भीड़ और भगदड़ : 11 मौतों का जिम्मेवार कौन?
कोई भी आयोजन हो वहां भीड़भाड़ होना एक आम बात है। चार दिन पहले हमने देखा…
कोई भी आयोजन हो वहां भीड़भाड़ होना एक आम बात है। चार दिन पहले हमने देखा कि पिछले 18 साल से आईपीएल जीतने का सपना देख रही आरसीबी की टीम ने ट्राफी जीत ली। स्वाभाविक है कि आरसीबी के फैंस के लिए यह एक खुशी का मौका था। अब जश्न मनाना भी जरूरी था। यह टीम दक्षिण भारत के सबसे सुरक्षित राज्य कर्नाटक के बैंगलुरु शहर से जुड़ी है। वहां के चिन्नास्वामी स्टेडियम में आरसीबी के जश्न समारोह से पहले शहर में विक्टरी परेड थी लेकिन स्टेडियम के आसपास एजेंसी रिपोर्ट्स के मुताबिक तीन लाख से ज्यादा लोग इक्ट्ठे हो गए, भगदड़ मच गयी और 11 खेल प्रेमियों की जान चली गयी। यह बहुत दु:ख की बात है लेकिन यह घटना बहुत से सवाल छोड़ जाती है। खाली क्रिकेट ही क्यों? फुटबाल या रगबी या अन्य खेलाें का आयोजन भी है जहां विदेशों में खेल प्रेमी अपनी टीम के समर्थन में जश्न मनाते हुए हिंसा पर भी उतारू हो जाते हैं। कुल मिलाकर खेल के प्रति जुनून और जश्न अपनी हदें पार कर रहे हैं। मैं इसी कड़ी में कई अन्य सामाजिक समारोह, रैलियों या धार्मिक आयोजनों की भी बात करती हूं जहां अक्सर लाखों लोग उमड़ पड़ते हैं और अपने चहेतों को देखने के लिए वे जिस तरह से बेकाबू होते हैं तो भगदड़ मच जाती है। परिणाम हर बार की तरह मौतों के रूप में निकलता है। यह सब नहीं होना चाहिए।
कोई सामाजिक समारोह हो या फिर जश्नी समारोह, हमने भीड़ जुटाना सीख लिया है। जिनके लिए भीड़ जुटती है वो तो स्टार होेते हैं लेकिन हमने भीड़ को कंट्रोल करना नहीं सीखा। बेंगलुरु की बात करें तो राज्य सरकार ने वहां पुलिस कमीश्नर और कुछ बड़े अफसरों को सस्पैंड कर दिया है। चैम्पियन आरसीबी पर एफआईआर भी दर्ज कर दी गई है। क्या काफी है? जिन परिवारों के 11 सदस्य भगदड़ का शिकार बनकर मौत का निवाला बन गए उनके दर्द को कौन दूर करेगा।
सवाल यह है कि इन मामलों में प्रशासनिक भूमिका क्या रहती है हर मामले में जब किसी पर भी कठोर एक्शन लिया जाए तो यह एक अच्छी पहल मानी जानी चाहिए। हालांकि बैंगलुरू भगदड़ में मृतकों के परिजनों को आरसीबी ने 10-10 लाख रुपये मुआवजा दिये जाने का ऐलान किया है। यह मानवता का एक उदाहरण तो हो सकता है लेकिन जिन लोगों के यहां मौत हुई है उनके गम की भरपाई नहीं हो सकती। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि भगदड़ को लेकर अगर इतिहास में झांके तो कभी यह जुनून हमें फुटबाल के मैदानों में इंग्लैंड के शहरों में दिखाई देता था जहां फुटबाल के मुकाबलों के दौरान बड़े-बड़े नाम जिनमें लिवरपुल और मनचेस्टर क्लब शामिल है या अन्य फुटबाल क्लब के समर्थक स्टेडियमों में इस कद्र उमड़ते थे कि वहां भगदड़ मच जाती थी या फिर हार-जीत को लेकर हिंसक घटनाएं होती थी। खेल के प्रति यह जुनून, यह दिवानगी अब भारत में भी बहुत तेजी से बढ़ रही है। हमारे यहां खेल भावना के साथ लोगों का सैलाब उमड़ता है और हम भाग्यशाली हैं कि हमारे यहां ऐसी हिंसक घटनाएं नहीं हुई लेकिन जहां 40-50 हजार की जगह हो वहां तीन या चार लाख लोग भी नहीं उमड़ने चाहिए। आखिरकार व्यवस्था और जिम्मेवारी तो बनती है। वह कर्नाटक सरकार हो या कोई अन्य प्रशासन हो, आपको उचित व्यवस्था करनी ही होगी।
हमारे देश में चाहे कुंभ का मेला हो या अन्य धार्मिक आयोजन हो ये कहीं भी हो आज भी भीड़ उमड़ती है और अक्सर भगदड़ मचने की खबरें सुर्खियां बनती हैं। कुल मिलाकर इस प्रवृत्ति पर रोक जरूरी है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से ऐसे मौकों पर जाने से ही बचना चाहिए क्योंकि आज के जमाने में सब सुविधाएं टीवी पर मिल जाती हैं लेकिन धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक या फिर खेल आयोजनों के प्रति लोग अपने प्रेम, अपनी दिवानगी, अपने जुनून को रोक नहीं पाते। इस मामले में माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चों को भीड़भाड़ में जाने से बचाएं। सारा आईपीएल भीषण गर्मी में चला है, हालांकि देश में कभी हॉट वैदर टूर्नामेंट चला करते थे। गर्मियों में और भी आयोजन चलते हैं। पूरे आईपीएल के दौरान लोगों की भीड़ स्टेडियमों में उमड़ती रही। अगर भीड़ ही सफलता का पैमाना है तो सुरक्षा भी बहुत जरूरी है। इस हादसे से एक सबक लिया जाना चाहिए और भविष्य में कभी भी खेल आयोजन के अलावा अन्य सामाजिक और राजनीतिक आयोजनों में भी भीड़ बेकाबू न हो इसकी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए, क्योंकि भावनाओं का सैलाब अगर कंट्रोल में रहे तो अच्छा है। इस आईपीएल की विजेता आरसीबी की जीत भले ही रिकाॅर्ड स्थापित करती है लेकिन जश्न अगर जानलेवा बन जाता है तो हमें यह शर्मनाक रिकॉर्ड नहीं चाहिए। भगवान मृतकों की आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और मृतकों के परिजनों को यह दु:ख सहने की शक्ति प्रदान करें और साथ में यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि भविष्य में ऐसे हादसे न हों, उचित व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।