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कोराेना और ऑनलाइन

कोरोना वायरस की महामारी के चलते न केवल मानव की जानें जा रही हैं बल्कि देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी लड़खड़ाने लगीं हैं। कोरोना वायरस से कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो अछूता रहा हो।

12:26 AM Apr 18, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना वायरस की महामारी के चलते न केवल मानव की जानें जा रही हैं बल्कि देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी लड़खड़ाने लगीं हैं। कोरोना वायरस से कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो अछूता रहा हो।

कोराेना और ऑनलाइन
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कोरोना वायरस की महामारी के चलते न केवल मानव की जानें जा रही हैं बल्कि देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी लड़खड़ाने लगीं हैं। कोरोना वायरस से कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो अछूता रहा हो। उद्योग, व्यापार, आयात-निर्यात, जी.डी.पी. इस सब पर बहुत बातें हो रही हैं। आर्थिक विशेषज्ञ रोज-रोज नए शब्द ढूंढ लाते हैं जो आम इंसान के सिर के ऊपर से निकल जाते हैं। इन भारी-भरकम शब्दों और लम्बी-चौड़ी व्याख्याओं से समस्याओं का व्यावहारिक समाधान नहीं निकाला जा सकता। सोने के भाव में उतार-चढ़ाव, शेयर मार्किट के उतार-चढ़ाव पर खबरें आती रहती हैं लेकिन वास्तविक बात तो यह है कि सोना, सम्पत्ति और धन सब धरा का धरा रह जाएगा, जब सब कुछ कोरोना लाद कर चला जाएगा।
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कोरोना वायरस ने सबसे ज्यादा असर शिक्षा पर डाला है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को के अध्ययन में कहा गया है कि स्कूल बंद होने से सबसे अधिक असर वंचित तबके के छात्र-छात्राओं पर पड़ रहा है। भारत में 32 करोड़ छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन प्रभावित हुआ है। जबकि दु​निया भर के 191 देशों में 157 करोड़ छात्रों की ​शिक्षा प्रभावित हुई है, जो विभिन्न स्तरों पर दाखिला लेने वाले कुछ छात्रों का 91.3 फीसदी है। भारत में लॉकडाउन तो 25 मार्च से लागू किया गया जबकि देश के स्कूल आैर कालेज पहले से ही एहतियातन बंद कर दिए गए थे।
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अब तो तीन मई के बाद से ही स्कूल-कालेज खोलने को लेकर स्थिति की समीक्षा की जाएगी। पढ़ाई का काफी नुक्सान हो चुका है, य​द्यपि शिक्षण संस्थाओं ने आनलाइन शिक्षा का उपाय ढूंढ लिया है। अमेरिका में हावर्ड और वाशिंगटन विश्वविद्यालय पहले ही आनलाइन शिक्षा पद्धति अपना चुके हैं। आस्ट्रेलिया और अन्य देश भी आज लाइन शिक्षा पद्धति अपना चुके हैं। दिल्ली और देश के अन्य महानगरों में शापिंग मालनुमा एयर कंडीशंड शिक्षा संस्थानों ने भी आनलाइन शिक्षा शुरू की है ताकि शिक्षा को हुए नुक्सान की भरपाई की जा सके। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय भी आनलाइन शिक्षा पद्धति को प्रोत्सािहत करने का काम कर रहा है। इलैक्ट्रानिक टैक्नोलोजी का प्रयोग करके किसी भी विषय की जानकारी प्राप्त करना ई-लर्निंग यानी आनलाइन लर्निंग कहा जाता है। नामी-गिरामी स्कूलों की शिक्षिकाएं घर बैठे ही ऐप के जरिये पढ़ा रही हैं, आपको सिर्फ ऐप डाउनलोड करना है। पिछले कुछ वर्षों से आनलाइन लर्निंग का क्रेज बढ़ा है। सीखने-सिखाने के इस तरीके के प्रति बच्चों और युवाओं के बढ़ते क्रेज को देखते हुए स्कूलों एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा ई-लर्निंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब जबकि सब लोग घरों में बंद हैं, ऐसी कठिन स्थिति में केन्द्र सरकार के तहत एनसीईआरटी के दीक्षा, ई-पाठशाला, नेशनल रिपॉजिटरी ऑफ आेपन एजूकेशन रिसोर्सेज जैसे ई-लर्निंग प्रोग्राम और आप शिक्षा पोर्टल एक वरदान के रूप में सामने आ रहे हैं।
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सीबीएसई, एनसीईआरटी और राज्य सरकारों की ओर से बनाई गई अलग-अलग भाषाओं में 80 हजार से ज्यादा ई-बुक्स है जो 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए काफी लाभदायक हैं। छठी से दसवीं तक के छात्रों को ई-कंटेंट के जरिये पढ़ाई में मदद मिल रही है। सातवीं से दसवीं तक के बच्चों के लिए क्रिएटिव और क्रिटिकल थिंकिंग डिवैलप करने के लिए प्रश्न बैंक भी इसमें उपलब्ध है। शिक्षा के लिए आज बहुत सारे ई-प्लेटफार्म मौजूद हैं। ये सब सुविधाएं शहरों में रहने वाले लोगों के लिए सहजता से उपलब्ध हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और देश के पिछड़े क्षेत्रों में ऐसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति उस देश की शिक्षा पर निर्भर करती है। शिक्षित समाज ही आगे बढ़ता है। अच्छी शिक्षा से ही बेहतर भविष्य की कल्पना की जा सकती है। भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव है। देश में इस समय ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों की तरफ से आनलाइन शिक्षा की कोई पहल नहीं की गई है। केवल प्राइवेट शिक्षा संस्थान, जो काफी ज्यादा फीस लेते हैं,  ही ऐसी पहल कर रहे हैं। बुनियादी  सवाल यह है कि जिन बच्चों को बिना परीक्षा के ही अगली कक्षाओं में भेजा जाएगा, उनकी शिक्षा की नींव तो कमजोर ही होगी। उनकी मेधा की पहचान ही नहीं हो सकेेगी।
देश की गरीब जनता, दिहाड़ीदार मजदूरों को अपना और अपने परिवारों का पेट पालने के लिए सरकारी मदद का ही सहारा है। ऐसे परिवारों के बच्चों के लिए आनलाइन लर्निंग एक सपना ही है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के पास कम्प्यूटर, लैपटाप या टेबलैट की कल्पना नहीं की जा सकती। नकारात्मक माहौल में हमें अब भविष्य के लिए सकारात्मक ढंग से सोचना होगा। केन्द्र सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय को पाठ्यक्रम में ऑनलाइन शिक्षा विषय शामिल करना चाहिए। अमेरिका और चीन में सीमित अवधि के लिए आनलाइन निर्देश दिए जा रहे हैं या स्कूलों और कालेजों में सैमेस्टर के माध्यम से। मानव संसाधन मंत्रालय को भविष्य के लिए एक टास्क फोर्स तैयार करनी होगी ताकि जरूरत पड़ने पर आनलाइन शिक्षा की प्रक्रिया को एक नीति बनाया जा सके। सरकार चाहे तो सार्वजनिक-निजी भागीदारी में आनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहित कर सकती है। इस अभियान से शिक्षकों, शिक्षाविदों, स्कूल प्रबंधकों और एजूकेशन से जुड़ी कम्पनियों को जुड़ना होगा, तभी ​शिक्षा को हुए नुक्सान की भरपाई हो सकेगी।
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