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किसानों से बातचीत

केन्द्र सरकार ने पिछले 55 दिनों से भूख हड़ताल कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल..

11:28 AM Jan 19, 2025 IST | Aditya Chopra

केन्द्र सरकार ने पिछले 55 दिनों से भूख हड़ताल कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल..

केन्द्र सरकार ने पिछले 55 दिनों से भूख हड़ताल कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के बिगड़ते स्वास्थ्य का संज्ञान लेते हुए किसानों को अगले माह चंडीगढ़ में वार्ता की मेज पर आमन्त्रित किया है। श्री डल्लेवाल की प्रमुख मांग है कि किसानों की उपज खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को कानूनी जामा पहनाया जाये जिससे उन्हें अपनी पूरी फसल निर्धारित मूल्य पर बेचने में बेफिक्री हो सके। किसानों की मांग को नाजायज नहीं कहा जा सकता क्योंकि देशभर में केवल कृषि उत्पाद ही एेसे हैं जिनके उत्पादकों को अपने उत्पाद की कीमत निर्धारित करने का अधिकार नहीं है। उनके माल (कृषि उपज) की कीमत बाजार ही तय करता है। इस स्थिति से निपटने के लिए ही 1965 के करीब न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली शुरू की गई थी परन्तु खुले बाजार में किसानों को यह कीमत भी प्राप्त नहीं होती और अखिल भारतीय स्तर पर उन्हें अपनी उपज का 86 प्रतिशत हिस्सा न्यूनतम मूल्य से भी कम पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। पूरा देश जानता है कि तीन वर्ष पहले किसानों ने केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रीय आन्दोलन चलाया था। इन तीनों कानूनों का हश्र यह हुआ कि सरकार को अन्ततः इन्हें वापस लेना पड़ा और किसानों के साथ समझौता करना पड़ा।

समझौते के तहत यह फैसला हुआ था कि किसानों की मांगों पर गौर करने के लिए एक संयुक्त वार्ता समिति बनेगी मगर यह समिति भी कोई हल नहीं निकाल सकी जिसकी वजह से किसानों ने पिछले साल फरवरी महीने में पंजाब से दिल्ली कूच करने का कार्यक्रम घोषित किया परन्तु पंजाब के किसानों को पंजाब-हरियाणा सीमा पर ही रोक दिया गया। तब से किसान इस सीमा पर ही धरना दे रहे हैं। खनौरी और शम्भू बार्डर के नाम से प्रसिद्ध इन सीमा क्षेत्रों में आज भी किसान डेरा डाले पड़े हैं। जायज सवाल यह उठता है कि लोकतन्त्र में किसी भी वर्ग को अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का पूरा हक होता है और एेसा करने का रास्ता अहिंसक सत्याग्रह भी होता है। अतः श्री डल्लेवाल ने यही रास्ता चुना और विगत वर्ष के 26 नवम्बर से अपना आमरण अनशन शुरू कर दिया। बीच-बीच में उनके स्वास्थ्य के बारे में चिन्ताजनक खबरें भी आती रहीं और मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंचा। न्यायालय ने श्री डल्लेवाल के स्वास्थ्य की चिन्ता करने के सम्बन्ध में विगत वर्ष के दिसम्बर माह में पंजाब की राज्य सरकार को भी निर्देश दिये मगर पंजाब के कृषि मन्त्री गुरुमीत सिंह खुड्डियां ने स्पष्ट किया कि किसानों की मांगों का सीधा सम्बन्ध केन्द्र सरकार से है, अतः केन्द्र के कृषि मन्त्री को इस बारे में हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने इस बाबत केन्द्रीय कृषि मन्त्री शिवराज सिंह चौहान को एक खत भी लिखा। श्री चौहान को एेसा समन्वयकारी मृदु भाषी नेता माना जाता है जिन्होंने 18 वर्ष से अधिक समय तक मध्य प्रदेश का मुख्यमन्त्री रहते राज्य के किसानों की दशा सुधारने के लिए कई क्रान्तिकारी कदम उठाये थे।

