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कोरोना का ‘मरदूद’ पाकिस्तान

पूरी दुनिया जब कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में फंसी हुई है तो ‘नामुराद मुल्क पाकिस्तान’ इस मौके का फायदा उठाना चाहता है और भारत में कोरोना ग्रस्त आतंकवादी जेहादियों की घुसपैठ कराना चाहता है।

12:20 AM Apr 18, 2020 IST | Aditya Chopra

पूरी दुनिया जब कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में फंसी हुई है तो ‘नामुराद मुल्क पाकिस्तान’ इस मौके का फायदा उठाना चाहता है और भारत में कोरोना ग्रस्त आतंकवादी जेहादियों की घुसपैठ कराना चाहता है।

कोरोना का ‘मरदूद’ पाकिस्तान
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पूरी दुनिया जब कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में फंसी हुई है तो ‘नामुराद मुल्क पाकिस्तान’ इस मौके का फायदा उठाना चाहता है और भारत में कोरोना ग्रस्त आतंकवादी जेहादियों की घुसपैठ कराना चाहता है। भारत-पाक सीमा पर जिस तरह पाकिस्तान की फौजें पिछले 20 दिनों में कई बार गोलाबारी कर चुकी हैं और कश्मीरी सरहदों पर नागरिकों तक को नुकसान पहुंचा चुकी हैं उससे इस ‘नाजायज’ मुल्क की जहनियत का आसानी से अन्दाजा लगाया जा सकता है। भारतीय थलसेना के अध्यक्ष जनरल एम.एम. नरवाने पिछले दो दिन कश्मीर में ही थे और उन्होंने पाकिस्तान की ऐसी हरकतों के बारे में कहा कि ‘कोरोना के प्रकोप से निपटने के लिए जब भारत दुनिया के कई देशों को दवाओं का निर्यात कर रहा है तो पाकिस्तान आतंकवाद के निर्यात में लगा हुआ है।’  भारत-पाक की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर जिस तरह पाकिस्तान अकारण गोलाबारी कर रहा है उसका अर्थ यही निकलता है कि वह अब भी पिछली कबायली सदियों में जी रहा है मगर यह उसका भ्रम है कि भारत कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने में व्यस्त होने की वजह से अपनी सरहदों की सुरक्षा के मामले में किसी प्रकार की कोताही कर सकता है।
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 रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह बेशक कोरोना का मुकाबला करने के लिए बने मन्त्रिमंडलीय समूह की अध्यक्षता करने में मशगूल हों मगर हमारे सेना नायकों के साथ भी उनकी बैठकें होती रहती हैं जिनमें पाकिस्तान की चालबाजियों से निपटने की रणनीति संभवतः प्रमुख रहती है क्योंकि पूरी दुनिया में एकमात्र यही देश ऐसा है जो भारत के साथ दुश्मनी निभाता आ रहा है। हालांकि पाकिस्तान में भी कोरोना का प्रकोप है और इसके यहां भी सात हजार के करीब कोरोना ग्रस्त रोगी हैं मगर यह ‘कमजर्फ’ मुल्क इसके बावजूद भारत को दुख देने में यकीन रखता है मगर नादान हैं पाकिस्तान के हुक्मरान जो यह समझते हैं कि वक्त ठहरा हुआ है।
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 1947 के बाद से 72 साल का अर्सा गुजर चुका है मगर यह मुलक अब भी ‘जिन्ना की मुर्दारी को अपनी जीनत’  समझे बैठा है। इन 72 सालों में पीढि़यां बदल गईं मगर पाकिस्तान की मानसिकता में कोई अन्तर नहीं आया और यह भारत के विरोध को हिन्दू विरोध का पर्याय बना कर बदअमनी फैलाने की फिराक में रहता है। कोरोना से लड़ाई जारी रहने का यह एेसा वक्त है जब पाकिस्तान आतंकवाद छोड़ कर मानवतावाद की तरफ बढ़ सकता था मगर इसने नफरत को अपना ईमान बनाना मुनासिब समझा और भारत को और जख्म देने की राह पर चलना गंवारा किया।
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दरअसल पाकिस्तान आतंकवादी घुसपैठ करा कर भारत में ‘कोरोना के मरदूद’  भेज कर इत्मीनान  करना चाहता है कि इससे उसके कोरोना ग्रस्त लोगों का दुख दूर हो जायेगा। इससे बड़ी जहालत पूरी दुनिया में कोई दूसरी नहीं हो सकती जो बताती है कि पाकिस्तान की न कोई तालीम है, न तबीयत है और न तरबियत है। इंसानियत के फर्जों से इसका कोई लेना-देना नहीं है इसलिए जरूरी है कि दुनिया के दूसरे देशों को उसके कारनामों पर ध्यान देना चाहिए और उसे आतंकवादी मुल्कों की फेहरिस्त में डालने का पुख्ता इन्तजाम बांधना चाहिए। हैवानियत की हदें  तोड़ती उसकी कार्रवाइयों से इस्लामी  मुल्कों को भी सबक लेना चाहिए और ओआईसी ( इस्लामी देशों का संगठन) की विशेष बैठक बुला कर पाकिस्तान को ‘बेनंग-ओ-नाम’ मुल्क करार देना चाहिए। यह कोई साधारण बात नहीं है कि जब पूरी दुनिया के देश मानव जाति को बचाने के लिए  ऐसे दुश्मन से लड़ाई लड़ रहे हों जिसका सतह पर कोई नामो-निशान नजर नहीं आ रहा हो मगर उसमें आदम जात को ही खत्म करने की कूव्वत हो, तो ऐसे वक्त में पाकिस्तान की कारस्तानियों को सिर्फ शैतान की फितरत ही माना जायेगा। मजहबी कट्टरपन और तास्सुब का यह जुनून उसके ‘बे-मजहबी’ होने का सबूत ही कहा जायेगा क्योंकि इस्लाम की बुनियाद पर बना यह मुल्क अपने ही धर्म की हिदायतों की धज्जियां सरेआम उड़ा रहा है और ऐलान कर रहा है कि भारत के खिलाफ उसका मजहब सिर्फ शैतानियत है।
 15 दिन पहले कश्मीर के हिन्दवाड़ा में भारत के सुरक्षा सैनिकों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया था मगर इसमें कुछ सुरक्षा सैनिक भी शहीद हुए थे। इसी तरह कुपवाड़ा में भी इसने नापाक हरकत की। आखिरकार अन्तर्राष्ट्रीय  मुद्रा कोष इन तथ्यों का सज्ञान क्यों नहीं लेता है और पाकिस्तान की ऐसी हरकतों को नजरअन्दाज करके उसे वित्तीय मदद करने का फैसला करता है। जो मुल्क कसम खाकर बैठा हुआ है कि वह इंसानी उसूलों की नाफरमावदारी में नये रिकार्ड बना कर ही चैन लेगा उसके साथ मानवीयता का कैसा रिश्ता?  यह तो वही भाषा समझता है जब उसकी फौजों को निःशस्त्र करके पैरों पर झुका दिया जाता है और त्राहिमाम कहलवाया जाता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com­
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