सीएम योगी की दिल्ली यात्रा...
पिछले दिनों यूपी सीएम योगी दिल्ली में थे और वह उस दौरान कई बड़े नेताओं से मिले। एक बड़े नेता ने योगी से कहा कि आप यूपी के दबंग ठाकुर नेता बृजभूषण शरण सिंह से न उलझा करें’, भाजपा के इस नेता का मानना था कि बृजभूषण सिंह का गोंडा व उससे सटे दो-तीन जिलों में खासा प्रभाव है। सो, आने वाले चुनाव में वे इन जिलों में भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं, इसलिए उन्हें जरूरत से ज्यादा न छेड़ा जाए। इस पर योगी ने उनको बैंलेंस करने के लिए मनकापुर के राजा कीर्तिवर्द्धन सिंह का नाम लिया और कहा कि बृजभूषण शरण की काट के तौर पर हम इनको आगे बढ़ा सकते हैं। इस पर नेता ने तत्परता से कहा हमने कीर्तिवर्द्धन सिंह को दिल्ली में पहले से राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी हुई है, पर क्या आपको लगता है कि इन दोनों लोगों की ताकत में कोई मेल है?’ कहते हैं इसके बाद ही योगी बृजभूषण से अकेले में मिलने को राजी हो गए, इन दोनों नेताओं के बीच 2023 के बाद से कोई मुलाकात ही नहीं हुई थी, पर इस बार योगी अपने इस सजातीय ठाकुर नेता से जी खोल कर मिले, और इनके बीच कोई डेढ़ घंटे की अहम बातचीत हुई जो रिश्तों के दरम्यान जम आई बर्फ को पिघलाने के लिए काफी मानी जा सकती है। इसके बाद नेता ने योगी को एक और अहम नसीहत देते हुए कहा कि आपको समय-समय पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस से भी बात करते रहना चाहिए। मैं मानता हूं कि वे न तो आप जितने बड़े ’मास लीडर’ हैं और न ही इतने ही करिश्माई व्यक्तित्व के स्वामी, फिर भी उनकी सहजता ही उन्हें राजनीति में इतना आगे लेकर आई है। एक तो वे सबको साथ लेकर चलने में भरोसा रखते हैं, दूसरा उनमें राजकाज चलाने की प्रशासनिक दक्षता कूट-कूट कर भरी है। योगी ये सूक्त ज्ञान लेकर वापिस लखनऊ लौट आए, केंद्र के साथ एक बेहतर सामंजस्य स्थापित करने का वचन देकर।
जम्मू-कश्मीर कांग्रेस में गुटबाजी
जम्मू-कश्मीर कांग्रेस में गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। अभी पिछले दिनों यहां के प्रदेश अध्यक्ष हामिद कर्रा ने एक नया फरमान जारी कर दिया है, ’हमारी रियासत, हमारा हक’ मूवमेंट की गंभीरता को देखते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने अपने कैडर, अपने जिलाध्यक्षों और अन्य पार्टी नेताओं को मीडिया से दूरी बना कर रखने की ताकीद दी है। कर्रा ने अपने नेताओं को बेहद साफ-साफ हिदायत दी है कि ’पार्टी का कोई भी नेता न तो सोशल मीडिया में, न अखबारों में और न ही टीवी डिबेट में बोलेगा, ना हिस्सा लेगा।’ कर्रा ने पार्टी नेताओं से मीडिया से दूरी बना कर रखने को कहा है। दरअसल, कर्रा का यह फैसला दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए प्रदर्शन के बाद आया है, जहां प्रदेश प्रभारी सईद नासिर हुसैन ने कर्रा विरोधी नेताओं को जानबूझ कर मंच पर जगह दे दी थी, इसके विरोधस्वरूप कर्रा ने दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस का यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया था कि ’उनकी तबियत ठीक नहीं है।’ कर्रा व नासिर हुसैन की यह जंग आने वाले दिनों में और खुल कर सामने आ सकती है।
क्या थरूर की राह चलेंगे तिवारी?