यह सत्य है कि मध्य प्रदेश में उनके द्वारा शुरू की गई कृषि मूल्यांतर स्कीम से किसानों को लाभ पहुंचा था हालांकि बाद में इसमें भ्रष्टाचार होने की वजह से किसानों को कोई खास लाभ नहीं हो सका क्योंकि कृषि मंडियों में बैठे आढ़तियों ने ही इस स्कीम का जमकर लाभ उठाया। मगर श्री चौहान द्वारा शुरू की गई इस स्कीम को नवोत्कर्ष जरूर समझा गया। मूल्यांतर स्कीम के तहत किसानों को वह मूल्य अन्तर प्राप्त करने का अधिकार था जो खुले बाजार में अपनी उपज बेचने की वजह से बनता था। श्री चौहान ने मध्य प्रदेश में यह व्यवस्था की थी कि जो भी मूल्यांतर होगा उसकी भरपाई राज्य सरकार करेगी। मगर भ्रष्टाचार के चलते इस स्कीम का भी पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल सका। अतः न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक बनाने का सवाल बहुत महत्वपूर्ण है जिसे लेकर किसान सालों से अपना आन्दोलन किसी न किसी रूप में चला रहे हैं। केन्द्रीय कृषि मन्त्री के रूप में श्री चौहान की यह अग्नि परीक्षा भी है क्योंकि श्री डल्लेवाल के अनशन को केवल पंजाब के ही नहीं बल्कि समूचे भारत के किसान बहुत उत्सुकता से देख रहे हैं। पिछले 55 दिनों से जारी भूख हड़ताल की वजह से उनका 20 किलो वजन कम हो चुका है और वह केवल जल ही ग्रहण कर रहे हैं।

श्री चौहान ने अपने मन्त्रालय की तरफ से कल एक संयुक्त सचिव श्री प्रिय रंजन के नेतृत्व में अधिकारियों का एक दल खनौरी सीमा पर श्री डल्लेवाल से बातचीत करने के लिए भेजा जिसने श्री डल्लेवाल से अपना अनशन समाप्त करने की दरख्वास्त की। श्री डल्लेवाल ने अनशन तो नहीं तोड़ा मगर अपने बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए चिकित्सा सेवाएं लेने को मंजूरी दे दी। कृषि संयुक्त सचिव प्रिय रंजन ने किसान नेताओं को आगामी 14 फरवरी को चंडीगढ़ में बातचीत करने के लिए आमन्त्रित किया है। इस बातचीत का क्या परिणाम निकलेगा, इस बारे में अभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती परन्तु इतना जरूर कहा जा सकता है कि लोकतन्त्र में केवल बातचीत और संवाद से ही कठिन से कठिन समस्या का हल निकलता है। जहां तक किसानों की सुनिश्चित आय का सम्बन्ध है तो यह निश्चित माना जाएगा कि यदि किसान की आमदनी बढे़गी तो पूरे भारत की आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव आयेगा। स्वतन्त्र भारत में अभी तक हुए किसानों के सबसे बड़े नेता स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह कहा करते थे कि अगर किसान की आय बढ़ेगी तो देश में शिक्षा का प्रसार होगा और शहरों व गांवों के बीच की दूरी कम होगी। उनका यह भी निश्चित मत था कि गांवों की कीमत पर हम शहरों का विकास नहीं कर सकते हैं। पंजाब इस मामले में पूरे देश में सबसे ऊपर रहा है क्योंकि पचास-साठ के दशक में इसके मुख्यमन्त्री रहे स्व. प्रताप सिंह कैरों स्वयं में एक कृषि विशेषज्ञ थे और उन्होंने पंजाब के किसानों को सक्षम बनाकर अपने राज्य का चहुंमुखी विकास किया था और 1965 तक पंजाब को भारत का आधुनिकतम वैज्ञानिक सोच का राज्य बना दिया था। प्रत्येक गांव को बिजली व सड़क से उन्होंने जोड़ दिया था और प्रत्येक जिले में आईटीआई की स्थापना कर डाली थी। अतः किसानों की समृद्धि से ही भारत की समृद्धि का रास्ता खुलता है। श्री चौहान को यह तथ्य हमेशा अपने ध्यान में रखना होगा।

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