जारी हैं चीन की चालबाजियां!
चीन अपनी विस्तारवादी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है और बार-बार भारत को उकसाने की कार्रवाई कर रहा है। विगत 30 अगस्त की रात्रि को उसने फिर से 15 जून जैसी हरकत लद्दाख में करने की कोशिश की जिसमें दोनों ओर की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी और उसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे।
12:01 AM Sep 01, 2020 IST | Aditya Chopra
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चीन अपनी विस्तारवादी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है और बार-बार भारत को उकसाने की कार्रवाई कर रहा है। विगत 30 अगस्त की रात्रि को उसने फिर से 15 जून जैसी हरकत लद्दाख में करने की कोशिश की जिसमें दोनों ओर की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी और उसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे। जवाब मे चीनी सैनिकों को भी भारत के जांबाज सैनिकों ने हलाक किया था परन्तु इसके बावजूद चीन ने अपनी गलती स्वीकार नहीं की थी।
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विगत रात्रि को उसने फिर से लद्दाख में नियन्त्रण रेखा के समीप ऐसी ही हरकत करने की कोशिश की जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया। लद्दाख में चीनी सैनिकों का जमावड़ा लगातार बढ़ा है जबकि वह भारत से सीमा पर शान्ति व सौहार्द बनाये रखने के लिए बातचीत भी कर रहा है।
चीन की यह दोहरी चाल बता रही है कि वह भारत की सामरिक ताकत को कमतर करके आंकने की गफलत कर रहा है परन्तु विगत रात्रि की घटना के बाद उसे एहसास हो गया होगा कि भारतीय फौजें उसकी हर चाल से वाकिफ हैं और किसी भी गफलत में आने को तैयार नहीं हैं मगर अब यह स्पष्ट हो चुका है कि चीन लद्दाख में पूरी नियन्त्रण रेखा को ही बदल देना चाहता है। इसी वजह से उसने 30 अगस्त की रात्रि को लद्दाख की पेगोंग झील इलाके से सटी नियन्त्रण रेखा के नये इलाके में अतिक्रमण करने की कोशिश की।
चीन ने पेगोंग झील की भारतीय सैनिक चौकी चार से आठ तक के आठ कि.मी. के भीतर तक के इलाके में अनाधिकार कब्जा जमाया हुआ है और इस इलाके में वह अब भारी सैनिक जमावड़ा भी कर चुका है तथा नये सैनिक निर्माण भी कर रहा है। बल्कि खबर यह भी है कि वह नियन्त्रण रेखा के समीप प्रक्षेपास्त्र भी तैनात कर रहा है।
चीन की मंशा यदि सीमा पर शान्ति व सौहार्द बनाये रखने की है तो वह इस प्रकार की सैनिक गतिविधियां क्यों कर रहा है? उसकी ये गतिविधियां दोनों देशों के बीच सीमा व नियन्त्रण रेखा को लेकर हुए विभिन्न समझौतों के पूरी तरह खिलाफ हैं। इसके बावजूद भारत अभी तक शान्ति से काम ले रहा है और अपनी तरफ से वह कोई भी ऐसी कार्रवाई नहीं करना चाहता जिससे तनाव बढ़े।
भारत ने 15 जून की घटना के बाद भी बातचीत का रास्ता बन्द नहीं किया। सैन्य व कूटनीतिक दोनों ही स्तरों पर वार्तालाप जारी रखा परन्तु इस कवायद का कोई भी लाभ अभी तक नहीं निकल पाया है क्योंकि चीन एक तरफ वार्ता की मेज पर बैठता है तो दूसरी तरफ नियन्त्रण रेखा पर उसकी सेनाएं अतिक्रमणकारी कार्रवाइयां कर देती हैं।
