कांग्रेस : बापू से लेकर अम्बेडकर तक
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि पिछली सदी में भारत का इतिहास वही रहा है…
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि पिछली सदी में भारत का इतिहास वही रहा है जो कि कांग्रेस पार्टी का इतिहास है मगर वर्तमान 21वीं सदी के शुरू होने से लेकर अब तक कांग्रेस की यह विरासत टुकड़ों में विभाजित हो चुकी है। इस चालू सदी में अब तक कांग्रेस को सबसे बड़ी चुनावी सफलता 2009 के लोकसभा चुनावों में 209 सीटों के साथ मिली और 2014 के चुनावों में यह सबसे कम 44 सीटों पर ही विजय प्राप्त कर पाई और 2019 में इसे केवल 52 सीटें ही मिली।
इससे पूर्व सदी के शुरूआत में 2004 के चुनावों में इसकी सीटें 146 थी। जबकि इसी वर्ष 2024 के चुनावों में इसे 99 सीटें प्राप्त हुईं। कांग्रेस का यह नीचे-ऊपर होता ग्राफ बता रहा है कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाये रखने के लिए प्रयासरत इस तरह है कि भाजपा के सिद्धान्तों से असहमत होने वाले सभी राजनैतिक दल उसके झंडे के नीचे आकर अपना राष्ट्रीय महत्व बनाये रख सकते हैं। इस सदी की शुरुआत से कुछ पहले देश में मतदाताओं का झुकाव भारतीय जनता पार्टी के प्रति होने लगा था क्योंकि 2004 के चुनावों में भाजपा को एक सौ से अधिक सीटें मिली थी जबकि इससे पहले 1998 के चुनावों में इसकी सीटें 166 के आसपास थीं।
1999 के चुनावों में भी कमोबेश यही स्थिति थी। कहने का आशय यह है कि भारत विशेष कर उत्तर भारत के राज्यों में भाजपा ने वह कर दिखाया जो 1951 से ही जनसंघ (भाजपा) का सपना था। मगर 1980 में जब जनता पार्टी से अलग होकर जनसंघ का नामकरण भारतीय जनता पार्टी के रूप में हुआ तो इसने घोषणा की कि वह गांधीवादी समाजवाद के रास्ते पर चलेगी। जनसंघ या भाजपा के रुख में यह बुनियादी परिवर्तन माना गया था। मगर 2014 में भाजपा के फलसफे में एक और परिवर्तन तब आया जब 2014 के चुनावों में राष्ट्रीय स्तर पर श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रवेश किया। 2014 से 2024 तक भाजपा इसी फलसफे पर कायम है और वह चुनाव दर चुनाव जीत भी रही है।
कांग्रेस की तरफ से इस फलसफे का विरोध शुरू से ही होता रहा है मगर 2019 के चुनावों में भाजपा को सबसे अधिक 302 सीटें मिली जो 2024 में घट कर 240 हो गईं। इससे फौरी तौर पर यह नतीजा निकाला जा सकता है कि देश में कांग्रेस के फलसफे के प्रति लोगों में आकर्षण बढ़ रहा है और भाजपा के प्रति आकर्षण घट रहा है। जाहिर है कि देश में कांग्रेस व भाजपा के फलसफों के बीच द्वन्द छिड़ा हुआ है जिसे कांग्रेस की तरफ से श्री राहुल गांधी चला रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में कर्नाटक के बेलगावी शहर में अपनी विस्तारित कार्यसमिति की बैठक की और उसमें एेलान किया कि वह अगले एक वर्ष 2025 में खुद को मजबूत करने के लिए संगठन के स्तर पर ब्लाक स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक पुनर्गठन करेगी और अपने फलसफे के आधार पर अपने एजेंडे को राष्ट्रीय स्तर तक फैलायेगी।
इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी ने संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर की विरासत को भी अपने एजेंडे में शामिल कर लिया है। यह विरासत संविधान में उल्लेखित मानवतावाद के सिद्धान्त की है। यह बिना शक के लिखा जा सकता है कि बाबा साहेब एेसी शख्सियत थे जिन्होंने हिन्दू संस्कृति में जाति के आधार पर ऊंच-नीच का विरोध करने के क्रम में अपने जीवन के अन्तिम वर्ष 1956 में हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया। वह कहा करते थे कि मेरा जन्म हिन्दू धर्म में अवश्य हुआ है मगर मैं हिन्दू होकर नहीं मरूंगा। इसलिए कांग्रेस पार्टी की कोशिश अब यह रहेगी कि वह बाबा साहेब की विरासत को अपने दायरे में ले।
