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स्वामी ने HC में एयर इंडिया विनिवेश प्रक्रिया पर उठाए सवाल, कहा-भ्रष्ट थी कार्यप्रणाली

केंद्र ने दिल्ली हाई कोर्ट में सुब्रमण्यम स्वामी की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें एयर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया रद्द करने और अधिकारियों द्वारा दी गई मंजूरी रद्द करने का अनुरोध किया गया है।

02:58 PM Jan 04, 2022 IST | Desk Team

केंद्र ने दिल्ली हाई कोर्ट में सुब्रमण्यम स्वामी की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें एयर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया रद्द करने और अधिकारियों द्वारा दी गई मंजूरी रद्द करने का अनुरोध किया गया है।

अपनी ही सरकार के खिलाफ मुखर रहने वाले बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एयर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया रद्द करवाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। स्वामी ने अपनी याचिका में आरोप लगाया गया कि अपनाई गई कार्यप्रणाली “मनमानी, दुर्भावनापूर्ण और भ्रष्ट” थी। हालांकि केंद्र स्वामी की याचिका का विरोध किया।
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मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने स्वामी और केंद्र की तरफ से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता और एयर एशिया की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों को सुना और कहा कि वह याचिका पर छह जनवरी को आदेश सुनाएगी।
पीठ ने केंद्र के वकील और अन्य प्रतिवादियों से आज शाम तक संक्षिप्त टिप्पणी दायर करने का निर्देश दिया और स्वामी को बुधवार तक संक्षिप्त टिप्पणी दायर करने की छूट प्रदान की। हाई कोर्ट ने आगे याचिकाकर्ता को याचिका के साथ संलग्न कुछ दस्तावेजों की पढ़ने योग्य प्रतियां दाखिल करने का भी निर्देश दिया।

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राज्यसभा सदस्य, स्वामी ने एयर इंडिया विनिवेश प्रक्रिया के संबंध में अधिकारियों द्वारा किसी भी कार्रवाई या निर्णय या किसी भी आगे की मंजूरी, अनुमति या परमिट को रद्द करने और निरस्त करने का अनुरोध किया है। स्वामी ने अधिवक्ता सत्य सबरवाल के माध्यम से अधिकारियों की भूमिका और कामकाज की सीबीआई जांच और अदालत के समक्ष एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का भी अनुरोध किया है। 
पिछले साल अक्टूबर में, केंद्र ने एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस के 100 प्रतिशत इक्विटी शेयरों के लिए टाटा संस कंपनी द्वारा की गई उच्चतम बोली के साथ ही जमीनी परिचालन देखने वाली कंपनी एआईएसएटीएस में सरकार की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी को स्वीकार कर लिया था। यह पिछले 20 वर्षों में पहला निजीकरण था। 
सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि याचिका तीन गलत धारणाओं पर आधारित है और इस पर किसी विचार की आवश्यकता नहीं है। साल्वे ने यह भी तर्क दिया कि याचिका में कुछ भी नहीं है और बोलियां पूरी हो गई हैं, शेयर समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं और यह सब काफी समय से सार्वजनिक पटल पर है।
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