कांग्रेस के चंडीगढ़ के सांसद व पार्टी के तेजतर्रार नेता मनीष तिवारी अपने हाईकमान के ताजातरीन फैसलों से आहत नज़र आते हैं। ’ऑपरेशन सिंदूर’ पर बोलने के लिए जब कांग्रेस ने अपने वक्ताओं की सूची जारी की तो उसमें से तिवारी का नाम नदारद था। हाईकमान का यह फैसला किंचित चौंकाने वाला जरूर था, क्योंकि पेशे से वकील मनीष तिवारी अंतर्राष्ट्रीय मामलों के अच्छे जानकार हैं और वे गौरव गोगोई जैसों की तुलना में कहीं ज्यादा असरदार वक्ता भी हैं। पर तिवारी उसी वक्त से अपने हाईकमान की आंखों की किरकिरी बन गए जब पीएम मोदी ने बड़ी चतुराई से 59 नेताओं व राजनयिकों की टीम में इनका नाम भी शामिल कर लिया था, बिना कांग्रेसी हाईकमान से पूछे। जो ’ऑपरेशन सिंदूर’ में भारत का पक्ष रखने के लिए विभिन्न देशों की यात्रा पर गए थे। इसी सूची में शशि थरूर व सुप्रिया सूले जैसे नेताओं के नाम भी शामिल थे। सनद रहे कि कैसे सुप्रिया सूले ने इस दफे ’ऑपरेशन सिंदूर’ पर बोलते हुए मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ दिए। कांग्रेस हाईकमान को अंदेशा था कि थरूर व तिवारी जैसे लोग भी इसी परिपाटी का अनुसरण करेंगे सो उन्हें कांग्रेस ने अपनी वक्ताओं की सूची में रखा ही नहीं। इससे आहत होकर तिवारी ने सोशल मीडिया पर अपना एक पोस्ट डाला-’भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं।’ जिस दिन प्रियंका गांधी को सदन में बोलना था, मनीष उस रोज प्रियंका से मिले और उनको पहले ही सूचित कर दिया कि ’वे एक कांफ्रेंस के लिए दो दिनों के लिए आज शाम ही लंदन के लिए रवाना हो रहे हैं, सो, वे सदन में उपस्थित नहीं रह पाएंगे।’ इसके बाद ही मनीष ने लंदन की फ्लाइट पकड़ ली।
ओडिशा भाजपा में बगावत के बिगुल
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो ओडिशा भाजपा के 17 असंतुष्ट विधायकों ने दिल्ली आकर यहां अपना डेरा-डंडा जमाया हुआ था। विधायकों के इस ग्रुप ने दिल्ली में भाजपा के कई सीनियर नेताओं से मिल कर उनके समक्ष अपनी गुहार लगाई। सूत्र बताते हैं कि ये विधायक गण ओडिशा के भाजपा राज्य प्रभारी विजयपाल सिंह तोमर, संगठन प्रभारी सुनील बंसल और पार्टी के संगठन महासचिव बीएल संतोष से मिले।
इन विधायकों की शिकायत है कि पूरा राज्य ही नौकरशाहों की गिरफ्त में है, राज्य के मुख्यमंत्री मांझी की अनुभवहीनता का लाभ उठा कर नौकरशाही ने पूरी सरकार ही जैसे ‘टेकओवर’ कर ली है, अगर हालात यूं ही बने रहे तो फिर राज्य में अगली दफा बीजू जनता दल को आने से कोई रोक नहीं सकता। दरअसल, ये असंतुष्ट विधायक मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी की जगह राज्य की बागडोर डिप्टी सीएम कनक वर्द्धन सिंह देव को सौंपने की वकालत कर रहे हैं। समझा जाता है कि भाजपा शीर्ष की ओर से इन विधायकों को यह आश्वासन मिला है कि ’अभी आप वापिस जाइए, दिल्ली में नई व्यवस्था लागू होने तक यानी नया अध्यक्ष आने तक इंतजार कीजिए।’ अब इन विधायकों का दर्द है कि पिछले 7 महीने में वे तीन बार अपनी गुहार लेकर दिल्ली आ चुके हैं, हर बार उनसे यही कहा जाता है कि ’दिल्ली में नई व्यवस्था लागू होने तक इंतजार कीजिए, जब पार्टी इतने दिनों में अपना अध्यक्ष ही नहीं चुन पा रही है तो हमारे भाग्य का क्या फैसला करेगी?’
उत्तराखंड में क्या चल रहा है
उत्तराखंड भाजपा में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। यहां के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ इनके पूर्ववर्ती सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खुल कर मोर्चा खोल दिया है। रावत धामी विरोधी विधायकों व नेताओं के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं। पर इन दिनों रावत ने किंचित स्वर बदल लिए हैं, अब वे अगले सीएम के तौर पर अपना नाम आगे नहीं कर रहे, बल्कि अपनी जगह अनिल बलूनी का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। रावत जानते हैं कि उनके खिलाफ पहले से भ्रष्टाचार के कई मुकद्दमें चल रहे हैं अगर इसमें से एक में भी दोष सिद्ध हो जाए तो उनका सीएम बनना खटाई में पड़ सकता है, शायद इसीलिए अब वे अपनी जगह बलूनी पर सारा दांव लगा रहे हैं। पर उनकी एकमात्र
मुिश्कल यह है कि वे जमीनी नेताओं में शुमार नहीं किए जाते। इस बार का चुनाव भी वे मुश्किल जीत पाए हैं। उनके लिए दूसरी बड़ी समस्या है कि प्रदेश में 40 फीसदी राजपूतों की आबादी है, सो अगर एक राजपूत सीएम (धामी) को हटाया जाता है तो फिर उनकी जगह एक ब्राह्मण (बलूनी) को कैसे राज्य की कमान सौंपी जा सकती है?
...और अंत में
जिस रोज सदन में ’ऑपरेशन सिंदूर’ पर प्रियंका व राहुल गांधी को बोलना था, उस रोज प्रियंका गांधी अपने भाषण से पहले काफी देर तक अपने भाई और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के कमरे में बैठी रहीं। दोनों भाई-बहन के दरम्यान इस बात पर गंभीरता से मनन हुआ कि ’इस मुद्दे पर कौन क्या बोलेगा।’ फिर राहुल ने प्रियंका से कहा कि ’आप ’ऑपरेशन सिंदूर’ के भावनात्मक पहलुओं को उकेरना, और मैं इस ऑपरेशन पर सरकार की गलतियों पर बिंदुवार बोलूंगा। आपके स्पीच की टोन भावनात्मक कनेक्ट वाला रहेगी और मैं विषय वस्तु पर फोकस करूंगा।’ भाई-बहन की इसी रणनीति के दीदार संसद में भी हुए।