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देश की समस्या नम्बर-1, बेरोज़गारी

02:29 AM May 02, 2024 IST | Shera Rajput
देश की समस्या नम्बर 1  बेरोज़गारी

पहला समाचार महाराष्ट्र में मुम्बई से कुछ दूर पालघर से है जहां आदिवासी महिलाओं ने सरकार से मिले 5 किलो चावल और एक साड़ी यह कहते हुए लौटा दिए कि उन्हें ख़ैरात नहीं चाहिए, रोजगार चाहिए। नरेन्द्र मोदी का चित्र लगे बैग में उन्हें राहत सामग्री भेजी गई थी, पर लौटा दी गई, क्योंकि उनका कहना था कि उन्हें मुफ्त कुछ नहीं चाहिए, उन्हें सशक्त बनाया जाए, वह इज्जत की रोटी खाना चाहती हैं। सरकार की तरफ़ से 80 करोड़ लोगों को 5 किलो मुफ्त चावल या आटा दिया जाता है। और यह महिलाओं अपने बच्चों के लिए वह शिक्षा चाहती हैं जिनसे उन्हें बाद में रोज़गार मिल सके। दूसरा समाचार हमारे प्रीमियर इंस्टीट्यूट्स आईआईटी से है जहां पहली बार 30-35 प्रतिशत विद्यार्थी अभी भी सही नौकरी मिलने के इंतजार में हैं। पहली बार है कि कम्प्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग के छात्र जिनकी देश-विदेश में सबसे अधिक मांग रहती है, के साथ ऐसा हो रहा है कि शत-प्रतिशत को नौकरी नहीं मिली। कुछ अभी भी नौकरी के बुलावे के इंतज़ार में हैं।
वैश्विक मंदी इसका बड़ा कारण है। एआई, आरटीफिशल इंटेलिजेंस से भी इस सैक्टर की नौकरियों को ख़तरा है, पर अगर इतने पढ़े-लिखे लोग भी उचित रोजगार के लिए परेशान हैं तो यह देश की अर्थव्यवस्था की बहुत चिन्ताजनक तस्वीर पेश करती है। मैं डा. संदीप सिंह पीएचडी सब्जी वाला के बारे लिख चुकां हूं जो पीएचडी और चार एम.ए. करने के बाद भी रेहड़ी पर सब्जी बेचने पर मजबूर है। हमारे टैक्नालाॅजी सैक्टर जिस पर हम गर्व करते हैं, में जनवरी, 2022 के बाद हजारों लोगों की नौकरी गई है। 25 साल के बाद पहली बार है कि आई.टी. सैक्टर भी सिंकुड़ रहा है। इस सबसे अलग एक और बुरा समाचार है। तेलंगाना से गए माेहम्मद अफ़सान की रूस की तरफ़ से लड़ते यूक्रेन सीमा पर मौत हो गई। उसे बताया गया कि मास्को में उसे काम मिलेगा, पर 15 दिन की ट्रेनिंग के बाद सीमा पर भेज दिया गया और भी हमारे लोग हैं जो धोखे में फंस गए और यूक्रेन सीमा पर पहुंच गए। युद्धरत इजराइल में भी हमारे लोग काम करने के लिए जा रहे हैं क्योंकि वेतन अच्छा है। मजबूरी है क्योंकि देश में नौकरी नहीं मिलती। विदेश में नौकरी की तलाश में हमारे नौजवान किस तरह भटक रहे हैं वह बहुत बार चर्चित हो चुका है। पिछले साल इंग्लिश चैनल को पार कर ब्रिटेन में अवैध तौर पर घुसने के प्रयास में भारतीयों में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह सब अलग-अलग घटनाएं बता रही हैं कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही बड़ी अर्थव्यवस्था में रोज़गार का कितना बड़ा संकट पैदा हो चुका है। हम पंजाब में देख रहे हैं कि जो नौजवान बाहर जा सकता है वह बाहर भागने की कोशिश करता है और जो बाहर चले गए वह वापस आने के लिए तैयार नहीं। सीएसडीएस के राष्ट्रीय सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि देश के सामने दो सबसे बड़े मुद्दे बेरोजगारी और महंगाई है, हिन्दुत्व या राम मंदिर नहीं है। सर्वेक्षण के अनुसार 27 प्रतिशत लोग बेरोजगारी और 23 प्रतिशत महंगाई को मुख्य मुद्दा मानते हैं। 