Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

मालदीव में लोकतंत्र की जीत

NULL

08:14 AM Sep 26, 2018 IST | Desk Team

NULL

लगभग चार लाख की आबादी वाले और 300 वर्ग किलोमीटर से भी कम जमीन वाले मालदीव से भारत के लिए अच्छी खबर आई है। मालदीव में हुए चुनाव में चीन के कट्टर समर्थक समझे जाने वाले राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को भारत से मजबूत संबंधों के पक्षधर कहे जाने वाले विपक्षी नेता इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने पराजित कर दिया है। सोलिह की जीत की घोषणा के साथ ही सड़कें विपक्ष के समर्थकों से भर गईं। सोलिह मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद, जो श्रीलंका में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं, की पार्टी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार थे और उन्हें विपक्षी दलों का पूरा समर्थन प्राप्त था। दुनियाभर के देशों की मालदीव पर नजरें लगी हुई हैं कि चुनाव परिणाम आ जाने के बाद अब्दुल्ला यामीन क्या गद्दी छोड़ेंगे? लेकिन उन्होंने भी अपनी पराजय स्वीकार कर ली है। अभी भी लोगों को आशंका है कि वह कुछ गड़बड़ कर सकते हैं।

भारत ने भी चुनाव परिणामों की अ​ाधिकारिक घोषणा के बिना ही राष्ट्रपति चुनाव के नतीजाें का स्वागत कर दिया। भारत ने कहा है कि यह नतीजे न केवल मालदीव में लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत का प्रतीक हैं बल्कि लोकतंत्र और कानून के शासन के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धताओं को भी दर्शाते हैं। भारत सांझेदारी को और गहरा बनाने में मालदीव के साथ मिलकर काम करने की उम्मीद करता है। आखिर छोटा सा देश भारत के लिए क्यों इतनी अहमियत रखता है? दरअसल हिन्द महासागर तक पहुंचने के एक अहम रास्ते में मालदीव की मौजूदगी उसे भारत स​िहत कई देशों के लिए खास बनाती है। भारत भी इसी रास्ते से तेल मंगाता है। 1998 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा किए गए आप्रेशन कैक्टस के बाद भारत और मालदीव के संबंध प्रगाढ़ हुए थे।

3 नवम्बर, 1988 के दिन श्रीलंकाई उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन आर्गेनाइजेशन आफ तमिल ईलम के हथियारबंद उग्रवादी मालदीव पहुंचे थे। स्पीड बोट्स के जरिए मालदीव पहुंचे उग्रवादी पर्यटकों के भेष में थे। श्रीलंका में कारोबार करने वाले मालदीव के अब्दुल्लाह लथुफी ने उग्रवादियों के साथ मिलकर तख्ता पलट की योजना बनाई थी। मालदीव पहुंचे उग्रवादियों ने सरकारी इमारतों को अपने कब्जे में ले लिया था। इसी बीच राष्ट्रपति मामून अब्दुल गय्यूम ने कई देशों समेत नई दिल्ली को आपात संदेश भेजा, जैसे ही संदेश राजीव गांधी तक पहुंचा, वैसे ही भारतीय सेना को वहां भेजने के निर्देश दे दिए गए। भारतीय सेना ने वहां जाकर सब-कुछ नियंत्रण में ले लिया और राष्ट्रपति गय्यूम को सुरक्षित किया। उग्रवादी खदेड़ दिए गए। श्रीलंका भागते उग्रवादियों ने एक जहाज को अगवा कर लिया था, उसे भी भारत के मरीन कमांडो ने मुक्त कराया।

स्वतंत्रता के बाद विदेशी धरती पर भारत का यह पहला सफल सैन्य अभियान था। आप्रेशन के बाद भी 150 भारतीय सैै​निक सालभर मालदीव में रहे। पिछले 5 वर्ष मालदीव में काफी राजनीतिक उथल-पुथल भरे रहे। पांच साल पहले राष्ट्रपति बने अब्दुल्ला यामीन गय्यूम को चीन की परियोजनाओं में संसार नज़र आया और उन्होंने अपने देश का दरवाजा चीनी कंपनियों के लिए खोल दिया। चीन ने भारत के पांव उखाड़ने के लिए मालदीव में हाउसिंग प्रोजैक्ट से लेकर पावर प्लांट, वाटर आैर सीवेज प्लांट से लेकर होटल और अन्य परियोजनाओं में निवेश करना शुरू कर दिया। चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत अपने पांव पसार लिए। भारत और मालदीव के रिश्तों में तनातनी आ गई। राष्ट्रपति यामीन को चीन से मदद जरूर मिली लेकिन देश में उनके विरोधियों की संख्या बढ़ती चली गई। राष्ट्रपति यामीन ने विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया। अनेक को निर्वासित कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ध्वस्त करने की पूरी कोशिश की।

इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों को गिरफ्तार किया था लेकिन विपक्ष एकजुट होता गया। हर भारतवासी को बुरा लगता था कि छोटा सा देश हमें कहे कि ‘आप उपहार में दिए गए हैलीकाप्टर वापिस ले जाओ।’ यह सब चीन की शह पर किया जा रहा था। विपक्ष को अपनी ताकत पर भरोसा तो था लेकिन आशंका थी कि यामीन अपनी चालबाजियों के दम पर कहीं जीत न जाएं। हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से कहा था कि वह सैन्य हस्तक्षेप कर वहां लोकतंत्र बहाल करे लेकिन इस बार परिस्थितियां काफी अलग थीं।हिन्द महासागर के छोटे से द्वीप के रूप में मौजूद मालदीव भौगोलिक रूप से भले छोटा हो लेकिन सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिशों में जुटा चीन हर देश में अपनी सामरिक शक्ति बढ़ा रहा है, इसी क्रम में उसने मालदीव में अपनी मौजूदगी बढ़ाई।

चीन ने श्रीलंका में महिन्द्रा राजपक्षे के रहते जो किया, वही काम उसने यामीन के कार्यकाल में मालदीव में किया। यामीन ने बहुत से भारतीय अनुबंध तोड़ दिए थे। यहां तक कि मालदीव की कंपनियों ने अपने विज्ञापन में कह दिया था कि भारतीय नौकरी के लिए आवेदन नहीं करें, क्योंकि उन्हें वर्क वीजा नहीं मिलेगा। अब सवाल यह है कि क्या मालदीव में भारत की भूमिका पहले जैसी हो पाएगी? पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने कहा है कि मालदीव के लोगों ने बीते वर्षों में बहुत कुछ झेला है और चीन इसे नहीं समझ सकता। उम्मीद है कि मालदीव और भारत के संबंध फिर से मजबूत होंगे। विश्लेषक मान रहे हैं कि चुनाव परिणामों के बाद चीन भी दबाव में है और सोच रहा है कि इतने बड़े पैमाने पर निवेश का उसे आर्थिक लाभ मिलेगा भी या नहीं। पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने कहा है कि यामीन के कार्यकाल में शुरू सभी चीनी परियोजनाओं का आडिट कराया जाएगा। चीन पर जमीन हड़पने के आरोप लग रहे हैं। चीन से लोग नाराज भी हैं। मालदीव में सत्ता परिवर्तन भारत के लिए एक अवसर है। देखना है भारत और मालदीव किस प्रकार आगे बढ़ते हैं।

Advertisement
Advertisement
Next Article