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नेपाल में चीन का सीधा दखल

नेपाल में राजनीतिक उठा-पटक के बीच चीन ने उसके आंतरिक मामलों में सीधा दखल देना शुरू कर दिया है।

04:58 AM Dec 29, 2020 IST | Aditya Chopra

नेपाल में राजनीतिक उठा-पटक के बीच चीन ने उसके आंतरिक मामलों में सीधा दखल देना शुरू कर दिया है।

नेपाल में चीन का सीधा दखल
नेपाल में राजनीतिक उठा-पटक के बीच चीन ने उसके आंतरिक मामलों में सीधा दखल देना शुरू कर दिया है। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने अचानक संसद को भंग कर दिया था, उसके बाद नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी दो हिस्सों में बंट गई है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का बंटवारा चीन को नागवार गुजर रहा है।
चीन कम्युनिस्ट पार्टी के अंतर्राष्ट्रीय विंग के उपमंत्री गुओ येजोऊ एक उच्चस्तरीय टीम के साथ नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंच गए और दोनों खेमों से बातचीत में जुट गए हैं। नेपाल में आए सियासी भूचाल के बीच चीन के बढ़ते दखल ने स्थानीय लोगों को भड़का दिया है।
चीन के प्रतिनिधिमंडल के आगमन पर लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने लगे। चीन विरोधी नारे लगाए गए। चीन का यह प्रतिनिधिमंडल नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के बीच मतभेद दूर करने का प्रयास करेगा तथा जमीनी स्थिति का आकलन भी करेगा।
नेपाल के लोगों ने चीन दूतावास के बाहर वापस जाओ के नारे भी लगाए। लोगों को इस बात का अहसास हो चुका है कि चीन मदद के नाम पर नेपाल की जमीन कब्जा रहा है और के.पी. शर्मा ने चीन को खुली छूट दे रखी है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन पर नेपाल की जनता को कोई आश्चर्य नहीं हुआ।
उसकी वजह सिर्फ यही नहीं है कि पिछले कुछ समय में प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली और वरिष्ठ नेता पुष्य कमल दहल प्रचंड के गुटों का टकराव इस हद तक बढ़ गया था कि सबको इसका पहले से ही अंदाजा लग गया था। दरअसल इसकी वजह यह भी है कि जब 2018 में ओली और दहल गुटों का विलय हुआ था तभी किसी गंभीर पर्यवेक्षक को उम्मीद नहीं थी ​कि यह एकता ज्यादा दिन चलेगी। जब विलय हुआ था तब वह विचारधाराओं की एकता नहीं थी। पूर्व माओवादियों के भीतर अपनी समस्याएं थी।
नेपाली कम्युनिस्टांना को अभी भी यह अनुभव नहीं है कि सरकार कैसे चलाई जाती है। के.पी. शर्मा ने अपनी सत्ता बचाने के लिए नेपाल को चीन की गोद में डाल दिया और चीन का हस्तक्षेप बढ़ता ही गया। नेपाल में चीन की राजदूत होऊ यांकी ने दोनों पक्षों में तनाव को कम करने के लिए ओली और प्रचंड के बीच बातचीत कराई थी लेकिन ओली ने संसद भंग कर असंवैधानिक कदम उठा कर गलती कर दी। के.पी. शर्मा ओली का झुकाव चीन की तरफ है।
चीन का प्रतिनिधिमंडल चार दिन तक काठमांडू में रहेगा। चीन ओली के लिये समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है। भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल में तेजी से घटित हो रहे राजनीतिक घटनाक्रमों पर सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह पड़ौसी देश का अंदरूनी मामला है और इस बारे में उसी देश को अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के मुताबिक फैसला करना है लेकिन चीन सीधा हस्तक्षेप करने लगा है।
इस दखलंदाजी को लेकर नेपाल के भीतर ही सवाल उठने लगे हैं। कुछ समय से चीनी राजदूत होऊ यांकी की गतिविधियों पर कई क्षेत्रों में असहजता देखी जा रही थी। यद्यपि कई कम्युनिस्ट नेता चीन से अपना वैचारिक रिश्ता मानते हैं लेकिन एक संवैधानिक लोकतांत्रिक देश में बाहरी ताकत का इस तरह सीधी सक्रियता दिखाना असामान्य है।
विपक्षी नेपाली कांग्रेस चीन के ऐसे दखल पर पहले से ही ऐतराज करती आ रही है, उसके नेता अब भी इस पर सवाल उठा रहे हैं।
सवाल यह भी है कि चीन को नेपाल की इतनी चिंता क्यों है? वैश्विक श​िक्त बनने की होड़ में लगे चीन का नेपाल की अर्थव्यवस्था पर पिछले कुछ वर्षों से कब्जा हो चुका है। यही वजह है कि नेपाल चीन की भाषा बोलता है। भारत के खिलाफ भी नेपाल चीन के सुर में सुर मिला रहा है।
चीन ने नेपाल में काफी धन निवेश कर रखा है। ऐसा नहीं है कि भारत ने नेपाल को कोई कम धनराशि प्रदान की है।  हर संकट के समय भारत ने उसकी भरपूर सहायता ही की है लेकिन नेपाल आज चीन का क्लाइंट स्टेट अथवा ​आश्रित राज्य बन गया है।  चीन ने नेपाल में बड़े प्रोजैक्ट पूरे किये हैं।
नेपाल उसके बी. एंड आर. प्रोजैक्ट में भी शामिल है। चीन ने नेपाल में खास तौर पर ट्रांस हिमालय मल्टी डाइमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क के निर्माण पर कई अरब डॉलर निवेश कर रखा है। वह हर तरह की सैन्य सहायता भी दे रहा है। चीन को यह चिंता सता रही है कि अगर नेपाल के मध्यावधि चुनाव में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में नहीं आई तो उसके अरमानों पर पानी फिर सकता है।
अपनी नीतियों को लागू करने के लिए नेपाल में उनके रास्ते बंद हो सकते हैं। नेपाल में जिस तरह से राजशाही की वापसी की पुरजोर मांग उठ रही है उससे भी चीन की नेपाल पर पकड़ ढीली हो सकती है। ऐसे में चीन को सियासी गतिरोध दूर करने के लिए आगे आना पड़ रहा है।
चीन का प्रयास यह भी हो सकता है कि  ओली को सत्ता से बेदखल कर पुष्य कमल दहल प्रचंड को कुर्सी सौंप दे। कभी प्रचंड को भारत समर्थक माना जाता था लेकिन चीन की भूमिका पर वह भी अब खामाेशी धारण किये हुए हैं। देखना होगा कि राजनीतिक परिदृश्य कैसे बनता है।
अगर कम्युनिस्ट पार्टी दो फाड़ हो रही है तो विपक्षी नेपाली कांग्रेस को लाभ हो सकता है। नेपाल कांग्रेसी पार्टी भारत समर्थक मानी जाती है। भारत ने सदैव नेपाल को अपना मित्र देश माना है। ऐसे मंे नेपाल में चीन के दखल को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाना चाहिए क्योंकि चीन की नियत ठीक नहीं है।
-आदित्य नारायण चोपड़ा
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