बाबा साहेब ने दलितों को बराबरी का हक दिलाने के संघर्ष में अपना पूरा जीवन होम कर डाला परन्तु वह महात्मा गांधी के फलसफे से ज्यादा दूर नहीं जा पाये क्योंकि गांधी ने भी हिन्दू धर्मावलम्बियों से दलितों को बराबरी का हक दिलाने के लिए संघर्ष छेड़ा था और इस क्रम में उन्हें हरिजन कह कर पुकारा था। कांग्रेस के बेलगावी सम्मेलन में यह भी घोषणा की गई कि गांधी की विरासत को वर्तमान भारत में खतरा है। निश्चित रूप से यह विरासत सामाजिक भाईचारे से लेकर आर्थिक उत्थान की है। अब कांग्रेस पार्टी की बेलगावी बैठक कह रही है वह राष्ट्रीय स्तर पर जय बापू, जय भीम और जय संविधान मुिहम चलायेगी। इसका मतलब निकलता है कि कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व अपनी कमजोर होती जड़ों को नये सिरे से खाद-पानी देने का प्रयास कर रहा है।
बात पुरानी है तो मगर इतनी पुरानी भी नहीं वर्तमान समय के बुजुर्गों को वह कहानी भी न मालूम हो जो कभी आजादी के अगले साल में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे समाजवादी चिन्तक आचार्य कृपलानी ने कही थी। आचार्य जी 1963 में अमरोहा-मुरादाबाद सीट से लोकसभा का उपचुनाव लड़ रहे थे। वह प्रजा समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी थे औऱ कांग्रेस ने उनके मुकाबले अपने तपे हुए नेता हाफिज मुहम्मद इब्राहीम को उतारा था। ङाफिज जी तब राज्यसभा में कांग्रेस की तरफ से सदन के नेता थे। हाफिज जी भी स्वतन्त्रता सेनानी थे और आचार्य कृपलानी भी। आचार्य जी ने तब मुरादाबाद के कम्पनी बाग में अपनी जनसभा की और कहा कि कांग्रेस को हराना बहुत आसान है। उसका चुनाव निशान दो बैलों की जोड़ी है। अगर ये दोनों बैल खोल दिये जायें तो कांग्रेस खत्म हो जायेगी। इसी तरह कांग्रेस की असली ताकत मुसलमान और दलित हैं। अगर इन दोनों समुदायों के वोट कांग्रेस को न मिलें तो कांग्रेस हार जायेगी। उस समय तो उनके बयान पर उनकी पत्नी श्रीमती सुचेता कृपलानी ने ही बहुत तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और आचार्य जी के बयान को साम्प्रदायिक कहा। मगर चुनाव में हाफिज मुहम्मद इब्राहीम थोड़े अन्तर से हार गये और आचार्य जी विजयी हुए।
यदि हम वर्तमान सदी से पहले के दस साल जोड़ कर वर्तमान सदी की कांग्रेस को देखें तो इसका असल जनाधार उत्तर भारत के ही क्षेत्रीय दलों ने हथिया लिया है लेकिन कांग्रेस को अब एेसे ही कुछ दलों को साथ लेकर चलना है। इनमें से कुछ तो उसका ही अंश है जैसे तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस या वाई.एस.आर. कांग्रेस आदि। अतः कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों ने जय बापू, जय भीम के उद्घोष के साथ जय संविधान जोड़कर राजनीति को बहुत ही दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। बेलगावी से डा. अम्बेडकर के जन्मस्थान मध्य प्रदेश के महू तक जागरूकता अभियान चला कर कांग्रेस पार्टी पुनः अपनी जड़ों से जुड़ने का प्रयास कर रही है। इसके साथ ही वर्ष 2025 के दौरान पार्टी अपने संगठन को भी मजबूत करेगी और संविधान बचाओ मुिहम भी चलायेगी।
पार्टी अपना यह सन्देश गांव-गांव किस तरह चलायेगी, यह देखने वाली बात होगी। संविधान एेसा मुद्दा है जिस पर देश के दलितों को नाज है और वे बाबा साहेब को इसका प्रतीक मानते हैं। वस्तुतः कांग्रेस पार्टी भाजपा की तरह ही अब प्रतीकों के माध्यम से जनसमर्थन जुटाने और अपने विमर्श को फैलाने की राह पर चल पड़ी है। पार्टी जातिगत जनगणना के मुद्दे को इसी वजह से नहीं छोड़ रही है जिससे उपकी उपस्थिति हर सम्प्रदाय व समुदाय में महसूस की जा सके। 2025 की राजनीति बहुत रोचक हो सकती है जिस पर सबसे ज्यादा पैनी निगाहें भाजपा की ही रहेंगी। क्योंकि कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे स्वयं एक दलित नेता हैं।