चीफ जस्टिस : समय कम चुनौतियां बड़ी
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जस्टिस रंजन गोगोई के रूप में भारत को नया चीफ जस्टिस मिल गया है। इसके साथ ही उनके पिता की कही एक बात भी सच हो गई जो उन्होंने अपने बेटे के बारे में कही थी। गुवाहाटी में ‘गुहाटी हाईकोर्ट, हिस्ट्री एंड हैरिटेज’ नामक पुस्तक का लोकार्पण सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एम.ए. बोवड़े ने किया था। इस कार्यक्रम में हाईकोर्ट के कई जज वहां मौजूद थे। इस पुस्तक के एक हिस्से को ‘प्रोफेटिक कमेंट’ का नाम दिया गया है। इस सम्बन्ध में एक जज ने छोटी सी कहानी सुनाई थी कि असम के पूर्व कानून मंत्री मुदीब मजूमदार ने एक बार केशव गोगोई, जो असम के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, से पूछा था कि क्या उनका बेटा रंजन गोगोई कभी राजनीति में जाएगा और फिर क्या असम का मुख्यमंत्री बनेगा? इस सवाल पर केेशव गोगोई ने कहा था कि ‘‘नहीं उनका बेटा राजनीति में नहीं जाएगा और इसलिए वह असम का मुख्यमंत्री भी नहीं बनेगा लेकिन उसमें इतनी योग्यता है कि एक दिन वह जरूर भारत का मुख्य न्यायाधीश बनेगा।’’ अब जबकि जस्टिस रंजन गोगोई ने भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद सम्भाल लिया है तो उनके बारे में पिता की कही बात सच हो गई।
रंजन गोगोई का कार्यकाल महज 13 महीने का है लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी अनेक हैं। पद सम्भालते ही उन्होंने तत्काल सुनवाई की परम्परा में बड़ा बदलाव किया। चीफ जस्टिस ने कहा कि जब तक किसी को फांसी पर न चढ़ाया जा रहा हो या घर से निकाला नहीं जा रहा हो, मामले की तत्काल सुनवाई नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई के शुरूआती 20 मिनट तत्काल सुनवाई के लिए आरक्षित रखे जाते हैं। पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी इस व्यवस्था में बदलाव किया था। उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के मौखिक उल्लेख करने पर रोक लगा दी थी और सिर्फ एडवोकेट ऑन रिकार्ड ही मौखिक उल्लेख कर सकते थे। चीफ जस्टिस ने जजों के काम के बंटवारे का नया रोस्टर भी जारी कर दिया। जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 11 जजों में शामिल हैं जिन्होंने अपनी सम्पत्ति से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक कर दिया है। सब जानते हैं कि वह कितना साधारण जीवन जीते हैं। वह पारदर्शिता के प्रबल पक्षधर हैं।
न्यायपालिका में तब तूफान खड़ा हो गया था जब जस्टिस रंजन गोगोई ने तीन अन्य वरिष्ठतम जजों के साथ एक प्रैस कांफ्रैंस कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा क्योंकि तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कुछ खास मामलों की सुनवाई के लिए चुने हुए लोगों को नियुक्त कर रहे थे। इन चार न्यायाधीशों ने चेतावनी दी थी कि लोकतंत्र खतरे में है। इस प्रैस कांफ्रैंस के बाद ऐसी आशंकाएं थीं कि सरकार किसी ऐसे व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्वीकार नहीं करेगी जिसकी छवि स्वतंत्र हो लेकिन मोदी सरकार ने विरष्ठतम जस्टिस को मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की परम्पराओं का सम्मान किया। चार न्यायाधीशों की प्रैस कांफ्रैंस का बड़ा कारण रोस्टर को लेकर था। इनका आरोप था कि मुख्य न्यायाधीश संवेदनशील मामलों को चुन-चुनकर कुछ खास जजों को दे रहे हैं। चीफ जस्टिस ने पद सम्भालते ही रोस्टर तैयार कर केसों का बंटवारा कर दिया ताकि न्यायपालिका में पारदर्शिता बनी रहे। उनके सामने बड़े मामले तो हैं ही लेकिन न्याय व्यवस्था के निष्पक्ष रहते हुए इसकी संस्थागत गरिमा को बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने स्वयं कहा था कि ‘‘इस समय न्याय व्यवस्था एक ऐसा मजदूर नहीं है जो अपने औजारों को दोष देता है बल्कि ये एक ऐसा मजदूर है जिसके पास औजार ही नहीं हैं।’’
जजों के खाली पड़े पदों पर नियुक्तियां, न्याय व्यवस्था में सुधार, लम्बित पड़े केसों को निपटाना बड़ी चुनौतियां हैं। लोकतंत्र में न्यायपालिका की बड़ी भूमिका है। लोगों की न्यायपालिका में आस्था इतनी गहरी है कि वह छोटे-छोटे कामों के लिए भी न्यायपालिका का द्वार खटखटाते हैं क्योंकि शासन व्यवस्था काफी खराब है। जो काम विधायिका और निर्वाचित प्रतिनिधियों को करने चाहिएं, वह होते ही नहीं इसलिए अदालतों काे हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। न्यायपालिका की छवि लोकतंत्र के रक्षक के रूप में है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने लम्बित केसों को निपटाने की नई योजना पर काम करने को प्राथमिकता दी है। उससे यह भरोसा कायम हुआ है कि वह चुनौतियों का मुकाबला करने को तैयार हैं।