दिलजीत दोसांझ और पाकिस्तानी हीरोइन
जनून का दौर है किस-किस को जाएं समझाने
उधर भी होश के दुश्मन इधर भी दीवाने
वैसे तो सिंगर दिलजीत दोसांझ विवादों के आदी हैं। कई बार हमारे आर्टिस्ट लोकप्रियता बढ़ाने के लिए भी विवाद खड़ा कर देते हैं पर उन्हें लेकर जो ताज़ा विवाद है वह तो फ़िज़ूल लगता है। मामला उनकी फ़िल्म ‘सरदार जी3’ से सम्बंधित है, क्योंकि उस फ़िल्म में उनके साथ पाकिस्तानी हीरोइन हानिया आमीर काम कर रही है। इसी पर दिलजीत की बड़ी आलोचना की गई। मांग की गई कि उन्हें बार्डर-2 से निकाल दिया जाए। फैडेरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया साइन इम्पलॉईज़ एसोसिएशन ने तो और बढ़ते हुए मांग की है कि दिलजीत दोसांझ की नागरिकता रद्द कर दी जाए। शिकायत यह है कि दिलजीत दुश्मन देश की हीरोइन के साथ काम कर रहे हैं, जो पहलगाम की घटना के बाद अस्वीकार्य है। दिलजीत की देशभक्ति पर ही सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह मांग भी की गई कि दिलजीत दोसांझ के म्यूज़िक पर बैन लगा दिया जाए।
फ़िल्म सरदार जी 3 की शूटिंग फ़रवरी में पहलगाम की घटना से दो महीने पहले हुई थीं। दिलजीत बता चुके हैं कि फ़िल्म में कलाकारों का चुनाव निर्माता -निर्देशक करते हैं। उन्हें तो केवल बताया गया कि तुम ने हानिया आमीर के साथ काम करना है। अतीत में भी फावद खान और महीरा खान जैसे कई पाकिस्तानी एक्टर हमारी फ़िल्मों में काम कर चुके हैं। निर्माता ने लोगों की उत्तेजित भावनाओं को देखते हुए फ़िल्म को भारत में रिलीज़ न करने का फ़ैसला किया है। पहले भी कई बार फ़िल्मों की रिलीज़ इसलिए रोकनी पड़ी थी क्योंकि किसी न किसी की धार्मिक या देशभक्ति की भावना ‘आहत हो रही थी’। हम इतने असुरक्षित क्यों हैं किसी फ़िल्म या किसी कामेिडयन के शो से आहत हो जाते हैं ?
दिलजीत दोसांझ के इस तर्क पर कि यह फ़िल्म पहलगाम से पहले बनी थी पर एक उत्तेजित एंकर (हमारे एंकर उस तरह संयम और मर्यादा में क्यों नहीं रह सकते जैसे बीबीसी या सीएनएन या अल जज़ीरा के एंकर रहते हैं? हर मामले पर चीखने-चिल्लाने या लड़ने की क्या ज़रूरत है?) कह रहे थे कि पहलगाम से पहले भी तो बहुत कुछ हुआ। मुम्बई, उरी, पठानकोट,पुलवामा बहुत कुछ हुआ फिर पाकिस्तानी हीरोइन को क्यों लिया गया? पर फ़रवरी में हमने पाकिस्तान के साथ दुबई में आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी का मैच भी खेला था। छह विकेट की जीत पर सारे देश ने ख़ुशी मनाई थी। तो क्या बीसीसीआई पर भी बैन लगना चाहिए? उसके पदाधिकारियों की देश भक्ति पर सवाल लगने चाहिए आख़िर उन्होंने टीम को 'दुश्मन’ की टीम के साथ खेलने दिया? कई टीवी चैनल तो पैसे देकर पाकिस्तानियों को अपने शो पर बुलाते रहे हैं ताकि टीआरपी बढ़ सके। इनके बारे क्या करना है? दिलजीत दोसांझ बहुत मशहूर आर्टिस्ट है। ‘चमकीला’ जैसी फ़िल्मों में वह बढ़िया रोल कर चुके हैं। विदेशों में उनके शो सोल्ड आउट जाते हैं।
