संविधान दिवस का सन्देश
निश्चित रूप से यह भारतीय संविधान की ताकत ही है कि इसके माध्यम से श्री नेरन्द्र मोदी जैसा चाय बेचने वाले गरीब परिवार में पैदा हुआ बच्चा आज देश का प्रधानमन्त्री बना हुआ है। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को एक समान अधिकार देता है और प्रत्येक नागरिक को अपनी प्रतिभा के अनुसार विकास करने के अवसर सुलभ कराता है। भारत के प्रत्येक नागरिक को जो एक वोट का अधिकार दिया गया है उसी का यह कमाल है कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी देश के सर्वोच्च पद पर बैठने का सपना पाल सकता है। भारत के लोकतन्त्र की सबसे बड़ी खूबी यही है कि एक वोट की ताकत से आम आदमी सत्ता की कुर्सी पर जा बैठता है। अतः इस एक वोट की लोकतन्त्र में कोई भी कीमत नहीं लगाई जा सकती है। परन्तु यह तस्वीर का एक पहलू है।
दूसरा पहलू यह है कि संविधान जिस बराबरी का अधिकार नागरिकों को देता है उसकी मार्फत एक झोपड़ी में पैदा हुआ व्यक्ति महलों में पैदा हुए राजा-महाराजाओं का भी मुकाबला कर सकता है। इसका प्रमाण यह है कि 1971 के लोकसभा चुनावों में साधारण परिवेश से आने वाले लोगों ने देश के उद्योगपतियों से लेकर पूर्व राजा-महाराजाओं तक को चुनावों में परास्त किया। बेशक ये उद्योगपति या राजा-महाराजा किसी भी पार्टी के टिकट से खड़े हुए हों मगर इन्हें हराया साधारण वर्ग से आये हुए लोगों ने ही। इन चुनावों में देश के बिड़ला समूह के अधिपति स्व. के.के. बिड़ला को राजस्थान के झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र से हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं टाटा समूह के अधिपति मुम्बई से हारे और फरीदाबाद से एस्कार्ट्स ट्रैक्टर कम्पनी के मालिक एच.पी. नन्दा धराशायी रहे। जबकि गुड़गांव सीट से पटौदी रियासत के नवाब व क्रिकेट के मशहूर खिलाड़ी मरहूम मंसूर अली खान पटौदी अपनी जमानत तक जब्त करा बैठे।
भरतपुर के महाराज बृजेन्द्र सिंह अपनी रियासत के पूर्व कर्मचारी से चुनावी मैदान में हार गए। इसी प्रकार 1977 के आम चुनावों में मध्यप्रदेश की रीवा रियासत के महाराजा मार्तंड जू सिंह देव को एक नेत्रहीन प्रत्याशी स्व. के.के. शास्त्री ने चुनाव में हरा दिया। यह सब भारत के लोकतन्त्र में ही संभव था क्योंकि इसका संविधान सभी नागरिकों को एक तराजू पर रखकर तोलता है। इतना ही नहीं यदि हम भारत के उद्योगपतियों का इतिहास भी निकाले तो पायेंगे बहुत छोटे स्तर पर कारोबार करने वाले लोग कालान्तर में देश के जाने-माने उद्योगपति बने। इनमें स्व. रामकृष्ण डालमिया व किर्लोस्कर आदि का नाम लिया जा सकता है। परन्तु संविधान की सबसे प्रमुख बात यह है कि यह भारत की पांच हजार साल पुरानी संस्कृति में पहली एेसी पुस्तक है जो लोगों को विभिन्न ऊंच-नीच के खांचों में नहीं रखती बल्कि मानवता के आधार पर हर व्यक्ति को एक बराबरी पर रखती है और सबके अधिकार बराबर देती है। इसमें न धर्म आड़े आता है और न जाति। इंसानियत के आधार पर इसमें प्रत्येक व्यक्ति को समान न्याय पाने का अधिकार है। इसी संविधान दिवस को पूरा देश 26 नवम्बर को मनाता है। इसी दिन 1949 में संविधान निर्माता डाॅ. भीमराव अम्बेडकर ने इसे संविधान सभा को सौंपा था। डाॅ. भीमराव अम्बेडकर स्वयं समाज के सबसे निचले तबके से आते थे और भारतीय समाज की विसंगतियों को बखूबी समझते थे। इसलिए उन्होंने संविधान में सन्त कबीर से लेकर गुरू नानक तक के फलसफों का समावेश किया और सभी भारतीयों को इंसानियत के नजरिये से देखा। भारत में राष्ट्रपति को इसी संविधान का संरक्षक माना जाता है अतः उन्होंने संविधान दिवस पर सन्देश दिया कि हमारा संविधान भारतीयों को दास मानसिकता से बाहर लाने का पुरअसर दस्तावेज है। इसकी वजह यह है कि भारत लगातार दो सौ साल तक अंग्रेजों की गुलामी में रहा है जिसकी वजह से इसके लोगों में गुलामी की मानसिकता घर कर गई थी। महात्मा गांधी ने इसी दास मानसिकता को बाहर निकालने के लिए जो स्वतन्त्रता आन्दोलन चलाया उसके केन्द्र में भारत का आम नागरिक ही था। बापू चाहते थे कि आम हिन्दुस्तानी में आत्मसम्मान व आत्मगौरव का भाव जगे इसके लिए उन्होंने 1928 में ही घोषणा की कि स्वतन्त्र भारत में प्रत्येक वयस्क नागरिक को एक वोट का एेसा अधिकार दिया जायेगा जिसमें सरकारें बनाने व बदलने की ताकत होगी। इस एक वोट के अधिकार के माध्यम से भारत का नागरिक स्वयंभू बनेगा जिसके आगे बड़े से बड़े व्यक्ति को भी नतमस्तक होना पड़ेगा। इसीलिए आज हम देखते हैं कि हर पांच साल बाद चुनावों के मौके पर बड़े से बड़ा राजनीतिज्ञ आम नागरिकों की चौखट पर नतमस्तक होता है।
वास्तव में गांधी यह तय करके गये कि लोकतन्त्र में राजा का जन्म किसी रानी के पेट से नहीं होगा बल्कि वह जनता द्वारा डाले गये मतों की पेटियों से पैदा होगा। इस फलसफे को ही बाद में समाजवादी नेता डाॅ. राम मनोहर लोहिया ने अपने शब्दों में गढ़ा। संविधान में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का दायित्व स्वतन्त्र न्यायपालिका को सौंपा गया है। न्यायपालिका जिस आधारभूत ढांचे की बात करती है वह नागरिकों के अधिकार ही हैं क्योंकि लोकतन्त्र में नागरिकों के ये अधिकार सबसे पवित्र माने जाते हैं। इन्हीं अधिकारों की वजह से लोगों द्वारा बनाई गईं सराकारें उनमें गैर बराबरी समाप्त करने के प्रयास करती हैं। मोदी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में गरीबी की सीमा रेखा से जिन 25 करोड़ लोगों को ऊपर उठाने का दावा किया है वह संविधान के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से ही संभव हो सका है। अतः भारतीय संविधान जाहिर तौर पर समता मूलक समाज की स्थापना का अलम्बरदार भी है।

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