कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव !
अगले महीने होने वाले कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव को लेकर इस दल के नेता जिस प्रकार जिज्ञासा प्रकट कर रहे हैं, उसका लोकतन्त्र में स्वागत किया जाना चाहिए।
01:56 AM Sep 12, 2022 IST | Aditya Chopra
Advertisement
अगले महीने होने वाले कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव को लेकर इस दल के नेता जिस प्रकार जिज्ञासा प्रकट कर रहे हैं, उसका लोकतन्त्र में स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि देश में प्रजातन्त्र को मजबूत रखने की पहली शर्त यही होती है कि इसे चलाने वाले राजनैतिक दलों के भीतर भी आन्तरिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था व्यापक व पुख्ता होनी चाहिए। इस मामले में कांग्रेस पार्टी का इतिहास शानदार और बेमिसाल रहा है क्योंकि केवल पार्टी अध्यक्ष को लेकर ही नहीं बल्कि इसके सत्ता में रहते हुए संसदीय दल के नेता (प्रधानमन्त्री पद) के लिए भी चुनाव होता रहा है। 1966 जनवरी महीने में जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई थी तो इस पद के लिए कांग्रेस संसदीय दल में बाकायदा चुनाव हुआ था और मुकाबला स्व. मोरारजी देसाई व श्रीमती इन्दिरा गांधी के बीच हुआ था। उस समय इस चुनाव की चर्चा केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक हुई थी। उस समय स्व. कामराज नाडार कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे जिनके निर्देश पर यह चुनाव हुआ था हालांकि उनकी पसन्द श्रीमती गांधी थी मगर उन्होंने स्व. मोरारजी भाई के दावे का सम्मान किया था और दोनों नेताओं के बीच गुप्त मतदान करा कर नये प्रधानमन्त्री की घोषणा की थी। वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी विपक्ष में है और इसकी चुनौतियां दूसरी हैं।
Advertisement
2019 के बाद से पार्टी के पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। किसी भी गतिशील राजनैतिक दल के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। अध्यक्ष न होने की वजह से पार्टी के कई नेताओं ने बीच-बीच में ‘नेतृत्व’ विहीनता का प्रश्न भी उठाया। जिन नेताओं ने यह सवाल उठाया था उन्हें ‘जी -23’ गुट के रूप में जाना गया। इनमें से कुछ अब पार्टी छोड़ कर भी जा चुके हैं। परन्तु इनकी चिन्ता को गैर वाजिब तब भी नहीं माना गया था। उन सारी परिस्थिितयों में पार्टी ने इस वर्ष के अक्तूबर महीने में अध्यक्ष चुनाव कराने का फैसला किया और पार्टी संविधान के अनुसार मुख्य चुनाव अधिकारी के रूप में वरिष्ठ नेता श्री मधुसूदन मिस्त्री की नियुक्ति की जिन्होंने पूरी चुनाव प्रक्रिया व मतदान की तारीख मुकर्रर की। इसके बाद केरल से पार्टी सांसद शशि थरूर ने यह सवाल खड़ा किया कि पार्टी को अध्यक्ष पद के निर्वाचक मंडल की जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। यह सवाल स्वयं में बहुत ही अधकचरा था क्योंकि राजनैतिक दल कभी भी अपने राजनैतिक सदस्य निर्वाचक मंडल को सार्वजनिक नहीं करते हैं। मगर थरूर नये-नये कांग्रेसी ही समझे जायेंगे जिन्हें पार्टी ने बहुत जल्दी ही अपने शासनकाल में मन्त्री पद से भी नवाज दिया था। अतः उनका अति उत्साह समझा जा सकता था। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री आनन्द शर्मा ने जब इस मांग का समर्थन किया तो एक पक्के कांग्रेसी की तरह पार्टी संविधान के तहत ही निर्वाचक मंडल की जानकारी देने की मांग की। पार्टी संविधान यह है कि अध्यक्ष पद के प्रत्येक प्रत्याशी को अपना नामांकन पत्र भरने के बाद निर्वाचक मंडल अर्थात वोटरों की सूची पकड़ा दी जायेगी।
