परिसीमन : दक्षिण भारत को डर नहीं
तमिलनाडु में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए शतरंजी बिसात बिछ गई है…
तमिलनाडु में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए शतरंजी बिसात बिछ गई है। नई दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने न केवल इस वर्ष होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के लिए अभी से ही तैयारी शुुरू कर ली है,बल्कि भाजपा ने तमिलनाडु में भी पूरी ताकत से चुुनाव लड़ने की तैयारी कर ली है। इसके संकेत गृहमंत्री अमित शाह के कोयम्बटूर दौरे से मिल गए हैं। गृहमंत्री ने द्रमुक (डीएमके) सरकार को महाभ्रष्ट बताते हुए उसे सत्ता से हटाने का बिगुल बजा दिया है। भाजपा हिन्दुत्व की राजनीति करती है तो दूसरी तरफ द्रमुक मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन में तमिलनाडु को होने वाले सम्भावित घाटे और हिन्दी विरोध के मुद्दे उछाल कर अपनी पार्टी का जमीनी आधार मजबूत करने की सियासत शुरू कर दी है। तमिलनाडु सरकार में उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने एक कार्यक्रम में हिन्दू धर्म की मुख्यधारा सनातन को बीमारी की संज्ञा दी थी। इसके बाद भाजपा ने सनातन को अपने प्रचार का मुख्य हथियार बना लिया।
दक्षिण भारत के राज्यों में हिन्दी का विरोध कोई नया नहीं है लेकिन परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दल यह कहकर खौफ पैदा कर रहे हैं कि यह उनके राज्यों पर तलवार के समान है। गृहमंत्री अमित शाह ने इस फैलाए जा रहे खौफ आैर स्टालिन के दावों की यह कहकर हवा निकाल दी है कि परिसीमन में दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या में कोई कमी नहीं आएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी दावा िकया है कि परिसीमन में िकसी भी दक्षिणी राज्य पर कोई असर नहीं होगा। गृहमंत्री ने आश्वासन दिया है कि परिसीमन में जितनी सीटें उत्तर भारत में बढ़ेंगी उसी अनुपात में दक्षिणी राज्यों की सीटें बढ़ेंगी। इस साल देश में सोलहवीं जनगणना होना संभावित है। साथ ही अगले साल 2026 में संसदीय व विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का देश की बढ़ती आबादी के परिप्रेक्ष्य में नए सिरे से परिसीमन होना है। 5 (केन्द्र शासित पुडुचेरी सहित 6) दक्षिणी राज्यों और खासकर तमिलनाडु की चिंता यह है कि चूंकि बीते डेढ़ दशक में इन राज्यों की आबादी उत्तर पश्चिमी भारत के राज्यों की तुलना में कम बढ़ी है, ऐसे में नए परिसीमन में लोकसभा में उनकी सीटें कम हो सकती हैं।
इसका अर्थ है कि राष्ट्रीय राजनीति में दक्षिण भारत की घटती हिस्सेदारी। दक्षिणी राज्यों का वाजिब तर्क है कि चूंकि उन्होंने अपने यहां जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित कर आर्थिक, सामाजिक स्तर पर तेजी से विकास किया, इसकी ‘सजा’ उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में घटती हिस्सेदारी के रूप में क्यों मिले। स्टालिन का कहना है कि यदि परिसीमन का मुख्य कारक आबादी ही रहा तो तमिलनाडु की लोकसभा में 8 सीटें घट जाएंगी, जो वर्तमान में 39 है। सीटें घटने की यह चिंता तमिलनाडु के साथ-साथ दक्षिण के अन्य राज्यों में भी है। इसीलिए आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है और स्थानीय चुनावों में उम्मीदवारी के लिए दो बच्चों की सीमा को भी हटा दिया है। अब यह मोदी सरकार पर निर्भर है कि वह देश के संघीय ढांचे को कायम रखने के लिए क्या करती है। प्रत्येक राज्य में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों को लेकर संविधान कहता है कि उन्हें ‘इस प्रकार विभाजित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या और उसे आवंटित सीटों की संख्या के बीच का अनुपात, जहां तक संभव हो पूरे राज्य में समान हो’ लेकिन जनसंख्या में बदलाव होता रहता है और इसलिए विभिन्न विधायी और निर्वाचित निकायों के लिए सीटों के आवंटन में समय-समय पर समीक्षा और उचित समायोजन होना चाहिए। यही परिसीमन का कार्य है, जिसे भारत में परिसीमन आयोग द्वारा निष्पादित किया जाता है।
अमित शाह परिपक्व आैर सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। वह जो कहते हैं दृढ़ निश्चय के साथ वो कर िदखाते हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को एक ही झटके में हटा दिया था। तब एक भी गोली नहीं चली थी। अब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बहुत कम हो चुका है और कश्मीरी आवाम राष्ट्र की मुख्यधारा से लगातार जुड़ता जा रहा है। देश में नक्सली हिंसा खत्म करने का उनका संकल्प भी पूरा होने के करीब है। उनका वादा है कि कुछ ही समय में नक्सलवाद का पूरी तरह से सफाया हो जाएगा। जहां तक परिसीमन का सवाल है जनगणना के डाटा का उपयोग पूरे देश में परिसीमन के लिए किया जाएगा। इसके लिए परिसीमन आयोग स्थापित किया जाएगा, उसमें सभी दलों के प्रतिनिधि होंगे। सभी को अपने-अपने विचार रखने की स्वतंत्रता होगी। परिसीमन एक जटिल मुद्दा है जिसके लिए सभी पक्षों से परामर्श की जरूरत है। मोदी सरकार यह सुिनश्चित करेगी िक परिसीमन प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और सभी राज्यों के लिए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाली हो। इसके िलए संविधान के तहत स्वीकार्य फार्मूले अपनाए जा सकते हैं।