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घटती नौकरियां, बढ़ता खौफ

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02:26 PM Jun 18, 2017 IST | Desk Team

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इस समय भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष की आयु तक के युवकों की और 25 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। युवा शक्ति भारत के लिए एक वरदान हैं। आंखों में उम्मीदों के स्वप्न, नई उड़ान भरता मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और आकाश को अपनी मुी में करने का हौसला रखने वाला ही युवा कहा जाता है। इसलिए किसी भी देश के लिए युवा शक्ति का सही दिशा में इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो युवाओं का जरा सा भटकाव राष्ट्र के भविष्य को अनिश्चित कर सकता है। महादेवी वर्मा के शब्दों में ”बलवान राष्ट्र वही होता है जिसकी तरुणाई सबल होती है।” देश की अर्थव्यवस्था विस्तार जरूर पा रही है लेकिन बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े खौफ पैदा कर रहे हैं। बेरोजगारी के बढऩे से युवा पीढ़ी हताश है क्योंकि उनके सपने बिखर रहे हैं। सरकारी स्तर पर ही नहीं बल्कि सार्वजनिक उपक्रम एवं ख्याति प्राप्त आईटी सैक्टर की कम्पनियां, बहुराष्ट्रीय कम्पनियां लगातार नौकरियों में कटौती कर रही हैं, उससे स्पष्ट है कि स्थिति अच्छी नहीं। आज भारत में करीब 67.2 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। नौकरी देने वाली संस्थाओं और सरकारी मानकों के अनुरूप शिक्षित नहीं होने के कारण नियोक्ता उन्हें नौकरी के लायक नहीं मानते। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार कौशल विकास पर जोर दे रहे हैं।

बेरोजगारी के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्थितियां भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। भारत की आईटी कम्पनियां ज्यादातर अमेरिका और दूसरे देशों के लिए आउटसोर्सिंग का काम करती रही है लेकिन अमेरिका और दूसरे बाजार संरक्षणवाद और स्थानीय लोगों को नौकरी देने की नीति पर अमल कर रहे हैं, बड़ी कम्पनियों का लाभ कम हो रहा है, वह छंटनी को मजबूर हैं। भारत के आईटी सैक्टर के बुरे हालात के लिए पश्चिमी देशों की राष्ट्रवादी नीतियां भी जिम्मेदार हैं वहीं इस सैक्टर में तेजी से हो रहे ऑटोमेशन की वजह से भी रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। कम्पनियां बड़ी तेजी से ऐसे साफ्टवेयर विकसित कर रही हैं जिनके जरिये काम को बिना इंसान के निपटाया जा सकता है। भारत की आईटी इंडस्ट्री की सफलता की बड़ी वजह यह भी थी कि यहां सस्ता श्रम उपलब्ध है। सस्ते श्रम के कारण ही युवाओं को कालसेंटरों से लेकर बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में काम मिला। जब दुनिया में मंदी छा गई थी और 2011-12 में दुनिया मंदी से उबरने की प्रक्रिया में थी तब भारत समेत कई देशों में काफी उथल-पुथल देखी गई थी लेकिन भारत पर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं देखा गया। इसका कारण सस्ता श्रम ही था। 1990 के दशक से ही भारत का आईटी सैक्टर डाटा, एंट्री, काल सैंटर चलाने और साफ्टवेयर टेस्टिंग जैसे काम करता रहा है। कम कौशल वाले ये काम वे विदेशी कम्पनियों के लिए करते रहे हैं। आटोमेशन की वजह से नई तकनीक में महारत हासिल करना जरूरी है। भारत की अर्थव्यवस्था में आईटी इंडस्ट्री की हिस्सेदारी 9.3 फीसद है, इनमें कुल 37 लाख कर्मचारी काम करते हैं। भारत में रोजगार के अवसर वैसे भी कम ही उपलब्ध हो रहे हैं।

भारत में कुछ ऐसी कम्पनियों ने काम शुरू किया जिन्होंने भारतीय व्यापार-रोजगार की स्थितियों को धूमिल किया। उन्होंने बेगाने माल पर लाभ उठाया। जैसे गाड़ी किसी और की, न ड्राइवर रखने की चिंता, न वाहनों के मेंटिनेंस का झगड़ा। इस माडल से लोग जुड़ तो गए अब इतनी टैक्सी सेवाएं शुरू हो गईं कि ऋण की किश्त उतारना भी मुश्किल हो रहा है। कुछ कम्पनियां केवल प्रोजैक्ट के आधार पर इंजीनियर और साफ्टवेयर इंजीनियर रखती हैं। यह माडल अन्य सैक्टरों के लिए भी लोकप्रिय हो रहा है। कर्मचारियों को नियमित नौकरी नहीं, उनसे जुड़े सामाजिक दायित्वों से मुक्ति। भले ही कहा जा रहा है कि आज के युवा बंधकर काम करना पसंद नहीं करते लेकिन इससे खतरा इस बात का है कि जब उन पर परिवार को पालने का बोझ पड़ेगा तो न उनके पास स्थाई नौकरी होगी, न कोई सामाजिक सुरक्षा, वृद्धावस्था में न कोई भविष्यनिधि होगी और न कोई पेंशन। इससे तो युवा पीढ़ी का भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं स्थिति से चिंतित हैं। युवा पीढ़ी को सही दिशा देना जरूरी है अन्यथा इससे अशांति फैल सकती है। प्रधानमंत्री रोजगार के नए अवसरों को सृजित करने के लिए बैठक करने वाले हैं। संगठित क्षेत्र के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे। बेरोजगारी केवल आर्थिक समस्या नहीं बल्कि यह मुद्दा अपराध नियंत्रण और सामाजिक शांति से भी जुड़ा हुआ है। रोजगार बढ़ाने के लिए न केवल सरकारी स्तर पर बहुत काम करना होगा, बल्कि छोटे उद्योगों का विकास करना होगा। बड़ी कम्पनियां छोटे उद्योगों, कामधंधों को निगल रही हैं। लघु उद्योग बड़े उद्योगों की तुलना में 5 गुणा ज्यादा रोजगार देते हैं। युवाओं की उम्मीदें मोदी सरकार पर लगी हुई हैं। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस मोर्चे पर कुछ नई घोषणाओं के साथ नई परियोजनाएं शुरू करने का ऐलान कर सकते हैं।

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