For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

कांग्रेसः बदलते वक्त की दस्तक

कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो गहमागहमी बढ़ रही है वह भारत के लोकतन्त्र के लिए शुभ लक्षण कहा जायेगा।

02:48 AM Sep 22, 2022 IST | Aditya Chopra

कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो गहमागहमी बढ़ रही है वह भारत के लोकतन्त्र के लिए शुभ लक्षण कहा जायेगा।

कांग्रेसः बदलते वक्त की दस्तक
कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो गहमागहमी बढ़ रही है वह भारत के लोकतन्त्र के लिए शुभ लक्षण कहा जायेगा। सवाल यह नहीं है कि श्री राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बनते हैं या नहीं, सवाल यह भी नहीं है कि कितनी प्रदेश कांग्रेस पार्टियां उनके नाम का प्रस्ताव पारित करती हैं बल्कि असली सवाल यह है कि देश को स्वतन्त्रता दिलाने वाली इस पार्टी में आज भी महात्मा गांधी द्वारा स्थापित की गई परंपरा का पालन करने की कूव्वत है या नहीं। गौर से देखा जाये और अभी तक की राजनीतिक परिस्थितियों का जायजा लिया जाये तो श्री राहुल गांधी चुनाव लड़ने की मुद्रा में नहीं हैं और चाहते हैं कि इस बार उनकी पार्टी का अध्यक्ष कोई उनके परिवार से बाहर का तपा हुआ कांग्रेसी बने। उनकी यह सोच आज की राजनीति के दौर को देखते हुए आदर्शवादी और व्यावहारिक भी मानी जा सकती है क्योंकि उनकी पार्टी पर परिवारवाद का आरोप भी उनके विरोधियों द्वारा अक्सर लगाया जाता रहा है। यदि राहुल गांधी इसके समानान्तर कोई कांग्रेसी विमर्श खड़ा करना चाहते हैं तो इससे आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को निराश नहीं बल्कि उत्साहित होना चाहिए। इस समय जरूरी यह नहीं है कि राहुल गांधी अध्यक्ष बने बल्कि जरूरी यह है कि कांग्रेस मजबूत बने क्योंकि देश में राष्ट्रीय विपक्ष का विकल्प सिकुड़ता जा रहा है और क्षेत्रीय दलों में से किसी में भी इतनी क्षमता नहीं है कि उनमें से कोई एक भी कांग्रेस का विकल्प बन सके। इसकी वजह यह है कि भारत में क्षेत्रीय दलों का विकास जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नहीं हुआ बल्कि इन दलों के नेताओं की निजी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए हुआ। इसी वजह से इन्होंने विभिन्न राज्यों में मतदाताओं की पहचान को उनकी जाति, सम्प्रदाय ,समुदाय व वर्ग से जोड़ कर अपनी राजनीतिक दुकानें चमकाईं। इसमें बेशक सबसे बड़ा नुकसान भी कांग्रेस का ही हुआ क्योंकि यह पार्टी अपनी शानदार विरासत और जानदार सिद्धान्तों के चलते मतदाताओं को विभिन्न जाति-धर्म के खानों में कैद नहीं कर सकती थी।
Advertisement
यह समझना भूल होगी कि कांग्रेस के पास राष्ट्रवाद का कोई मूल विचार नहीं है। हकीकत तो यह है कि स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान मुहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस को हिन्दू पार्टी कहता था और अंग्रेज इसे राष्ट्रवादी पार्टी बताते थे। परन्तु कांग्रेस ने अपना फलक को इस कदर फैला रखा था कि इसके सम्मेलनों में नेतागण आम कार्यकर्ताओं को ‘कामरेड’ कह कर सम्बोधित किया करते थे। यह कांग्रेस की ‘पंचनद’ विचारधारा ही थी कि हिन्दू महासभा के महान नेता पं. मदन मोहन मालवीय अपने अन्तिम वर्षों में इसी पार्टी के सदस्य रहे। वर्तमान में यह पार्टी वैचारिक मति भ्रम में इस वजह से दिखाई पड़ती है क्योंकि इसके समक्ष चुनौतियों का ऐसा जंजाल है जिसे इसके द्वारा की गई कुछ गलतियों के तारों से बुना गया है। मगर राजनीति ही गलती करने और उनमें सुधार करने की प्रक्रिया का नाम होता है, अतः इसमें असामान्य कुछ भी नहीं है।
 ताजा कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव पार्टी के लिए एक अवसर भी लेकर आया है कि वह किस प्रकार भारत के लोगों को यकीन दिलाये इसकी जड़ों में घुले हुए लोकतन्त्र की घुट्टी से किस तरह जन जागरण का श्री गणेश कर सकती है और योग्यता व परिश्रम को पैमाना बना कर आम आदमी के हाथ में सत्ता सौंपने के लोकतन्त्र के सिद्धान्त को चरितार्थ कर सकती है। हालांकि अभी तक किसी नेता ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा नहीं है और नाम वापस लेने की तिथि 30 सितम्बर है परन्तु दो नाम उभर कर सतह पर आ रहे हैं। पहला नाम शशि थरूर का है और दूसरा राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत का है। जरूरी नहीं कि अंतिम समय तक ये दो नाम ही गूंजते रहें, कोई तीसरा या चौथा नाम भी आ सकता है। अतः 30 तारीख तक इन्तजार करना बेहतर होगा। लेकिन जो भी कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा वह आम कांग्रेसियों के बीच से ही बनेगा।
लोकतन्त्र में पार्टी अध्यक्ष का रुतबा सबसे ऊंचा होता है। यदि उसी पार्टी की सरकार हो तो पार्टी की सभा में प्रधानमन्त्री भी उसी के मातहत काम करता है। एेसा  स्व. कामराज ने पार्टी अध्यक्ष रहते हुए सिद्ध करके भी दिखाया था। बाद में इंदिरा जी के शासन के दौरान यह परंपरा छूट गई, जिसके कुछ अपने ऐतिहासिक कारण हैं जिन पर प्रकाश डालने का यह समय नहीं है, परन्तु इतना निश्चित है कि वर्तमान समय पार्टी को लीक से हट कर कुछ नया करने को कह रहा है जिससे 136 साल पुरानी यह पार्टी खुद में ‘दम’ भर सके और विपक्ष की भूमिका दमदार तरीके से निभा सके। लोकतन्त्र तो लोगों की चाहत से चलता है और वही पार्टी इनाम की हकदार बनती है जो जनता की आवाज को अपने सुर देकर तराने में बदल देती है। वक्त इसके लिए कभी खत्म नहीं होता।
Advertisement
 ‘‘मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहे जिस वक्त 
   मैं गया वक्त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×