अश्लीलता के कारोबार पर अंकुश
पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों पर खुलेआम अश्लीलता…
पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों पर खुलेआम अश्लीलता और हिंसा परोसी जा रही है। वर्जना तोड़ते कार्यक्रमों की बाढ़ आई हुई है। सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों पर कोई सैंसर नहीं है। यानि सम्पादक नामक संस्था की कोई जगह नहीं है। यू ट्यूब के कामेडी शो ‘इंडिया गॉट लैटेंट’ पर यू ट्यूब और पॉड कास्टर रणवीर इलाहाबादिया ने जो अश्लील टिप्पणियां कीं उससे मां, बहन और परिवार शर्मसार हुआ। सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले इस शो को लेकर अब तूफान खड़ा हो गया। रणवीर इलाहाबादिया की गिरफ्तारी से तो सुप्रीम कोर्ट ने राहत तो दी लेकिन अभिभावकों के संबंध में आपत्तिजनक शब्दों को लेकर सख्त टिप्पणियां भी कीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी किसी को भी कुछ भी बोलने की आजादी नहीं देती। इसके बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों को एडवाइजरी जारी की िक वह कानून में निषिद्ध घोषित सामग्री प्रसारित करने से परहेज करें।
सोशल मीडिया बहुत से लोगों के लिए कमाई का जरिया बन गया है। वे फेसबुक, यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, एक्स पर रातोंरात लोकप्रिय होने और मोटी कमाई करने के लिए रील्स, ब्लॉग, स्टोरी, शार्ट वीडियो के जरिए सब्सक्राइबर और व्यूज बढ़ाने के लिए नए-नए पैंतरे अपना रहे हैं। यहां तक कि तथ्यों से भी छेड़छाड़ की जा रही है। इसके अलावा क्रिएटिविटी के नाम पर अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा रहा है। अश्लील वीडियो बनाकर ज्यादा से ज्यादा व्यूज बटोरे जा रहे हैं, जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं। कुछ तथाकथित यूट्यूबर्स को लोकप्रियता हासिल करने के लिए लाइव शादी करते और दो पत्नियों को एक साथ रखते हुए भी देखा गया है।
समाज में बढ़ती अश्लीलता का कारण वर्तमान परिवेश में समाज में बढ़ते तकनीकीकरण और शहरीकरण को मान सकते हैं। अपनी मिट्टी गांव को तो हम भूल ही गए हैं। परिवारों में नैतिक मूल्यों की कमी साफ दिखाई देती है। एक घर में रहकर भी लोग अजनबियों की तरह जी रहे हैं। सब मोबाइल और लैपटॉप की दुनिया में व्यस्त हैं। मां-बाप भी बच्चों की हर मांग पूरी करके इतिश्री कर लेते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय संस्कृति को किस तरह से सुरक्षित रखा जाए। आधुनिकता की दौड़ में हम भागते जा रहे हैं। बिखरते परिवारों के बीच बच्चों काे दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियां तो सुनने को िमलती नहीं, उन्हें मोबाइल आैर लैपटॉप या टैबलेट ही दुनिया दिखा रहे हैं। अश्लीलता का कारोबार चल रहा है। टीवी चैनल भी टीआरपी के खेल में ऐसे कार्यक्रम प्रसारित करने से नहीं चूकते जो िववाद पैदा करें। कामेडी के नाम पर फूहड़ता और अभद्रता ही परोसी जा रही है। जीवन मूल्यों और संस्कृति सभ्याचार का संरक्षण समाज की भी जिम्मेदारी है आैर सरकार की भी। सोशल मीडिया की भूमिका को देखते हुए कड़े कानून बनाने की मांग महसूस की जा रही थी। पारम्परिक प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक सामग्री के लिए तो कानून है लेकिन ओटीटी मंच पर यू ट्यूब समेत इंटरनैट द्वारा संचालित मीडिया संस्थाओं के लिए कोई कानूनी ढांचा नहीं है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय डिजिटल मंचों पर अश्लीलता आैर हिंसा दिखाए जाने के बीच आपत्तिजनक सामग्री को विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढांचे की जरूरत और मौजूदा वैधानिक प्रावधानों की समीक्षा कर रहा है।
संसदीय समिति को दिए अपने जवाब में मंत्रालय ने कहा कि समाज में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि डिजिटल मंचों पर अश्लील और हिंसक सामग्री दिखाने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का दुरुपयोग किया जा रहा है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति को मंत्रालय ने बताया कि वर्तमान कानूनों के तहत कुछ प्रावधान मौजूद हैं लेकिन ऐसी हानिकारक सामग्री को विनियमित करने के लिए एक सख्त एवं प्रभावी कानूनी ढांचे की मांग बढ़ रही है। मंत्रालय ने कहा कि कई उच्च न्यायालयों, सुप्रीम कोर्ट, सांसदों और राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी वैधानिक संस्थाओं ने इस मुद्दे पर बात की है जो सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर रणवीर इलाहाबादिया की अभद्र टिप्पणियों की व्यापक निंदा के बाद सुर्खियों में आया है। मंत्रालय ने समिति से कहा कि वह समुचित विचार-विमर्श के बाद एक विस्तृत नोट प्रस्तुत करेगा।
केन्द्र सरकार मौजूदा आईटी एक्ट की जगह डिजिटल इंडिया बिल लाने पर काम कर रही है। इस बिल में अलग-अलग क्षेत्र के लिए विशिष्ट प्रावधान वाले कानून बनाए जाएंगे। जैसे दूरसंचार, सूचना प्रौद्योिगक और सूचना एवं प्रसारण संबंधी विषयों के िलए अलग-अलग प्रावधान रखे जाएंगे। इसमें आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के गवर्नेस की भी अलग से व्यवस्था होगी। अभिभावकों को भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। बच्चों से दोस्ताना व्यवहार तो सही है लेकिन उम्र का लिहाज जरूरी है। बच्चों को सही-गलत की जानकारी अभिभावक ही दे सकते हैं। क्योंकि मां ही बच्चों की पहली गुरु होती है।