For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

न्यायपालिका का सुधारात्मक कदम

देश की जेलों में सालों से गरीब लोग पड़े हुए हैं, जो अपने लिए जमानत की व्यवस्था नहीं कर सकते। जमानत से वंचित लोगों को जेल में सड़ना पड़ रहा है।

04:34 AM Feb 27, 2022 IST | Aditya Chopra

देश की जेलों में सालों से गरीब लोग पड़े हुए हैं, जो अपने लिए जमानत की व्यवस्था नहीं कर सकते। जमानत से वंचित लोगों को जेल में सड़ना पड़ रहा है।

न्यायपालिका का सुधारात्मक कदम
देश की जेलों में सालों से गरीब लोग पड़े हुए हैं, जो अपने लिए जमानत की व्यवस्था नहीं कर सकते। जमानत से वंचित लोगों को जेल में सड़ना पड़ रहा है। जबकि अमीर लोगों को हाईप्रोफाइल केसों में भी राहत मिल जाती है, बल्कि उन्हें कानूनी शिकंजे से बाहर निकालने का प्रबंधन भी किया जाता है। जेलों में सड़ रहे लोगों में से अधिकांश ऐसे हैं जिन पर गम्भीर आरोप भी नहीं हैं। लम्बे समय से जेलों में बंद लोगों को जमानत नहीं दिया जाना न्याय के साथ मजाक है। बहुत साल पहले एक फिल्म आई थी कानून, जिसमें एक निर्दोष को जेल की सजा दी जाती है, लेकिन जब उसकी बेगुनाही के सबूत मिलते हैं तो आरोपी सवाल खड़े करता है ‘‘जज साहब क्या आप मेरे जेल में गंवाए गए साल लौटा सकते हैं।’’
Advertisement
यह सवाल बरसों पहले भी उठा था और आज भी उठा है। कई बार जेल में बंद लोगों के लिए कोई वकील सुनवाई के लिए तैयार नहीं होता तब भी उन्हें जमानत नहीं दी जाती। कहा जाता है कि विलम्ब से मिला न्याय भी अन्याय के समान है। सुप्रीम कोर्ट ने इन सब बातों का संज्ञान लेते हुए कहा है कि अदालतें और सरकारों को सुधारात्मक रुख अपनाना चाहिए। देश की सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि जिन लोगों ने बिना किसी प्रतिकूल रिपोर्ट के 10 साल से अधिक जेल में बिताए हैं उन्हें जमानत दी जाए और उनकी सजा 14 साल की जेल के बाद माफ कर दी जाए। जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम इन्द्रेश की पीठ ने कहा है कि अदालतों को रचनात्मक सोच की जरूरत है। हम इसे केवल दंडात्मक नजरिये से देखते हैं जो कि एक बड़ी समस्या है। हाईकोर्टों को ऐसे कैदियों के बचाव के लिए सक्रिय रुख अपनाना चाहिए, जो खुद को मुश्किल स्थिति में पाते हैं। न तो सजा के खिलाफ उनकी अपील बड़ी संख्या में लम्बित होने के कारण सुनवाई की जाती है और न ही उन्हें जमानत दी जाती है। पीठ ने यह बताते हुए काफी दर्द में थी ​कि समस्या ​विशेष रूप से इलाहाबाद हाईकोर्ट में बहुत गम्भीर है, जो वर्तमान में 1980 के दशक में दायर अपराधिक अपीलों पर सुनवाई कर रही है और जमानत से इन्कार करने पर कैदियों को बड़ी संख्या में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए प्रेरित किया है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि हमारे पास हाईकोर्ट के ऐसे केस आते हैं जहां जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी जाती है कि अपराध जघन्य है।
कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या इसमें सुधार सम्भव नहीं है? हमें देखना होगा कि वह समाज में कैसा व्यवहार करता है? अगर उसकी अपील सफल हुई तो उन्होंने जो साल जेल में गंवाए हैं उन्हें कौन लौटाएगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि किसी दोषी ने जेल में 14 साल पूरे कर लिए हैं तो राज्य खुद एक उपयुक्त रुख अपना सकता है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश रिहाई के लिए मामले की जांच करने के आदेश जारी कर सकते हैं। वकीलों की अनुपस्थिति इसके आड़े नहीं आ सकती। शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया है कि 10 से 14 और 10 साल तक की हिरासत में रहने वालों की अलग सूची तैयार की जानी चाहिए। अगर कैदी 14 या 17 वर्षों से जेल में है और कोई वकील उनके लिए बहस करने के लिए तैयार नहीं होता तो क्या इन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पीठ के सामने एक केस ऐसा आया जिसमें दोषी 17 साल से जेल में था और हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका इसलिए खारिज कर दी क्योंकि वकील दलीलों के साथ तैयार नहीं था। उसके बाद वकील के तैयार होने पर भी चार बार याचिका की सुनवाई नहीं हुई। शीर्ष अदालत ने उस दोषी को जमानत दे दी। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो केस निपटाने के ​मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सबसे कुशल वर्ष 2019 रहा था, जिसमें अदालत ने रिकार्ड 5231 आपराधिक अपीलों का फैसला किया था। यूपी की जेलों में 4000 से अधिक कैदी 14 साल से अधिक समय से सलाखों के पीछे बंद हैं जबकि उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद 7214 दोषी जो पहले ही 10 साल की सजा काट चुके हैं।
वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट और अदालत की लखनऊ पीठ के समक्ष एक लाख तिरासी हजार से अधिक आपराधिक अपीलें निलम्बित हैं। अगर अदालत की गति इतनी धीमी रही तो इन मामलों को निपटाने में 35 साल लग जाएंगे और वह भी तब तक निकट भविष्य में दायर नई अपीलों पर विचार नहीं किया जाता। सर्वोच्च न्यायालय ने जेल में बंद ऐसे कैदियों जो एक दशक से अधिक समय से बंद हैं उन सभी की जमानत याचिकाओं को एक साथ मिलाने और उन्हें एक ही बार में जमानत देने को कहा है। अदालत ने यह भी कहा है कि राज्य सरकारों को ऐसे कैदियों की जमानत याचिका का विरोध नहीं करना चाहिए और हाईकोर्टों को अपने दिमाग से आदेश पारित करने के लिए कहा जाए। भले ही ऐसे कैदियों का प्रतिनिधित्व किसी वकील द्वारा न किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में बंद असहाय लोगों की ​रिहाई के लिए सुधारात्मक कदम उठाया है। इसका अनुसरण सभी राज्य सरकारों और हाईकोर्टों को करना चाहिए। यह स्पष्ट तौर पर गलत धारणा है कि परिस्थितियों के आधार पर जमानत याचिका पर विचार नहीं हो सकता। हाईकोर्टों को एक खाका ढूंढना होगा, ताकि जेलों पर बोझ कम हो सके और न्याय मजाक बनकर न रह जाए। देश के लोगों की आस्था और विश्वास उच्च अदालतों पर इसलिएबनी हुई है क्योंकि न्यायपालिका ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए न्याय किया है। जिस ​दिन लोगों का विश्वास न्यायपालिका से उठ गया उस दिन शायद कुछ नहीं बचेगा।
Advertisement
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×