दर्शकों में पाकिस्तानियों की भी बड़ी संख्या होती है। दोनों तरफ़ के पंजाबी भरे होते हैं। भाजपा के नेता और कलाकार हॉबी धालीवाल ने तो दिलजीत दोसांझ को ‘पंजाबी कलचर’ का आइकॉन बताया है। उनका यह सही तर्क है कि केवल दिलजीत ही नहीं फ़िल्म में और बहुत से दूसरे कलाकार भी हैं। दिलजीत दोसांझ पर जो तूफ़ान खड़ा किया गया उसके पीछे प्रोफेशनल स्पर्धा भी लगती है। बहुत से दूसरे पंजाबी कलाकार, जो खुद पाकिस्तान जा चुके हैं या पाकिस्तानियों के साथ काम कर चुके हैं, आज दिलजीत दोसांझ की आलोचना कर रहे हैं। पंजाबी सिंगर कई बार मर्यादा की रेखा पार कर चुके हैं। ड्रग्स से लेकर हथियारों की प्रदर्शनी कर चुके हैं। नशे का गुणगान कर चुके हैं। कोई एक ही दोषी नहीं है। सच्चाई है कि पाकिस्तान को लेकर हमारे समाज और सरकार दोनों में विरोधाभास ही नहीं, दोगलापन भी है। मेरे एक मित्र हैं। उन्होंने आजकल की भाषा में 'भक्त’ भी कहा जा सकता है। वह पाकिस्तानी हीरोइन के साथ काम करने के लिए दिलजीत दोसांझ पर पाबंदी चाहते हैं। मैंने पूछा कि आजकल क्या कर रहे हो तो जवाब मिला, “मैडम के साथ बैठ कर पाकिस्तानी सीरियल देख रहे हैं”।
उस वक्त उन्हें न पुलवामा याद आया और न ही पहलगाम। यह कड़वी सच्चाई है कि हमारी जनसंख्या का बड़ा भाग विशेष तौर पर उत्तर भारत में, पाक सीरियल का दीवाना है। सांझी भाषा और संस्कृति और यूट्यूब जैसे चैनलों ने इन्हें भारत में लोकप्रिय बना दिया है। ‘सुनो चंदा’,’मेरे हम सफ़र','तेरे बिना’, ‘कभी मैं कभी तुम’, जैसे सीरियल अपनी कहानी के कारण ‘भक्त’ परिवारों में बहुत लोकप्रिय हैं। इस दौरान कई आतंकी घटनाएं हुईं पर उनकी देशभक्ति उन्हें पाकिस्तानी सीरियल देखने से नहीं रोक सकी। वह घर के अंदर बैठ कर पाकिस्तानी सीरियल देख सकते हैं, पर दिलजीत दोसांझ जिसका फ़िल्म निर्माण से कोई सम्बंध नहीं, वह तो दोषी है! उस पर पाबंदी लगनी चाहिए!
यही विरोधाभास सरकार की नीति में नजर आता है। पहले पाकिस्तानी सेलेब्रिटीज़ के सोशल मीडिया अकाउंट पर बैन लगा दिया। फिर खोल दिया पर सोशल मीडिया पर उठे तूफ़ान के बाद फिर लगा दिया अर्थात् सरकार समझ नहीं पा रही कि पाकिस्तानियों का क्या किया जाए? एक तरफ़ सोच है कि चीन के साथ उस देश की बढ़ती निकटता को देखते हुए पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने का कुछ प्रयास होना चाहिए पर दूसरी तरफ़ जिस राय को उत्तेजित कर चुके हैं। उसे भी संतुष्ट रखना है। राष्ट्रीय आइकॉन नीरज चोपड़ा को माफ़ी मांगनी पड़ी कि बैंगलुरु में हो रहे एक कार्यक्रम में उन्होंने पाकिस्तानी खिलाड़ी अरशद नदीम को आमंत्रित किया था। यह निमंत्रण, जो उन्होंने रद्द कर दिया, पहलगाम से पहले दिया गया था। पर ऐसे लोग भी थे जो नीरज चोपड़ा की देशभक्ति पर सवाल उठाने लगे थे। उनके परिवार को ट्रोल किया गया। कैसा पागलपन है? एक टीवी बहस में एंकर ज़ोर शोर से वकालत कर रहे थे कि पाकिस्तान का फ़िल्मों और खेलों में बॉयकॉट किया जाना चाहिए। उन्होंने रंग भेद नीति के दौरान दक्षिण अफ्रीका और अब यूक्रेन के कारण रूस और बेलारूस पर ओलम्पिक में लगी पाबंदी की मिसाल भी दी।
