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डाटा संरक्षणः राष्ट्रीय प्रश्न

निजता यानि प्राइवेसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।

03:16 AM Aug 05, 2022 IST | Aditya Chopra

निजता यानि प्राइवेसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।

निजता यानि प्राइवेसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। यही वजह है कि व्यक्तिगत और गैर व्यक्तिगत डाटा संरक्षण को लेकर काफी समय से देश में बहस छिड़ी हुई है। करीब पांच वर्ष तक डाटा संरक्षण ​विधेयक पर काम करने के बाद इसका प्रारूप तैयार किया गया। 11 दिसम्बर 2019 को इसे सदन में पेश किया गया लेकिन इसमें काफी खामियां रह गईं। विधेयक कोई भी हो उसे तब ही पारित किया जाना चाहिए जब वह जनता और राष्ट्र के हित में हो। विधेयकों को पारित कराए जाते वक्त यह भी देखना होता है कि विधेयक के कानून बन जाने पर कहीं यह मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला हथियार तो नहीं बन जाएगा। देश में कानूनों के दुरुपयोग का लम्बा इतिहास रहा है। टाडा, मीसा कानून से लेकर दहेज विरोधी कानूनों का दुरुपयोग काफी होता रहा है। लोकतंत्र में जनता के हित सर्वोपरि होते हैं। कानून वे ही बेहतर होते हैं जो जनता के हितों और राष्ट्र की सुरक्षा के हितों के अनुकूल हों। समय-समय पर कानूनों में संशोधन भी होते रहे हैं। केन्द्र की मोदी सरकार ने निजी डाटा संरक्षण विधेयक को वापिस लेकर बेहद अहम और समझदारी भरा कदम उठाया है। दरअसल विधेयक के कई बिन्दुओं पर विपक्ष ने तीखे सवाल उठाए थे। कड़े विरोध को देखते हुए सरकार ने इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया था। संयुक्त संसदीय समिति ने काफी गहन मंथन कर विधेयक में 81 संशोधन और 12 सुझाव दिए हैं। जो नया मसौदा जेपीसी की तरफ से दिया गया है, केन्द्र उसमें मौलिक बदलाव नहीं कर सकता, सरकार के पास आंशिक बदलाव का विकल्प है लेकिन सरकार ने समझदारी से काम लेते हुए विधेयक को वापिस ले लिया और संसद के शीतकालीन सत्र में नया विधेयक लाने की अपनी मंशा भी जता दी है। निजी डाटा संरक्षण विधेयक इंडस्ट्री फ्रेंडली कम और नौकरशाही व्यवस्था के लिहाज से ज्यादा अनुकूल दिखाई देता था। विपक्षी दल आरोप लगा रहे थे कि इस कानून से लोगों की निजी जानकारी सरकार तक पहुंच जाएगी और सरकार इसका दुरुपयोग भी कर सकती है। फेसबुक और गूगल जैसी कम्पनियां भी विधेयक का विरोध कर रही थीं, उन्हें डर था कि इस कानून के कारण अन्य देशों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा और बाकी देश भी स्थायीकरण की नीति लाने लगेंगे। सरकार को भी लगा कि डाटा संरक्षण विधेयक स्टार्टअप और  प्रौद्योगिकी कम्पनियों की जरूरतों के हिसाब से उपयोगी नहीं है। इस विधेयक का उद्देश्य किसी व्यक्ति के निजी डाटा की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। खास कर निजी डाटा का इस्तेमाल और  इसके प्रवाह को सुरक्षा प्रदान करना है। इस तरह से विधेयक के जरिये व्यक्ति और उसके निजी डाटा को इस्तेमाल करने वाली कम्पनी के बीच भरोसा कायम हो सकेगा, लेकिन विधेयक भरोसा कायम नहीं कर सका। अगस्त 2017 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण को डाटा संरक्षण विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था। श्रीकृष्ण समिति ने 2018 में अपनी ​िसफारिशें सरकार को दे दी थीं। इसके बाद आईटी मंत्रालय ने व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक, 2019 को संसद में पेश किया, इसमें ऐसे बदलाव भी शामिल थे जो श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों से काफी अलग थे। यही वजह है कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने खुद आईटी मंत्रालय के विधेयक को ‘ऑखेलियन’ करार दिया था। इस विधेयक पर विचार के लिए 2020 में, विधेयक का अध्ययन करने के लिए दोनों सदनों के सदस्यों के साथ एक संयुक्त संसदीय समिति नियुक्त की गई। इसने दिसम्बर 2021 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं। संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी सिफारिश में व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत दोनों डाटा को विधेयक में शामिल करने पर जाेर दिया। साथ ही सरकार से अपेक्षा की कि वो भारतीयों से जुड़े संवेदनशील व्यक्तिगत डाटा को बाहर भेजने से पहले सरकार की मंजूरी लेने जैसे प्रावधानों को विधेयक का हिस्सा बनाए। सरकार से इस बात की व्यवस्था करने को भी कहा है कि डेटा उल्लंघन के बारे में बताने के ​िलए 72 घंटे की समय सीमा अनिवार्य शर्तों में शामिल करे। साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित करने को कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर यूजर्स द्वारा पोस्ट की गई सामग्री की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कम्पनियों की होगी। जेपीसी की इन सिफारिशों की भारत और विदेशी हितधारकों ने सख्त आलोचना की थी। आलोचना में कहा गया है कि ऐसा होने का मतलब है कि विधेयक के तहत गैर-व्यक्तिगत डाटा को ​​​नियंत्रित करने का प्रयास शामिल है। सरकार की यह चिंता मूल रूप से केवल व्यक्तिगत डाटा से जुड़ा है। अगर ऐसा हुआ तो यूजर्स जो पोस्ट करेंगे उसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इसके अलावा फेसबुक ने फरवरी की शुरूआत में यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के साथ अपनी वार्षिक फाइलिंग में भारत में डेटा स्टोरेज और ट्रांसफर से संबंधित नियामक बाधाओं के बारे में चिंता जताई थी।विधेयक का उद्देश्य यूजर के डाटा को काम के लिए जाने के दौरान उसके अधिकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखना है, जिसमें सोशल मीडिया प्रतिनिधि के लिए नियम तय करना, सीमा पार स्थानांतरण, निजी डाटा को काम में लाने वाली संस्थाओं की जवाबदेही, डाटा के गलत और  नुक्सानदायक इस्तेमाल रोकने के ​लिए  उचित कदम उठाना है। विधेयक में कानून तोड़ने वालों पर 15 करोड़ या कम्पनी के विश्वव्यापी टर्नओवर का चार फीसदी जुर्माने का भी प्रावधान है। हालांकि विधेयक में सरकार और उससे जुड़ी एजैंसियों को व्यापक छूट दिए जाने का भी प्रावधान किया गया था, जिसे लेकर सवाल खड़े हो गए थे। अब नया विधेयक लाया जाएगा, उम्मीद है कि नए प्रारूप में सभी मुद्दों का निराकरण होगा और जेपीसी की ​सिफारिशों के अनुरूप जन हितैषी और उद्योग मित्र होगा। स्टार्टअप और प्रौद्योगिकी तंत्र की गति बनाए रखने के अनुकूल होगा।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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