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भारत और चीन का वार्तातन्त्र

रूस के कजान शहर में ब्रिक्स (भारत, रूस, ब्राजील, चीन व दक्षिण अफ्रीका) देशों के शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि मौजूदा दौर युद्ध का नहीं बल्कि वार्तालाप व शान्ति का है

10:59 AM Oct 24, 2024 IST | Aditya Chopra

रूस के कजान शहर में ब्रिक्स (भारत, रूस, ब्राजील, चीन व दक्षिण अफ्रीका) देशों के शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि मौजूदा दौर युद्ध का नहीं बल्कि वार्तालाप व शान्ति का है

रूस के कजान शहर में ब्रिक्स (भारत, रूस, ब्राजील, चीन व दक्षिण अफ्रीका) देशों के शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि मौजूदा दौर युद्ध का नहीं बल्कि वार्तालाप व शान्ति का है, बताता है कि भारत विभिन्न वैश्विक समस्याओं का हल केवल कूटनीतिक रास्तों से ही चाहता है। श्री मोदी ने इस क्षेत्र में आजाद भारत की सर्वविदित नीति को ही रेखांकित किया है और स्पष्ट किया है कि भारत युद्ध के जरिये हल ढूंढे जाने के पक्ष में कभी नहीं रहा है परन्तु हम देख रहे हैं कि दुनिया में एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है और दूसरी तरफ पश्चिम एशिया में फलस्तीन व इजराइल लड़ाई में उलझे हुए हैं। श्री मोदी ने सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि आतंकवाद और इसके वित्तीय पोषण का सभी देशों को एक स्वर व एक मत से विरोध करना चाहिए और किसी भी स्तर पर इस मामले में दोहरा मानदंड नहीं अपनाया जाना चाहिए। निश्चित रूप से आतंकवाद अब पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती बन चुका है मगर अफसोस की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अभी तक आतंकवाद की निश्चित परिभाषा नहीं गढ़ पाया है। मगर इस सम्मेलन के अवसर पर श्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी-जिनपिंग से अलग से बातचीत भी की और दोनों देशों के बीच की समस्याओं के बारे में विचार विनिमय भी किया।

सभी जानते हैं कि चीन ने साढे़ चार साल पहले पूर्वी लद्दाख के इलाके में भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण किया था जिसे लेकर 20 जून, 2020 को इस सीमा पर चीनी फौजियों से भारतीय सैनिकों की हिंसक झड़प हुई थी और इसमें भारत के बीस सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके बाद से चीन के साथ भारत के सम्बन्धों में भारी खटास पैदा हुई और कालान्तर में भारत को भी इस सीमा पर अपने 50 हजार फौजी तैनात करने पड़ेे। इसकी वजह यह थी कि चीन भारत से लगी नियन्त्रण रेखा की स्थिति बदलना चाहता था। इसके बाद भारत ने ‘जैसे को तैसा’ तेवर अपनाते हुए चीन को सबक सिखाने के लिए आवश्यक रणनीति अपनाई और साथ ही दोनों देशों के फौजी कमांडरों के बीच बातचीत का दौर भी जारी रखा जिसके कारण साढे़ चार साल बाद चीन इस मोर्चे पर शान्ति व सौहार्द कायम करने के समझौते पर पिछले सप्ताह ही पहुंचा। इसके बाद ही कजान में दोनों देशों के शासन प्रमुखों के बीच ब्रिक्स सम्मेलन के अवसर पर अलग से बातचीत हुई। इस बातचीत में चीनी राष्ट्रपति को भी यह स्वीकार करना पड़ा कि वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर शान्ति व भाइचारे का माहौल बनाना उनकी वरीयता है। इस बातचीत में दोनों देशों के नेताओं ने यह भी माना कि आपसी विवादों को बहुत सलीके के साथ आपसी वार्तालाप से निपटाया जाना चाहिए। चीन ने यह स्वीकार किया कि दोनों देशों के नेताओं की इस मुलाकात को पूरा विश्व बहुत ध्यान से देख रहा है। इसी से जाहिर है कि भारत की भूमिका वर्तमान विश्व राजनीति में बहुत अहम हो चुकी है।

दरअसल चीन के साथ सीमा विवाद भारत को विरासत में मिला है क्योंकि चीन अपने व भारत, तिब्बत के बीच खिंची अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा मैकमोहन लाइन को स्वीकार ही नहीं करता है। मगर 2003 में भारत द्वारा तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार कर लिये जाने के बाद स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन आ चुका है। जिसे देखते हुए ही 2003 में ही दोनों देशों के बीच इस बात पर सहमति बनी थी कि सीमा निर्धारित करने हेतु दोनों देशों के बीच एक उच्च स्तरीय वार्ता मंडल का गठन होगा। 2004 में डा. मनमोहन सिंह की सरकार इस मोर्चे पर आगे बढ़ी और उसने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के नेतृत्व में एक वार्ता दल का गठन किया और दूसरी तरफ चीन ने भी समकक्ष मन्त्री के नेतृत्व में वार्ता दल गठित किया। इन वार्ता दलों की डेढ़ दर्जन से अधिक बार बैठक हो चुकी है मगर नतीजा कुछ नहीं निकला है। सीमा निर्धारण के लिए गठित इन दलों के लिए भारत ने एक फार्मूला भी तैयार किया था कि जिस इलाके में जिस देश का शासन तन्त्र कायम है वह उसी का इलाका माना जायेगा। मगर हम जानते हैं कि भारत द्वारा तिब्बत को चीनी अंग स्वीकार कर लेने के बाद चीन ने सिक्किम को भारत का अंग स्वीकार कर लिया था परन्तु अरुणाचल प्रदेश (नेफा) पर अपना दावा ठोकना शुरू कर दिया था। इससे चीन की विस्तारवादी नीयत को समझा जा सकता है। चीन के बारे में यह भी प्रसिद्ध है कि वह सैनिक मानसिकता (मिलिट्री मांइडेड) वाला देश है। इसलिए उसे बातचीत की मेज तक लाना आसान काम नहीं है परन्तु भारत की विदेश नीति पं. जवाहर लाल नेहरू के समय से ही वार्ता और शान्ति की नीति रही है। अतः वार्ता के माध्यम से चीन के साथ अपने मतभेद समाप्त करना भी एक चुनौती से कम नहीं है।

चीन फिलहाल दुनिया की दूसरी सबसे बड़​​ी आर्थिक ताकत बन चुका है मगर वह भारत के सहयोग के बिना अपना रुतबा कायम नहीं रख सकता क्योंकि भारत उसका एेसा पड़ोसी देश है जिस पर 1962 में अकारण ही उसने आक्रमण करके अपनी स्थिति को सन्देहास्पद बना लिया था वरना दुनिया की प्राचीनतम संस्कृतियों वाले इन दो देशों के बीच संघर्ष क्यों होता? जाहिर है कि चीन वर्तमान समय में भारत को दबाव में रखकर सहयोग चाहता है परन्तु भारत की नीति न तो अकड़ दिखाने की रही है और न ही किसी के दबाव में आने की। अतः भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को हल करने के लिए जो वार्तातन्त्र गठित किया गया था उसके कार्य में तेजी आनी चाहिए। इस वार्ता तन्त्र को गति देना चीन की भी वरीयता होनी चाहिए तभी दोनों देशों की सीमाओं पर पूर्ण शान्ति व सौहार्द कायम होगा।

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