टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलसरकारी योजनाहेल्थ & लाइफस्टाइलट्रैवलवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

भारत की श्रम संहिताएं और महिला श्रमिक

04:23 AM Nov 19, 2025 IST | Editorial

वैश्विक स्तर पर बढ़ती आर्थिक अनिश्चितता के बीच भारत की नई श्रम संहिताओं का कार्यान्वयन घरेलू लचीलेपन को मजबूत करने और समावेशी विकास को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण मौका है। दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करना न केवल मैन्यूफैक्चरिंग या तकनीकी क्षमता का विस्तार, बल्कि समावेशी एवं सुदृढ़ संस्थानों के निर्माण पर भी निर्भर करेगा। सच्ची आत्मनिर्भरता एक ऐसी अर्थव्यवस्था के निर्माण में निहित है जहां प्रत्येक नागरिक, विशेषकर महिलाएं देश की विकास गाथा में सार्थक रूप से भाग ले सकें।
भारत ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2023-24 के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं का श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 2017-18 में 22.0 प्रतिशत से बढ़कर 40.3 प्रतिशत हो गया है। जबकि, इसी अवधि में श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 41.7 प्रतिशत हो गई है। ये आंकड़े श्रम बाजार में भागीदारी के मामले में व्याप्त लैंगिक अंतर में आई उल्लेखनीय कमी को दर्शाते हैं तथा व्यापक आर्थिक समावेशन की दिशा में सकारात्मक बदलाव की ओर भी इशारा करते हैं। फिर भी महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा श्रमबल से बाहर है और जो महिलाएं कार्यरत हैं भी, उनमें से कई उन अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं जहां उन्हें कम वेतन, नौकरी की सीमित सुरक्षा और न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा की समस्या से जूझना पड़ रहा है। कृषि एवं घरेलू काम से लेकर घर-आधारित उद्यमों और गिग प्लेटफॉर्म तक, अनौपचारिक रोजगार अक्सर नाजुक आर्थिक स्थिति और असमानता को मजबूत करता है। इस संदर्भ में भारत के श्रम कानूनों को हाल ही में चार व्यापक संहिताओं में संहिताबद्ध किया जाना इन कमियों को दूर करने का एक अनूठा मौका है। औपचारिकीकरण, संरक्षण और समान पहुंच पर ध्यान केन्द्रित करके इन सुधारों का उद्देश्य अपेक्षाकृत अधिक समावेशी और सुदृढ़ श्रम बाजार की नींव रखना है। इस प्रयास में भारत अकेला नहीं है। वियतनाम, इंडोनेशिया, मिस्र और मैक्सिको सहित कई विकासशील देशों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से श्रम कानूनों में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। इनमें मातृत्व संबंधी लाभ का विस्तार करना तथा स्वैच्छिक सहमति, सुरक्षित परिवहन, पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, महिला पर्यवेक्षण एवं उत्पीड़न-विरोधी ठोस सुरक्षा जैसे सुरक्षात्मक उपायों के तहत महिलाओं को रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देना शामिल है। ऐसे उपाय सिर्फ रोजगार को ही संभव बनाने से जुड़े नहीं हैं, बल्कि इनका जुड़ाव महिलाओं की गरिमा, स्वायत्तता और आर्थिक प्रगति में समान हिस्सेदारी सुनिश्चित करने से भी है।
वेतन और कामकाज की स्थितियों में लिंग-आधारित भेदभाव की समाप्ति ः भारत के श्रम सुधार, विशेष रूप से वेतन संहिता (2019) और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाएं संहिता, 2020 का उद्देश्य वेतन तथा कामकाज की स्थितियों में लंबे समय से चले आ रहे और श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी को सीधे प्रभावित करने वाले लिंग-आधारित भेदभाव से निपटना है।
वेतन संहिता (2019) भर्ती और वेतन में लिंग-आधारित भेदभाव को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करके "समान कार्य के लिए समान वेतन" के सिद्धांत को सुदृढ़ करती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह संहिता संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन कवरेज को सार्वभौमिक बनाती है। श्रम बाजार में महिलाओं की कार्य क्षमता को प्रभावित करने वाला एक अन्य प्रमुख कारक उन पर काम का दोहरा बोझ है। इस बोझ के तहत उन्हें वेतनभोगी काम के साथ-साथ घरेलू एवं बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बिठाना पड़ता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमानों के अनुसार, 2023 में 74.8 करोड़ लोग (15 वर्ष या उससे अधिक आयु के) देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के कारण वैश्विक श्रमबल का हिस्सा बनने में असमर्थ थे। इनमें अधिकांश महिलाएं थीं। इसके अलावा, महिलाओं के अनुकूल एक ऐसे बुनियादी ढांचे की जरूरत है जो कार्यस्थल पर लैंगिक दृष्टि से महिलाओं और पुरुषों की भिन्न-भिन्न प्रकार की विशेष जरूरतों को पूरा कर सकें।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाएं संहिता सभी क्षेत्रों में स्वास्थ्य, स्वच्छता, शौचालय और शिशुगृह संबंधी सुविधाओं के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करती है। यह प्रावधान लंबे समय से चली आ रही बुनियादी ढांचे की उन कमियों को दूर करता है, जिसने महिलाओं को विशेष रूप से मैन्यूफैक्चरिंग, खनन और निर्माण क्षेत्रों में रोजगार पाने से रोका है। यह एक हद तक लचीलापन लाता है जो विशेष रूप से सेवा और ज्ञान-आधारित पेशों में महिलाओं को भुगतान किए गए काम और देखभाल की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बिठाने में और अधिक सहायता कर सकता है। आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने हेतु आत्मनिर्भर महिलाओं के उत्थान को भी बढ़ावा देना होगा और उन्हें एक सशक्त, आत्मनिर्भर एवं प्रगतिशील बनाने वाले श्रम इकोसिस्टम द्वारा संरक्षित करना होगा। चाहे महिलाएं खेतों पर हों, कारखानों में हों, गिग प्लेटफॉर्म पर या छोटे उद्यमों में हों, उन्हें सिर्फ विकास के लाभार्थी के रूप में ही नहीं बल्कि इसके शिल्पी के रूप में भी पहचानना होगा। श्रम संहिताओं को अब पूरी तरह से लागू करना महज सामाजिक न्याय का मामला नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक अनिवार्यता भी है। यह कदम एक ऐसे सुदृढ़, प्रतिस्पर्धी और समावेशी अर्थव्यवस्था की नींव रखेगा जो वास्तव में आत्मनिर्भरता की भावना का प्रसार करेगा और भारत को दीर्घकालिक समृद्धि की ओर अग्रसर करेगा।

Advertisement
Advertisement
Next Article