती है जब वकील, दलील और अपील खुद सरकार बन जाती है और किसी दूसरे दरवाजे पर नागरिक की सुनवाई नहीं होती। इस लोकतन्त्र अर्थात कानून का राज पाने के लिए ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजी सरकार से लम्बा संघर्ष किया था और भारत के लोगों के मन से यह दासता का भाव समाप्त किया था कि उनके दुख-दर्द दूर करने के लिए किसी रानी के पेट से जन्मे राजा की जरूरत नहीं होती बल्कि वे अपने राजा खुद होते हैं और अपने एक वोट की ताकत से अपनी मनचाही सरकार चुन सकते हैं। इस प्रकार चुनी हुई सरकार उनकी मालिक नहीं बल्कि नौकर होगी और उनकी सम्पत्ति (राष्ट्रीय सम्पत्ति) की देखरेख करने वाली चौकीदार होगी जिसका हिसाब हर पांच साल बाद चुनावों के वक्त उसे देना होगा।

नागरिकों की हुकूमत कायम करने के लिए ही संविधान में विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका और चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई और तय किया गया कि केवल विधायिका व कार्यपालिका ही सरकार का अंग होंगे जबकि न्यायपालिका व चुनाव आयोग स्वतन्त्र व स्वायत्तशासी रहेंगे और ये सरकार का अंग नहीं होंगे बल्कि सरकार की जवाबदेही इन दोनों अंगों के प्रति होगी। न्यायपालिका का काम देश में संविधान के शासन को देखने का होगा और चुनाव आयोग का कार्य निष्पक्ष व स्वतन्त्र चुनाव कराना होगा जिससे लोगों की इच्छा के अनुसार सरकार का गठन हो सके। ये दोनों संस्थान सीधे संविधान से ताकत लेकर अपना काम करेंगे। संविधान या कानून के अनुसार शासन चलाने का काम सरकार करेगी और नागरिकों को न्याय देने व संविधान के अनुसार शासन चलता देखने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की होगी। सरकार का अंग कोई भी मन्त्री कभी भी न्यायाधीश की भूमिका में नहीं आ पायेगा और न्यायपालिका कभी भी राजनीतिज्ञों की भूमिका में नहीं आ पायेगी।

सरकार के आदेश को संविधान की कसौटी पर परख करने का काम न्यायपालिका का होगा। अतः बुलडोजर भेजकर किसी घोषित अपराधी का मकान भी कोई सरकारी अधिकारी गिराने का अधिकार नहीं रखता है जब तक कि न्यायपालिका एेसे आदेश जारी न कर दे। न्याय पाने के नागरिकों के अधिकार होते हैं और पूरी न्यायिक प्रक्रिया होती है। बुलडोजर से मकान ध्वस्त कराने के आदेश देने से पहले किसी भी सरकारी अधिकारी को कानून की वह प्रक्रिया पूरी करनी होगी जिसके आदेश इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय न्यायमूर्तियों की पीठ ने दिये हैं। इस बारे में अब साफ हो जाना चाहिए कि लोकतन्त्र कभी भी विध्वंस की राजनीति को शह नहीं देता है बल्कि यह सृजन की राजनीति का अलम्बरदार होता है क्योंकि केवल सृजन की राजनीति से ही देश व समाज आगे बढ़ सकता है।

लोकतन्त्र में हमारे संविधान निर्माता अधिकारों व शक्तियों का बंटवारा व्यर्थ में ही करके नहीं गये हैं बल्कि इसका मूल उद्देश्य सतत विकास की ओर अग्रसर रहना है। यदि किसी व्यक्ति का नाम किसी अपराध में आने की वजह से उसका घर तोड़ दिया जाता है तो यह कार्य उसी प्रकार होगा जिस प्रकार किसी सत्ता के मद में अन्धे हुए राजा का शासन अपनी मर्जी से चलाना। इससे समाज बजाये आगे बढ़ने के सदियों पीछे चला जायेगा क्योंकि हम जानते हैं कि राजशाही में राजा का वचन ही कानून होता था। मगर हमने तो आजाद होते ही अपने देश के लोगों को दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान दिया और तय किया कि शासन केवल इसी के निर्देशों पर चलेगा। जिसके चलते केवल सरकारी आदेश से किसी भी व्यक्ति के मकान को नहीं गिराया जा सकता क्योंकि कानून कहता है कि एेसा करने के लिए सरकार और उसके सभी अंगों को कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने देश की सभी राज्य सरकारों के लिए दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिससे वे सस्ती बाजारू लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस काम को राजनीति का अंग न बना डालें। हमने देखा कि किस प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार की देखादेखी देश की अन्य राज्य सरकारों ने भी की और बुलडोजर ‘अन्याय’ को वैधता देने का प्रयत्न किया।

हमारा लोकतन्त्र कभी भी सड़क छाप दिखने वाले कथित न्याय की पैरवी नहीं करता बल्कि वह प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त को मानने वाला है और प्राकृतिक न्याय कहता है कि किसी व्यक्ति विशेष के अपराध की सजा उसके परिवार के किसी दूसरे व्यक्ति तक को नहीं दी जा सकती। इस सन्दर्भ में मैंने कुछ दिनों पहले इन्ही पंक्तियों में महृषि बाल्मीकि की कथा भी लिखी थी कि वह दस्यु से साधू किस प्रकार बने। हालांकि यह इतिहास नहीं है और केवल धार्मिक मान्यता है परन्तु इसके बावजूद हिन्दू पौराणिक संस्कृति का भाग तो है ही। मकान गिराने के मामले में भी अगर हम लोगों को धर्मों में बांटने लगेंगे तो हमारे संविधान का क्या होगा जो भारत के प्रत्येक नागरिक को एक समान अधिकार देता है और आपराधिक कानून सबको एक नजर से देखता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×