जलवायु परिवर्तन, बड़ा अलर्ट
यह सच है कि आज वैश्विक स्तर पर मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है…
जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों के चलते वैश्विक स्तर पर मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है। भारत में तेज हवाएं, तूफान, और अचानक बारिश जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे कृषि, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह परिवर्तन पृथ्वी की दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन का परिणाम है, जो खाद्य सुरक्षा और जल संसाधनों को प्रभावित कर रहा है।
यह सच है कि आज वैश्विक स्तर पर मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। मौसम का पूरी दुनिया में एक साथ बदलाव चिंता पैदा करता है। भारत में इसका असर भी स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है। यह परिवर्तन कृषि और हैल्थ के साथ-साथ हमारी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। इस जलवायु परिवर्तन के तौर पर भारत में विशेष रूप से पश्चिमी विक्षोम अर्थात् वैस्टर्न डिस्टरबर्टसेंस बनता है, जिस कारण तेज हवाएं, तूफान, बारिश अचानक होने लगती हैं। इसी साल मई महीने में हमने उत्तर भारत विशेष रूप से दिल्ली में इस प्रभाव को देखा और झेला है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े जलवायु सम्मेलन इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मानवीय िवकास के तहत पृथ्वी पर प्रकृति से छेड़छाड़ के परिणाम घातक निकल रहे हैं। सारा साल जिस अंटार्टिका पर बर्फ जमी रहती है, वह समय से पहले पिघल रही है। दुनिया के नक्शे पर देखो तो जंगल कट रहे हैं। परिणाम सबके सामने हैं। अमेरिका में 20-20 दिन तक जंगलों में आग लगती रही, जिससे तापमान बढ़ रहा है और पूरी दुनिया के तापमान में वृद्धि हो रही है। सागर का स्तर बढ़ रहा है। मौसम की प्रकृति में असाधारण परिवर्तन किसी अनिष्ठता का संकेत दे रहा है। अतः यह एक अलर्ट है। हमें संभल जाना चाहिए।
वैज्ञानिक कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन का अर्थ है जलवायु के मापों में महत्वपूर्ण परिवर्तन, जैसे तापमान, वर्षा या हवा, जो लम्बे समय तक – दशकों या उससे अधिक समय तक – बना रहता है। यह एक ऐसा शब्द है जो पृथ्वी की जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तन का वर्णन करता है। पृथ्वी के इतिहास में इसकी जलवायु कई बार बदल चुकी है, जिसमें हिमयुग से लेकर लम्बे समय तक गर्मी की स्थिति जैसी घटनाएं शामिल हैं। इस कड़ी में साक्ष्यों से पता चलता है कि वर्तमान तापमान वृद्धि हिमयुग के बाद होने वाली औसत तापमान वृद्धि की दर से लगभग दस गुना अधिक तेजी से हो रही है। भारत और विश्व पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बहुआयामी हैं, जो कई क्षेत्रों और क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्रमुख चिंताओं में से एक है खाद्य सुरक्षा। जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा को जटिल तरीकों से प्रभावित करता है।
जलवायु परिवर्तन फसल की पैदावार को प्रभावित करता है क्योंकि फसल की पैदावार कच्चे माल पर निर्भर करती है जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन से सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता प्रभावित होती है, जिससे फसल की वृद्धि और उत्पादकता प्रभावित होती है। इससे कीटों के आक्रमण की घटनाएं भी बढ़ सकती हैं। वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत तापमान में 2 डिग्री टैम्परेचर की वृद्धि भी वर्तमान कृषि प्रणालियों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी। राजस्थान में टिड्डी दल का उल्लेख यहां जरूरी है।
वर्षा में बढ़ती अनिश्चितता के कारण जलवायु परिवर्तन से संबंधित सूखे और बाढ़ की घटनाएं बढ़ गई हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से, कृषि योग्य तटरेखाएं जलमग्न हो जाएंगी। कहा जा रहा है कि भारत में अधिकांश कृषि वर्षा पर निर्भर है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण अनिश्चित हो जाएगी, जिससे बार-बार सूखा और बाढ़ आएगी। वर्षा की मात्रा में कमी आएगी, जिससे भारत में मरुस्थलीकरण में भारी वृद्धि होगी। राजस्थान, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य इससे सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
भारत में बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से बाढ़ के कारण कृषि योग्य भूमि का नुकसान होगा। इसका एक प्रमुख उदाहरण हाल के दशक में जम्मू और कश्मीर में आने वाली लगातार बाढ़ है। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्य हिमालयी ग्लेशियरों में आई इस बाढ़ का सबसे अधिक खामियाजा भुगतेंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बाढ़ आने से मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परतें नष्ट हो जाएंगी। इससे उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिससे न केवल भोजन का पोषण मूल्य कम होगा, बल्कि ग्रीनहाउस गैसें भी निकलेंगी, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देंगी।
यह भी सच है कि भारत की तटरेखा काफी लम्बी है, जो बढ़ते समुद्री स्तर और जलमग्न तटीय कृषि योग्य भूमि से प्रभावित होगी। इससे भारत की समुद्री खाद्य प्रणाली को भारी नुकसान होगा। वैज्ञानिकों की नजर में जलवायु परिवर्तन से जल का तापमान बढ़ जाता है, जिससे जल प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है और जलीय आवासों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे पानी का तापमान बढ़ता है, उसमें जैविक रूप से घुली ऑक्सीजन कम हो जाती है, जिसका असर उसमें रहने वाली समुद्री प्रजातियों पर पड़ता है। वहीं पानी के तापमान में वृद्धि के साथ, रोगजनकों और आक्रामक प्रजातियों में वृद्धि होती है जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को नष्ट कर देते हैं। ग्रेट बैरियर रीफ की लुप्त होती चट्टानों में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। सतही जल का तापमान बढ़ने से शैवालों की वृद्धि होती है, जो समुद्री प्रजातियों के जीवन के लिए आवश्यक पोषक तत्वों पर निर्भर होते हैं।
भारत पर प्रभाव नजर आ रहे हैं। भारतीय जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। पूरे देश में मीठे पानी के संसाधनों में उल्लेखनीय कमी आई है। भारत लगातार गंभीर सूखे और बाढ़ का सामना कर रहा है। हाल के दशक में जम्मू और कश्मीर राज्यों में बाढ़ की अधिकता देखी गई है तथा महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र गंभीर जल संकट और सूखे का सामना कर रहा है। हिमालय के ग्लेशियरों के सिकुड़ने के कारण, बारहमासी नदियाँ अपना मार्ग बदल रही हैं, जिससे बाढ़ आ रही है और बुनियादी ढांचे को नुकसान हो रहा है। पिघलते ग्लेशियरों के कारण जलविद्युत उत्पादन में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। सब जानते हैं कि जब समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ता है, तो वह क्षेत्र की ऊपरी उपजाऊ मिट्टी की परत को नष्ट करके कृषि को नष्ट कर देता है।
समुद्री जल मिट्टी में लवणता की एक परत भी जोड़ता है, जिससे कृषि करना कठिन हो जाता है। यह भी सत्य है कि ध्रुवीय बर्फ के पिघलने के कारण समुद्र का स्तर बढ़ने से अंतर्देशीय मीठे जल संसाधनों के लवणीकरण का खतरा बढ़ जाएगा। कुल मिलाकर भारत और विश्व पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बहुत गहरे और बहुआयामी हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए शमन रणनीतियों, अनुकूलन उपायों और तकनीकी नवाचारों को शामिल करते हुए सबको विचार करना होगा तभी इस बड़े खतरे का सामना किया सकता है।