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गोकुल में धूमधाम से मनाई गई छड़ीमार होली, श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब

जैसे-जैसे होली का पर्व नजदीक आ रहा है, देशभर में उत्सव की रंगीन छटा बिखर रही है…

06:22 AM Mar 11, 2025 IST | Shera Rajput

जैसे-जैसे होली का पर्व नजदीक आ रहा है, देशभर में उत्सव की रंगीन छटा बिखर रही है…

गोकुल में धूमधाम से मनाई गई छड़ीमार होली  श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब

जैसे-जैसे होली का पर्व नजदीक आ रहा है, देशभर में उत्सव की रंगीन छटा बिखर रही है। हर क्षेत्र में होली अपनी पारंपरिक शैली में मनाई जा रही है। इसी क्रम में मंगलवार को गोकुल में छड़ीमार होली का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया।

गोकुल में यह अनोखी होली टेसू के फूलों के रंग और ब्रज के गीतों के साथ खेली गई। देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालुओं के बीच भगवान श्रीकृष्ण का डोला निकाला गया, जिससे पूरे माहौल में भक्ति और उल्लास की लहर दौड़ गई।

द्वापर युग की लीलाओं का पुनर्जीवन

गोकुल- जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया था—वहीं हर साल उनकी लीला को जीवंत करने के लिए छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। इस दौरान अबीर और गुलाल से पूरा गोकुल रंगमय हो जाता है। जैसे ही भगवान का डोला मुरलीधर घाट पहुंचा, गोपियों ने कृष्ण के बाल स्वरूप पर प्रेमपूर्वक छड़ियों की वर्षा करनी शुरू कर दी। इस अलौकिक दृश्य को देखकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए।

शोभायात्रा और होली का उल्लास

नंद किला मंदिर से मुरलीधर घाट तक एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई। आगे-आगे कान्हा की पालकी, उसके पीछे सुंदर परिधानों में सजी हुई गोपियां हाथों में छड़ियां लिए बैंड-बाजे के साथ चल रही थीं। पहले छड़ी, फिर गुलाल और अंत में रंगों की होली ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

छड़ीमार होली की विशेषता

छड़ीमार होली को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह देखने को मिला। एक भक्त ने बताया कि बरसाने में लट्ठमार होली होती है, जबकि गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है। यह भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप और मां यशोदा के वात्सल्य प्रेम को दर्शाती है।

गोकुल की छड़ीमार होली में शामिल होने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता

एक महिला ने बताया कि छड़ीमार होली सिर्फ गोकुल में ही मनाई जाती है। क्योंकि जब श्रीकृष्ण छोटे थे, तब गोपियां उन्हें चोट न लगे, इसलिए छड़ी से हल्के-हल्के होली खेलती थीं। यह परंपरा आज भी उसी भक्ति भाव के साथ निभाई जाती है, और इसे देखने के लिए हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।

एक अन्य महिला, खुशी जताते हुए कहा कि इस उत्सव का लोग पूरे साल इंतजार करते हैं। जब यह दिन आता है, तो भक्तों का आनंद देखते ही बनता है। गोकुल की छड़ीमार होली में शामिल होने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता, इसलिए यहां आने वाले लोग इसे यादगार पल के रूप में संजो लेते हैं।

भक्ति, उल्लास और रंगों का अनूठा संगम

गोकुल की छड़ीमार होली एक आध्यात्मिक और रंगीन उत्सव का संगम है। श्रद्धालु भक्ति में सराबोर होकर इस परंपरा का आनंद लेते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की लीलाओं को अनुभव करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। इस आयोजन ने एक बार फिर भक्तों के हृदय में भक्ति और प्रेम के रंग भर दिए।

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Shera Rajput

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