महाराष्ट्र और झारखण्ड के नतीजों के गहरे निहितार्थ
महाराष्ट्र में जहां महायुति की सुनामी आई है, वहीं झारखंड में जेएमएम नीत इंडिया गठबंधन को जीत मिली है। चुनाव नतीजों के बाद कहीं खुशी तो कहीं गमी का माहौल है। प्रथम दृष्टया महाराष्ट्र व झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों का लबोलुबाब यह है कि राज्यों की जनता ने सत्तारूढ़ गठबंधनों में ही विश्वास जताया है..
महाराष्ट्र में जहां महायुति की सुनामी आई है, वहीं झारखंड में जेएमएम नीत इंडिया गठबंधन को जीत मिली है। चुनाव नतीजों के बाद कहीं खुशी तो कहीं गमी का माहौल है। प्रथम दृष्टया महाराष्ट्र व झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों का लबोलुबाब यह है कि राज्यों की जनता ने सत्तारूढ़ गठबंधनों में ही विश्वास जताया है। हालांकि, दोनों राज्यों के मुद्दे व राजनीतिक परिदृश्य एक-दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन की अप्रत्याशित जीत ने सबको चौंकाया है। इतनी बड़ी कामयाबी की उम्मीद शायद महायुति के नेताओं को भी नहीं रही होगी। वहीं दूसरी ओर भले ही झारखंड में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन ने सत्ता बरकरार रखी हो, मगर महाराष्ट्र की महाविजय झारखंड के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण है, जिसके गहरे निहितार्थ हैं।
दोनों राज्यों में विपक्ष को न केवल निराशा हाथ लगी, बल्कि वह पहले के मुकाबले पस्त भी हुआ। महाराष्ट्र में कुछ ज्यादा ही, क्योंकि यहां महाविकास आघाड़ी में शामिल कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) मिलकर सौ सीटें भी हासिल नहीं कर सकीं। ऐसे लचर प्रदर्शन के बाद शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए अपने दलों को प्रासंगिक बनाए रखना तो कठिन होगा ही, कांग्रेस के लिए भी इंडी गठबंधन का केंद्र बने रहने में मुश्किल होगी।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार ने मिलकर कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद) को इतनी बड़ी शिकस्त दी है, जिसका सपना भी इन तीन दलों ने कभी नहीं देखा होगा। प्रदेश की जनता ने अपनी वोट की ताकत से वहां चाणक्य शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले के गठबंधन को पीछे धकेल दिया है। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में 30 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस गठबंधन को यहां की जमीनी राजनीतिक हकीकत समझने में चूक हो गई।
इस चुनाव के परिणाम के बाद तो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी आरएसएस मुख्यालय नागपुर के रेशिमबाग में संविधान बांटने पहुंच गए, जिसमें अंदर के पन्ने कोरे निकले। बीजेपी ने इसे लाल किताब बता दिया। राहुल गांधी को लगा था कि संविधान, ओबीसी रिजर्वेशन और जाति गणना जैसे मुद्दे जो लोकसभा चुनाव में चल गए थे, उसके जरिए विधानसभा में जीत तय है और यही फॉर्मूला चलेगा। फिर क्या था, इधर चुनाव चल रहे थे और उधर कांग्रेस चुनाव के दौरान भावी सीएम पर चर्चा कर रही थी। अब जब चुनाव परिणाम सामने आ गए हैं तो पता चल रहा है कि महाराष्ट्र के इतिहास में कांग्रेस की ऐसी दुर्गति आपातकाल के बाद हुए चुनावों में भी नहीं हुई थी। तब भी इंदिरा गांधी की पार्टी को 69 सीटें मिली थीं। आज तो कांग्रेस यहां 16 सीटों पर संघर्ष करती नजर आ रही है।
झारखंड में कांग्रेस ने पिछला चुनाव 31 सीटों पर लड़ा था। उसे 16 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि, इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 30 सीटों पर चुनाव लड़ी है, लेकिन उसे 16 सीटों पर विजय मिली। मतलब कांग्रेस के स्ट्राइक रेट में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। दूसरी तरफ कांग्रेस महाराष्ट्र में महायुति में शामिल तीन दलों में से भी किसी का मुकाबला नहीं कर पा रही है। महाराष्ट्र में इस बार कांग्रेस ने 101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और 16 पर उसने जीत हासिल है। जबकि, कांग्रेस ने पिछला चुनाव 147 सीटों पर लड़कर 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में जमकर पसीना बहाया था। ऐसे में यह पार्टी के लिए समीक्षा का दौर है कि आखिर उनके पक्ष में अपेक्षाकृत परिणाम क्यों नहीं आए। सवाल यह है कि राहुल गांधी की जनसभाओं में आई भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो सकी।
महाराष्ट्र में ऐसी शानदार जीत की कल्पना राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार व उद्धव ठाकरे के होते हुए शायद ही किसी ने की हो। दरअसल, छह माह से कम समय पहले महा विकास अघाड़ी, जिसमें कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना के उद्धव ठाकरे धड़े ने लोकसभा चुनाव में भाजपा व उसके सहयोगियों को पछाड़ दिया था। ऐसे में विधानसभा चुनाव में गठबंधन की उम्मीदें बढ़ गई थीं। लेकिन अति आत्मविश्वास और दलों में फूट के कारण गठबंधन ने निराशाजनक प्रदर्शन किया। कांग्रेस भी हरियाणा में मिले झटके से कोई सबक नहीं सीख पायी। इसके विपरीत, महायुति ने मतदाताओं को लुभाने के लिये हर संभव प्रयास किया। खासकर महिला केंद्रित लाड़ली बहन योजना जैसी कल्याणकारी योजनाओं ने अद्भुत काम किया।
वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन के जो मुद्दे चले, वे झारखंड में निष्प्रभावी रहे। हेमंत सोरेन झारखंड की जनता को विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि वे आदिवासी हितैषी हैं। ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा तथा घुसपैठियों का मुद्दा झारखंड के लोगों को रास नहीं आया। कहीं न कहीं प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कथित भ्रष्टाचार के आरोप में हेमंत सोरेन के खिलाफ हुई कार्रवाई उनके लिये सहानुभूति जगाने की वजह बनी। वहीं महिलाओं के खातों में गई एकमुश्त रकम ने उन्हें बड़ा संबल दिया। महिला कल्याण केंद्रित योजनाओं के चलते महिला वोटर महाराष्ट्र और झारखंड में निर्णायक साबित हुए। लेकिन दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिये बड़ा झटका हैं। एक ओर जहां वह झारखंड में झामुमो के कनिष्ठ सहयोगी के रूप में सरकार का हिस्सा रहेगी, वहीं महाराष्ट्र में हुई हार ने उसे इंडिया गठबंधन में बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति को कमजोर किया है। इन चुनाव नतीजों का असर अगले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।