62 प्रतिशत का कहना है कि पिछले पांच वर्षों में नौकरी ढूंढना और मुश्किल हो गया है। नोटबंदी, कोविड और लॉकडाउन का रोजगार पर बहुत बुरा असर पड़ा है। विशेष तौर पर एमएसएमई अर्थात लघु, कुटीर और मध्यम उपक्रम को जो झटका मिला है उससे वह उभर नहीं सके जिसने रोजगार को बुरी तरह से प्रभावित किया है। अर्थव्यवस्था में मैनुफैक्चरिंग का हिस्सा 13 प्रतिशत गिरा है। इस तरफ बहुत ध्यान देने की जरूरत है। अमेरिका की टफ्टस यूनिवर्सिटी के डीन भास्कर चक्रवर्ती ने लिखा है कि भारत को, “आई-फोन, टैसला वाहन, सैमीकंडकटर ही नहीं बनाने चाहिए बल्कि छोटे और मध्यम उत्पादकों को सशक्त करना है...जो लेबर बेहतर खपा सकें”। बेरोजगार युवा किसी भी समाज को अस्थिर कर सकते हैं। इन्हें सम्भालने की बहुत जरूरत है। हम अमेरिका में देख रहे हैं कि किस तरह यूनिवर्सिटियों में फिलिस्तीन के पक्ष में प्रदर्शनों को लेकर छात्रों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है। फ्रांस में ऐसे प्रदर्शन बार-बार होते हैं। हम बचे हुए हैं क्योंकि लोगों में धैर्य है, पर इस धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। पिछले दशक से बहुत परिवर्तन आ गया है। लोगों के हाथ में मोबाइल है जो हर जानकारी घर-घर पहुंचा रहे हैं, जो जानकारी छिपाने की कोशिश की जाती है वह भी इंटरनेट के द्वारा घर-घर पहुंच रही है। बढ़ती गैर-बराबरी चर्चा का विषय है। यह अच्छी बात है कि देश के धन को लेकर बहस हो रही है। हमें गरीबी नहीं बांटनी, पर बेहिसाब अरबपति पैदा करना भी सही दिशा नहीं है। अम्बानी, अडानी या टाटा जैसे उद्योगपतियों का योगदान है, यह स्वीकार किया जाना चाहिए। वह लाखों को रोजगार देते हैं। सरकार को भारी टैक्स मिलता है, अर्थव्यवस्था को गति मिलती है, पर दूसरा छोर भी तो है जहां 80 करोड़ को हम मुफ्त राशन देने के लिए मजबूर हैं। दुनिया के हर देश में गैर- बराबरी है, पर सबसे अधिक हमारे देश में हैं। 1 प्रतिशत रईसों के पास राष्ट्रीय सम्पत्ति का 40.1 प्रतिशत और आय का 22.6 प्रतिशत हिस्सा है। देश की बढ़ती जीडीपी का वितरण सही नहीं हो रहा। आर्थिक दिशा पर राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय बहस की जरूरत है। दुनिया में तीसरी सबसे अधिक डालर-अरबपतियों की संख्या भारत में है जबकि दूसरी तरफ हमारे लगभग 1 अरब लोग रोजाना 250 रुपए से कम कमाते हैं। जनवरी 2023 में रोजगार का सबसे चिन्ताजनक आंकड़ा 37.4 प्रतिशत हरियाणा से था जबकि यह एक प्रगतिशील प्रांत समझा जाता है। हर सरकार ने रोजगार देने की कोशिश की है, पर हमारी आबादी ही इतनी है कि यह असंभव सा काम लगता है। अनुमान है कि अगले कुछ दशकों तक हर साल 1.2 करोड़ नए युवा वर्कर मार्केट में उतरेंगे। इनके लिए रोजगार का प्रबंध कैसे होगा? लेबर इकानिमिस्ट के.आर. श्याम सुंदर ने इंडिया टुडे को बताया है कि बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में वेतनभोगी संख्या नहीं बढ़ रही।
