Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

‘सेमीफाइनल’ में दिग्गजों की चुनौतियां...

NULL

10:17 AM Nov 11, 2018 IST | Desk Team

NULL

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में इस समय राजनीतिक माहौल केवल 5 राज्यों के विधानसभायी चुनावों को लेकर गर्मा गया है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना आैर मिजोरम को लेकर इस समय मुख्य पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के बीच रस्साकशी इतनी जबरदस्त है​ कि कोई भी इस सुनहरे अवसर को हाथ से गंवाने को तैयार नहीं। राजनीतिक विश्लेषक इन चारों राज्यों के चुनाव परिणामों को 2019 के लोकसभाई चुनावों का सेमीफाइनल मान रहे हैं। इसीलिए कहा जा रहा है कि भाजपा और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। हकीकत यह है ​िक यह सिर्फ भाजपा दिग्गज अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही प्रतिष्ठा का सवाल नहीं है ​बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की राजनीतिक साख भी दाव पर है।

जहां कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को अपने अनुकूल पा रही है तथा उसके बड़े-बड़े नेता सत्ता को शत-प्रतिशत अपने खाते में मान कर चल रहे हैं तो वहीं भारतीय जनता पार्टी की ओर से बराबर दावे किए जा रहे हैं कि उसको अपने कामकाज के दम पर पुराने रिकार्ड तोड़ते हुए जनता फिर से सत्ता सौंप देगी। यह सच है कि भाजपा और कांग्रेस अपना-अपना अंक गणित बना कर बैठे हैं जिसे वह मौके के मुताबिक लागू भी कर रहे हैं लेकिन एक अहम बात यह है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में दोनों ही दलों को भीतरघात का सामना करना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में 15-15 साल का शासन राजनीतिक पं​िडतों की नजर में एक बड़ा एन्टी इन्कम्बैंसी फैक्टर है। ऐसे में भाजपा अपनी उपल​िब्धयों के दम पर चुनाव मैदान में डटी हुई है। कांग्रेस इसका लाभ उठाने की कोशिश में है लेकिन जिन लोगों को टिकट नहीं मिला वे बराबर परेशानी का सबब बने हुए है।

भाजपा जहां बड़े दिग्गजों के टिकट कटने पर उनकी नाराजगी से डर रही है तो यही स्थिति कांग्रेस के साथ भी है लेकिन बड़ी बात यह है कि बसपा इन तीनों ही राज्यों में अपने वोट बैंक को लेकर दोनों बड़ी पार्टियों को परेशान करने का इरादा लेकर मैदान में डटी है। तीनों राज्यों में उसका कोई बड़ा वजूद तो नहीं लेकिन पिछड़े लोगों का बड़ा प्रतिनिधि होने के दम पर उसका दाव कितना कारगर सिद्ध होगा इसका जवाब वक्त ही देगा। छत्तीसगढ़ में कभी कांग्रेस के सिपाही रहे और मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके अजीत जोगी नई पार्टी बनाकर कितनी सीटें हासिल करेंगे यह अभी तय नहीं लेकिन कांग्रेस के लिए खतरा जरूर बने हुए हैं। मध्य प्रदेश में भी भाजपा के लिए उसके अपने नेताओं का कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना एक परेशानी भरा सबब है। भाजपा ने सारी ताकत तीनों राज्याें में लगा रखी है तो वहीं कांग्रेस भी नए तेवर के साथ मुकाबले में है।

प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने कांग्रेस पर हमलों में कोई कसर नहीं छोड़ी तथा पारिवारिक राजनीतिक सत्ता को लेकर भ्रष्टाचार की जननी के रूप में इन दोनों बड़े नेताओं ने कांग्रेस पर एक के बाद एक बड़े हमले किये हैं तो वहीं राहुल गांधी अकेले डटे हुए हैं और पहली बार वह भाजपा को राफेल डील पर इस तरीके से लपेट रहे हैं कि सबका ध्यान खींचने में सफल हो रहे हैं। तेलंगाना में चन्द्रशेखर राव मुख्यमंत्री बने हुए हैं और अपने विकास के दम पर और अलग राज्य बनने के बाद तेलंगाना के लोकप्रिय नेता हैं वहीं भाजपा वहां पहचान बनाने को लेकर डटी हुई है और कांग्रेस मुख्य विपक्ष​ी दल की भूमिका से हटकर सत्ता प्राप्ति के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि रेड्डी बंधुओं की मौजूदगी के तिकोने मुकाबले के बीच फूल वाली पार्टी और पंजा क्या कर पाएगा?

जमीनी स्तर पर राज्य चुनावों में भाजपा की ओर से राष्ट्रीय विकास की बात कही जा रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस महंगाई और राफेल को लेकर आक्रामक रुख अपनाये हुए है। कांग्रेस का मानना है ​िक जिस तरह से भाजपा उसके खिलाफ नकारात्मक प्रचार करती रही तो यही रवैया उसकी तरफ से अपनाया गया है। जमीनी मुद्दों को छोड़ दिया जाए तो यह सच है ​िक वे आज भी बरकरार हैं। ऐसे में मोदी या अमित शाह की प्रतिष्ठा ही क्यों बल्कि राहुल की राजनीतिक साख भी वोटर के हाथ में रहेगी। यह तय है कि इन चारों राज्यों के चुनाव राहुल गांधी की छवि का भी आकलन करेंगे। कल तक उन्हें कम आंका जाता था परन्तु आज वह अपने आक्रामक तेवर के चलते अपनी छवि बदलने के मिशन में भी कामयाब हुए हैं फिर भी जवाब तो वक्त ही देगा।

Advertisement
Advertisement
Next Article