सैन्य स्तर की ही दोनों तरफ की फौजों के कमांडरों की अभी तक पांच बार वार्ता हो चुकी है और इन वार्ताओं का नतीजा यही निकलता है कि चीन शान्ति बनाये रखने व तनाव कम करने पर सहमत है परन्तु व्यावहारिक स्तर पर वह तनाव को लगातार बढ़ा कर सन्देश दे रहा है कि उसका नियन्त्रण रेखा के भारतीय इलाकों से हटने का कोई इरादा नहीं है। वह एक कदम पीछे हटता है तो दो कदम आगे बढ़ा देता है।
30 अगस्त की रात्रि को उसने यही किया, दरअसल चीन ने लद्दाख में नियन्त्रण रेखा के पार अतिक्रमण किया है उसमें उसकी मंशा भारत को कूटनीतिक दबाव में लेने की है। चीन की कोशिश यह है कि भारत व अमेरिका के बीच पिछले एक दशक में जिस प्रकार के मधुर सम्बन्ध बने हैं उनसे उसके हित टकरा सकते हैं क्योंकि अमेरिका लगातार चीन पर अपनी व्यापारिक नीति मे बदलाव लाने के लिए दबाव डाल रहा है परन्तु चीन के साथ अपने रिश्तों को तय करते हुए हमें पूरी तटस्थता के साथ अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करनी होगी क्योंकि चीन से भारत की सीमाएं चार तरफ से लगती हैं।
वह हमारा सबसे पुराना पड़ोसी देश है जिससे हमारे ऐतिहासिक, वाणिज्यिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं परन्तु इन रिश्तों को मधुर बनाने की जिम्मेदारी केवल भारत पर ही नहीं है बल्कि चीन पर ज्यादा है क्योंकि उसने भारत के शत्रु देश पाकिस्तान को अपनी गोदी में बैठाया हुआ है।
चीन को यह समझना होगा कि पाकिस्तान ने उसे पाक अधिकृत कश्मीर का जो 540 वर्ग कि.मी. इलाका 1963 में खैरात में दिया था वह मूलतः भारतीय इलाका ही है और 1962 से उसके कब्जे में पड़ा हुआ लद्दाख का हिस्सा रहा अक्साई चिन भी भारतीय इलाका है। इस हिसाब से चीन की हैसियत भी भारतीय सन्दर्भों में एक आक्रमणकारी देश की ही है। अतः भारत से सम्बन्ध मधुर बनाने की प्राथमिक जिम्मेदारी चीन की ही है।
जहां तक भारत का सवाल है तो अस्सी के दशक से ही वह चीन से सम्बन्ध मधुर बनाने की कवायद कर रहा है और इतना सहृदय रहा है कि 2003 मंे उसने ‘तिब्बत’ को चीन का अंग भी स्वीकार कर लिया मगर चीन की अकड़ इस हद तक है कि वह भारतीय राज्य लद्दाख की बदली हुई स्थिति को ही दोनों देशों के सम्बन्धों के मध्य अवरोध मानता है जबकि हर दृष्टि से यह भारत का अन्दरूनी मामला है।
भारत की सरकार ने पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य को दो सूबों में बांट कर इस पूरे इलाके से अनुच्छेद 370 को समाप्त किया तो चीन ने इस पर राष्ट्र संघ में आपत्ति दर्ज की। उसकी यह कार्रवाई ही स्वयं में दोनों देशों के सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों के बीच कांटे की तरह चुभने वाली कार्रवाई कही जा सकती थी परन्तु वह जम्मू-कश्मीर में स्वयं को पाकिस्तान के साथ एक तीसरा पक्ष बनने की कवायद में इस तरह जुटा कि उसने लद्दाख में अतिक्रमण कर डाला।
उसका यह कार्य भारत की संप्रभुता को चुनौती देने से कमतर नहीं कहा जा सकता जिसका मुकाबला भारत का बच्चा-बच्चा करेगा और उसके कब्जे में अपनी एक इंच भूमि भी जाने की इजाजत नहीं देगा। दक्षिणी चीन सागर में भारत ने अपना जो जंगी जहाज हाल ही में तैनात किया है उसका निहितार्थ भी यही है कि चीन अपनी नीयत में सुधार करे वरना भारत का अमेरिका व चीन की सैन्य स्पर्धा में फंसने का कोई इरादा नहीं हो सकता। अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करने का अधिकार भारत को भी इस प्रकार है कि वह चीन की चालों का जवाब उसकी ही भाषा में दे।
-आदित्य नारायण चोपड़ा
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