कांग्रेस, ऑपरेशन सिन्दूर और मोदी की लोकप्रियता
पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिन्दूर को लेकर देश की विपक्षी पार्टी कांग्रेस का…
पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिन्दूर को लेकर देश की विपक्षी पार्टी कांग्रेस का जो रुख रहा है उससे देशवासियों को पीड़ा हुई है और कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा इसे छिट-पुट लड़ाई बताने से लोगों में सन्देश गया है कि भारत की सेनाओं द्वारा जो जांबाजी पाकिस्तान के खिलाफ दिखाई गई उसका कमतर मूल्यांकन किया गया है। इसे हम विरोधाभास ही कहेंगे क्योंकि 1971 के बंगलादेश युद्ध में कांग्रेस पार्टी की तत्कालीन सरकार ने ही पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो देशों में विभक्त कर दिया था। उसी पार्टी के आज के अध्यक्ष यदि आपरेशन सिन्दूर को छिट-पुट लड़ाई बताते हैं तो कई प्रकार के सवाल उठना लाजिमी है।
बेशक आपरेशन सिन्दूर का पहला चरण केवल चार दिन 7 मई से लेकर 10 मई तक ही चला मगर इससे भारतीय सेनाओं की युद्धक क्षमता कम करके नहीं आंकी जा सकती है। सच तो यह है कि इन चार दिनों में ही भारत की वीर सेनाओं ने पाकिस्तान को भीतर तक इस हद तक झिंझोड़ कर रख दिया कि खिसियाहट में उसे अपने थल सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाना पड़ा। इसी से पाकिस्तानी सेना की आन्तरिक कमजोरी का अन्दाजा लगाया जा सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष को टिप्पणी करने से पहले यह विचार करना चाहिए था कि पाकिस्तान को लेकर भारत के लोगों की भावनाएं क्या हैं?
अधिसंख्य भारतवासियों की नजर में पाकिस्तान एक एेसा नाजायज मुल्क है जो हिन्दू-मुस्लिम रंजिश के आधार पर बना हुआ है जबकि भारत में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान रहते हैं। पाकिस्तान एक एेतिहासिक त्रासदी के रूप में आज भी हमारे सामने खड़ा हुआ है क्योंकि इसकी बुनियाद ही 1947 में कम से कम दस लाख लोगों की लाशों पर रखी गई थी। अतः सिर्फ नफरत की बुनियाद पर खड़े किये गये उस मुल्क के खिलाफ सेनाओं का मैदान में उतरना छिट-पुट घटना नहीं हो सकती जो पिछले 35 सालों से आतंकवाद को हथियार बना कर भारत के खिलाफ छद्म युद्ध लड़ रहा है। श्री खड़गे को ध्यान रखना चाहिए था कि वह उस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं जिसके सरपरस्त कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रहे हैं जिन्होंने अपने पूरे जीवन में केवल एक बार ही हिंसा की वकालत की थी। वह पाकिस्तान के मामले में कश्मीर को लेकर ही थी।
1947 अक्टूबर में जब जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी सेनाओं ने कबायलियों के वेश में आक्रमण किया और 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा हरिसिंह ने अपने राज्य का भारतीय संघ में विलय कर दिया तो पाकिस्तानी सेनाओं का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेनाएं भेजे जाने का समर्थन महात्मा गांधी ने किया था और तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू से कहा था कि जब देश की सीमाओं पर खतरा हो तो सैनिकों का धर्म केवल लड़ना होता है। आज 77 वर्ष बाद विगत 22 अप्रैल को पाकिस्तान से आये आतंकवादी कश्मीर के पहलगाम में यदि हमारे 27 मासूम नागरिकों की जघन्य हत्या उनका धर्म पूछ कर करते हैं तो भारत की सरकार किस तरह चुप बैठ सकती है और वीर सेनाओं को इसका बदला लेने के लिए क्यों नहीं प्रेरित कर सकती है।