उनके अनुसार, “जमीनी हकीकत बताती है कि निम्न स्तर के खुद काम करने वाले बढ़ रहे हैं...” इनमें घरों में काम करने वाले, रेहड़ी लगाने वाले या मजदूरी करने वाले हैं। कहने को तो कहा जा रहा है कि युवा हमारा खजाना हैं, पर यह तब ही है अगर हम इन्हें सही रोजगार दे सकें और इनके पास मौके का फायदा उठाने के लिए पर्याप्त कौशल हो। दोनों ही नहीं है।
सरकार की नई शिक्षा नीति में स्किल अर्थात कौशल पर जोर तो दिया जा रहा है, पर अभी भी हमारी शिक्षा प्रणाली अधिकतर पढ़े-लिखे अनपढ़ पैदा कर रही है। 2022-23 में 15-29 आयु के 16 प्रतिशत युवा अच्छी नौकरी के अभाव में या कौशल और सही शिक्षा की कमी के कारण बेरोजगार थे। लगभग 30 प्रतिशत ग्रैजुएट बेरोजगार हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ की 2024 की ‘इंडिया एमप्लौयमैंट रिपोर्ट’ के अनुसार भारत में रोजगार ढूंढना, विशेष तौर पर पढ़े-लिखे युवाओं के लिए बहुत मुश्किल है। काम की तलाश में भटकते युवाओं की संख्या डरावनी है। यह भी उल्लेखनीय है कि बेरोजगारी पढ़े-लिखों में अधिक है। इसी संकट का परिणाम है कि चार साल पहले की तुलना में आज कृषि सैक्टर में 6 करोड़ लोग अधिक काम कर रहे हैं। जो युवा नौकरी की तलाश में शहर की तरफ गए थे वह निराश वापस गांव लौट रहे हैं। इससे आर्थिक पीड़ा और बढ़ेगी। देश के अन्दर रोजगार की बहुत मंद तस्वीर है इसलिए जहां एक तरफ ध्यान हटाने का प्रयास (राजे-महाराजे बनाम नवाब, समाज का एक्स-रे आदि) हो रहा है तो दूसरी तरफ वादे किए जा रहे हैं। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में 'रोजगार के पर्याप्त अवसर...गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा तक पहुंच’ का वादा किया है, पर यह नहीं बताया कि रास्ता क्या है? कांग्रेस ने गारंटी दी है कि हर शिक्षित युवा को एक लाख रुपये वार्षिक का अप्रेंटिसशिप अधिकार दिया जाएगा और 30 लाख सरकारी नौकरियों को भरा जाएगा। कांग्रेस यह नहीं बता रही कि साधन कहां से आएंगे जबकि भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विकास होगा वैसै-वैसे रोजगार स्वयं ही बढ़ेगा लेकिन इस में समय लगेगा। युवा मिर्जा गालिब के साथ कह सकते हैं।
ख़ाक हो जाएंगे हम तुम को खबर होने तक !
कब तक पीएचडी और उच्च शिक्षा प्राप्त युवा चपरासी या क्लास फ़ोर की नौकरी के लिए भी धक्के खाते रहेंगे ? अगर हताशा फैल गई तो बहुत बड़ी समस्या होगी, जो राजनीतिक तू-तू मैं-मैं आजकल हो रही है क्या उससे आभास भी होता है कि राजनीतिक वर्ग को युवाओं की तकलीफ का अहसास भी है? न ही शिक्षा क्षेत्र में वह सुधार किया जा रहा है जिससे युवा बाद में अपने पैरों पर खड़े हो सके। राजनीति और विचारधारा से ऊपर उठ कर शिक्षा क्षेत्र की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। 2004 में वाजपेयी सरकार की हार के बाद प्रमोद महाजन ने कहा था कि गरीबों ने सरकार गिरा दी इसलिए सावधान रहना चाहिए। जब तक युवाओं को उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप रोजगार नहीं मिलता यह समस्या इस सरकार और आने वाली सरकारों को परेशान करती जाएगी।

- चंद्रमोहन

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