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छत्रपति शिवाजी जनता के राजा

12:46 AM Jan 14, 2024 IST | Shera Rajput
छत्रपति शिवाजी जनता के राजा
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छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को 350 वर्ष पूरे हुए हैं। रायगढ़ किला में 6 जून, 1674 को राज्याभिषेक के साथ भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और स्वतंत्रता आंदोलन के संचालन को नई शक्ति मिली। 1645 में जब उनकी आयु 15 वर्ष थी, तब बालक शिवाजी द्वारा हिंदवी स्वराज्य की नींव डाली गई थी, राज्याभिषेक के बाद जब वह भूपति (छत्रपति) बने तब हिन्दू समाज ने खुद को सुरक्षित और गौरवान्वित महसूस किया था। वही हिंदवी स्वराज्य आज विश्व पटल पर भारत की छवि को निखार रहा है। शिवनेरी किले में 19 फरवरी 1630 को जन्मे छत्रपति शिवाजी महाराज बाकी राजाओं से अलग थे। छत्रपति बुद्धिमान, पराक्रमी, दूरदृष्टा और दार्शनिक राजा थे। मुगल शासकों का हिंदू समाज पर किये जा रहे अत्याचार ने शिवाजी के बाल मन को आहत किया। वहीं हिंदवी स्वराज्य अंकुरित हुआ, जो आगे चलकर वट वृक्ष की तरह फैला। हिंदवी स्वराज्य का आशय था हिन्दुओं का अपना राज। देश में पहली बार जाति, धर्म से अलग मानव समाज अन्याय के खिलाफ एकजुट हुआ। हिंदवी स्वराज सही मायने में जनता का बनाया गया राज्य था।
प्रतिकूल परिस्थिति में भी छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस तरह से अपना लक्ष्य पूरा किया। वह हमें एकजुटता के साथ संकल्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा देता है। छत्रपति शिवाजी महाराज का गौरव पूर्ण जीवन हमें और भी कई बातें सिखाता है। उनसे हमें यह सीख भी मिलती है कि हमेशा बड़ी सोच लेकर चलना चाहिए। बड़ी सोच हर बाधा को पार करने की समझ पैदा करती है। तभी तो 16 वर्ष की उम्र में तोरणा का किला जीतकर वह हिन्दू समाज के मन में हिंदवी स्वराज्य का विश्वास पैदा कर पाए।
छत्रपति शिवाजी महाराज कुशल संगठक थे। अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता से उन्होंने मुगलों के खिलाफ ईमानदार लोगों की एसी फौज तैयार की, जिनके मन में राज्य विस्तार के स्थान पर स्वराज्य का जज्बा था। उनकी सेना का हर सैनिक किसी ना किसी क्षेत्र का सिद्धहस्त व्यक्ति थे। शिवाजी महाराजा गुण और योग्यता के अनुसार कार्य देते थे। उनके साथ हम्बीरराव मोहित्य जैसा सेनापति, बहिरजी नाइक, कान्होजी जैसा गुप्तचर, सरदार आंग्रे जैसे कवच प्रमुख के अलावा भीम जैसा लुहार था, जिसके द्वारा गढ़े गए घातक हथियार की मार से कोई बचता नहीं था। छत्रपति शिवाजी महाराजा की संगठन शैली आज भी प्रासंगिक है।
छत्रपति शिवाजी महाराजा जानते थे कि हिंदवी स्वराज्य की स्थापना केवल युद्ध लड़कर नहीं की जा सकती। उनकी कार्यप्रणाली में अनुशासन और संयम की श्रेष्ठता थी। यही कार्य व्यवहार हिंदवी स्वराज्य को मजबूती प्रदान करने में सहायक साबित हुआ। शिवाजी महाराज का अनुशासन इतना कठोर था कि वह न्याय करते समय रिश्ता नहीं देखते थे। उन्होंने संभाजी मोहिते, सखोजी गायकवाड़ जैसे रिश्तेदारों को भी सजा सुनाने में भेदभाव नहीं किया। नेताजी पालकर का जनरल पद से निष्कासन के अलावा अपने पुत्र शंभू राजा को भी गलती की सजा देने से नहीं हिचके। वह कहते थे कि स्वराज्य तभी टिकेगा जब अपने-पराये की भावना के बिना शासन होगा।
उन्होंने स्वयं के लिए कभी समझौता नहीं किया। वह एेसा कोई कदम नहीं उठाए जो उनके हिंदवी स्वराज्य के लक्ष्य में भटकाव लाए। वह चाहते तो बीजापुर के सुल्तान से समझौता करके बड़ा ओहदा हासिल कर सकते थे। मुगल बादशाह औरंगजेब से समझौता करके ठाठ का जीवन गुजार सकते थे लेकिन उनका ध्येय तो हिन्दुस्तान की जनता को हिन्दुस्तान देना था। इसलिए उन्हें क्या उनके किसी सैनिक को भी कोई किसी मूल्य पर नहीं खरीद पाया। क्योंकि शिवाजी महाराज का लक्ष्य सभी का लक्ष्य बन चुका था।
छत्रपति शिवाजी महाराज कुशल राजनीतिज्ञ के साथ वीर योद्धा भी थे। इसलिए अपने साथियों के आग्रह के बावजूद वह आगे रहकर जोखिम उठाते थे। उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल कर हर मिशन में भाग लिया। छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर नजर डालें तो पता चलता है कि वे हमेशा दूरगामी सोच लेकर चले। मुगल बादशाह औरंगजेब से मिलने आगरा जाना। शाहिस्ते खान से लाल महल और प्रताप किला छीनना। अफजल खान की कुटिल चाल को विफल करना। शिवाजी महाराज की कार्यशैली से प्रेरणा मिलती है कि सूझबूझ के साथ उठाए गए जोखिम भरे कदम सफलता की तरफ ले जाते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की कार्य पद्धतियां सबसे अलग थी।
वह चाहते तो अन्य शासकों की तरह अपनी शासन की व्यवस्था कर सकते थे, लेकिन उनका उद्देश्य था जनता को इस बात का अहसास होना चाहिए कि यह उनका स्वराज्य है। इसके लिए उन्होंने प्रशासनिक व्यवस्था के लिए अष्टप्रधान मंडल की स्थापना की। छत्रपति शिवाजी ‘रयत यानी जनता के राजा’ की उपाधि धारण करने वाले पहले राजा थे। वे हमेशा कहते थे, यह राज्य लोगों ने लोगों के लिए बनाया है। उन्होंने जनता का धन जनता के कार्य पर खर्च हो इस व्यवस्था को लागू किया। इसलिए वह राजकोष के स्थान पर ट्रस्ट की शुरूआत किए। उनका यह भाव शासन व्यवस्था में लगे हर व्यक्ति के मन में था। 3 अप्रैल 1680 को शिवाजी देवलोक गमन कर गए, लेकिन उनकी प्रेरणा से मराठा साम्राज्य का विस्तार महाराष्ट्र से निकल कर अटक से कटक तक फैला था। उनका हिंदवी स्वराज्य भारत का प्राणवायु बनकर आज भी हर नागरिक के मन में जीवित है।

- वैभव डांगे 

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