Advertisement
इसके बावजूद पांच लोकसभा सांसदों सर्वश्री मनीष तिवारी, शशि थरूर, कार्ति चिदम्बरम्, प्रद्युक बारदोलाई व अब्दुल खालिक ने श्री मिस्त्री को पत्र लिख कर वोटरों की सूची जारी करने की मांग कर डाली। हालांकि इसमें कोई बुराई नहीं है और इससे यही पता चलता है कि कांग्रेस अपनी 136 वर्ष पुरानी विचार वैवध्य की स्वस्थ परपंरा पर कायम है मगर एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस के संसद सदस्यों तक को पार्टी संविधान की पूरी जानकारी है? अतः श्री मिस्त्री ने इन पांचों महानुभावों के खत का उत्तर लिख कर स्पष्ट कर दिया कि घोषित चुनाव प्रक्रिया के अनुसार आगामी 20 सितम्बर से उनके कार्यालय में विभिन्न प्रदेश कांग्रेस के वोटरों ( डेलीगेट) की सूची तैयार मिलेगी जिससे अध्यक्ष पद का कोई भी प्रत्याशी दस वोटरों की अनुशंसा के साथ अपना नामांकन पत्र 24 सितम्बर को जमा कर सकता है। जैसे ही उसका नामांकन पत्र स्वीकृत होगा उसे वोटरों की सूची उपलब्ध करा दी जायेगी। दस डेलीगेट या वोटरों के नाम वह प्रदेश कांग्रेस मुख्यालयों में रखी वोटर सूची से चुन सकता है। सभी 28 राज्यों व नौ केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों के दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय द्वारा प्राधिकृत प्रतिनिधि (डेलीगेट) ही मतदाता होंगे और प्रत्येक प्रदेश के डेलीगेटों की सूची वहां के कांग्रेस मुख्यालय में उपलब्ध रहेगी। अतः बहुत स्पष्ट है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव कोई भी कांग्रेसी नेता चुनाव लड़ सकता है बशर्ते कि उसके नाम की अनुशंसा करने के लिए दस डेलीगेट हों।
Advertisement
डेलीगेटों को पहचानने में दिक्कत न हो इसके लिए केन्द्रीय कांग्रेस मुख्यालय होलोग्राम युक्त विशेष परिचय पत्र जारी कर रहा है। अब अध्यक्ष पद का चुनाव इस तरह होना चाहिए कि पार्टी का आन्तरिक लोकतन्त्र चहक उठे और आम जनता को भी पता लग सके कि किसी राजनैतिक दल के चुनाव किस तरह होते हैं और उनकी भारत के लोकतन्त्र में कितनी महत्ता होती है। इससे पहले ताजा इतिहास में 1997 में सर्वश्री शरद पंवार, राजेश पायलट व सीताराम केसरी के बीच कांटे की टक्कर हुई थी। उसके बाद 2001 में स्व. जितेन्द्र प्रसाद ने श्रीमती सोनिया गांधी के समक्ष चुनाव लड़ कर कांग्रेस की परंपरा में जान डाली थी। अब 2022 के चुनाव लोकतन्त्र की सर्वत्र जय बोलते हुए होने चाहिएं। हर उस कांग्रेसी को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहिए जिसे अपने ऊपर भरोसा हो और पार्टी की विचाधारा में अटूट विश्वास हो। लोकतन्त्र में अन्ततः विचारधारा ही मायने रखती है। पार्टी के मतदाताओं को ऐसे लोगों से बचना होगा जो मुसीबत के वक्त में हार-थक कर बैठ जाते हैं। ऐसे लोगों की फितरत ऐसी होती है,
‘‘हुए हैं पांव पहले ही नबर्दे-इश्क में जख्मी
न भागा जाये है मुझसे न ढहरा जाये है मुझसे।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Join Channel