इसके बावजूद हमारी सेनाओं ने पाकिस्तान में सक्रिय नौ आतंकवादी ठिकानों को केवल 22 मिनट के भीतर नेस्तनाबूद कर दिया और सन्देश दिया कि यह कार्रवाई कोई हमला नहीं बल्कि आतंकवाद से मुक्ति की तरफ उठाया गया कदम है। परन्तु कांग्रेस पार्टी ने यहां भी चूक कर दी और इसके नेता राहुल गांधी ने विदेश मन्त्री एस. जयशंकर के उस बयान को एक मुद्दा बना दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत ने पाकिस्तान को कह दिया था कि आपरेशन सिन्दूर केवल आतंकवादी ठिकानों को तहस– नहस करने के लिए है पाकिस्तान के सैनिक ठिकानों को निशाना बनाने के लिए नहीं। हद तो यह हो गई कि कांग्रेस के प्रवक्ता ने विदेश मन्त्री को पाकिस्तान का ‘मुखबिर’ तक कह डाला। दरअसल कांग्रेस की एेसी बयान बाजी को भारत के आम लोगों ने बहुत हिकारत से देखा और इसे एक विपक्षी पार्टी के विरोध के रूप में लिया।
7 मई को आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने के बाद पाकिस्तान की फौजों ने ही पहले भारत पर आक्रमण किया जिसके जवाब में भारत की सेनाओं ने लोहा लिया और पाकिस्तान के 11 सैनिक हवाई अड्डों को अपना निशाना बनाया। इस पूरे घटनाक्रम में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी एक नायक के रूप में उभरे। उन्होंने 7 मई से पहले ही 24 अप्रैल को बिहार में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए एेलान कर दिया था कि आतंकवादियों को एेसा सबक सिखाया जायेगा जो कल्पना से भी परे होगा। आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने का काम जल्दी ही किया जायेगा। और एेसा 7 मई को हो भी गया।
आपरेशन सिन्दूर के बाद श्री मोदी की लोकप्रियता में इजाफा होना बताता है कि भारत के लोगों ने कांग्रेस पार्टी की नुक्ताचीनी को समयानुरूप नहीं माना है खास कर श्री राहुल गांधी का सरकार से यह पूछना कि वह बताये कि आपरेशन सिन्दूर में कितने भारतीय लड़ाकू विमान नष्ट हुए हैं। इस बारे में जब स्वयं सेना के अफसर कह चुके हैं कि भारतीय वायुसेना के सभी पायलट अफसर सुरक्षित हैं तो सवाल की प्रासंगिकता क्या बचती है। मगर एक विरोधाभास कांग्रेस के रुख में और भी देखने को मिला कि एक तरफ तो श्री खड़गे आपरेशन सिन्दूर को छिट-पुट संघर्ष मान रहे हैं तो दूसरी तरफ इसी मुद्दे पर उनकी पार्टी संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग कर रही है। दोनों चीजें एक साथ किस प्रकार संभव हैं?
कांग्रेस के नेता इस सन्दर्भ में 1962 के भारत-चीन युद्ध का हवाला दे रहे हैं और कह रहे हैं कि उस समय युद्ध के चलते ही जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की मांग पर स्व. प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने संसद का विशेष सत्र बुलाया था। इसके लिए सबसे पहले कांग्रेस को स्वीकार करना होगा कि भारत- पाक के बीच कोई छिट-पुट संघर्ष नहीं हुआ बल्कि बाकायदा चार दिवसीय युद्ध हुआ। इससे कांग्रेस की दुविधा का पता लगता है। बेशक कांग्रेस ने पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा भेजे गये बहुदलीय प्रतिनििधमंडलों का समर्थन किया परन्तु इसमें एक दफा लगा दी कि उसके सांसदों के नाम सरकार द्वारा तय किये जाने की जगह पार्टी को तय करने चाहिए थे। इसका जवाब भी खुद कांग्रेस के भीतर से ही कांग्रेस को मिल गया है।
इस पार्टी के वरिष्ठतम नेता श्री पी. चिदम्बरम ने इस विवाद के सन्दर्भ में राय व्यक्त की कि किसी भी विरोधी दल के सांसद का चुनाव करने का हक सरकार को है क्योंकि विदेशों में विभिन्न पार्टियों के नेता अपनी पार्टी का मत नहीं बल्कि सरकार का पक्ष रखेंगे। श्री चिदम्बरम भारत के वित्त व गृहमन्त्री रह चुके हैं। कांग्रेस की तरफ से वह राज्यसभा में भी हैं। उनकी बात का वजन इस हकीकत से ही मापा जा सकता है कि जब भी भारत पर कोई बाहरी संकट आता है तो संसद से लेकर सड़क तक सभी लोग राष्ट्र रक्षा में आ जाते हैं। ऐसे समय में हर नागरिक का धर्म केवल ‘राष्ट्रधर्म’ होता है।