लेकिन वह भूलते हैं कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कदम सारी दुनिया ने इकट्ठा उठाया था। रूस और बेलारूस के खिलाफ सारा पश्चिमी ब्लाक इकट्ठा था। हमारे साथ कौन है? पहलगाम को लेकर किसी भी देश ने खुलेआम पाकिस्तान की निन्दा नहीं की। गुड फ्रैंड डानल्ड ट्रम्प ने तो असीम मुनीर को लंच पर इन्वाइट कर लिया। अब भारत सरकार ने यहां हो रहे एशिया कप और जूनियर वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की टीम को खेलने की इजाज़त दे दी है पर इस कदम पर किसी भी टीवी चैनल पर गर्मागर्म बहस नहीं देखी गई, जैसे दिलजीत दोसांझ पर देखी गई थी। यहां सरकार अपने ही विरोधाभास में फंसी है, अगर उनकी हॉकी टीम आ सकती है तो क्रिकेट की टीम क्यों नहीं? पहलगाम पर हमले का ज़बरदस्त जवाब दिया गया और पाकिस्तान को युद्ध विराम के लिए याचना करनी पड़ी। यह हमारी पक्की नीति होनी चाहिए कि अगर पाकिस्तान कोई ऐसी शरारत करेगा तो हम ठोक देंगे। खेलों या फ़िल्मों के बारे भी स्पष्ट नीति होनी चाहिए।
देश में बहुत उत्तेजना है जिसे कम करने की ज़रूरत है। उग्रवाद के टाइगर से उतरना बहुत मुश्किल होता है। जगह-जगह कोई देश भक्ति के, कोई भाषा के, तो कोई धर्म के ठेकेदार उग रहे हैं। मुम्बई में एक दुकानदार को थप्पड़ मारे गए, क्योंकि उत्तर भारत से गए इस व्यक्ति को मराठी नहीं आती। राज ठाकरे ने तो खुलेआम घोषणा की है कि उन की पार्टी उन नागरिकों को थप्पड़ मारेगी जो मराठी में नहीं बोलते। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस का कहना है कि वह कार्यवाही करेंगे पर तीन हिस्सों में बंटी उस सरकार से कोई अपेक्षा नहीं। ज़रूरत तो राज ठाकरे जैसों के खिलाफ कार्यवाही करने की है। अनावश्यक मराठी बनाम हिन्दी का मसला खड़ा किया जा रहा है। ऐसे तत्व वास्तव में देश विरोधी हैं और देश को बांट रहे हैं। पंजाब में सोशल मीडिया में सक्रिय कंचन कुमारी जिसने कमल कौर भाभी का नाम लिया हुआ था, की एक निहंग ने हत्या कर दी। शिकायत थी कि सोशल मीडिया पर अश्लील और अनैतिक चीजें डालने वाली इस महिला ने अपने नाम में ‘कौर’ डाल कर सिख मर्यादा का अपमान किया है। हो सकता है कि शिकायत सही हो, पर हत्या करना ? क़ानून को हमारे लोग बार-बार हाथ में क्यों लेने लगे हैं? सरकारें भी कमजोर पाई जाती हैं। किसी को नाराज़ नहीं करना चाहती।
वोट के चक्कर में क़ानून का पालन करवाने से घबराती हैं। आर्टिस्ट या खिलाड़ी आसान टार्गेट हैं। यह दुख की बात है कि आहत होना और क़ानून हाथ में लेना अब हमारी राजनीति का हिस्सा बन गया है। हवा में नफ़रत घोल दी गई है। हम सोच में पीछे की तरफ़ जा रहे हैं। सरकार खुद उलझी लगती है जो पाकिस्तानी सेलेब्रिटीज़ के सोशल मीडिया अकाउंट के बारे फ्लिप फ्लाप से पता चलता है। हमें समझना चाहिए कि हम कोई मामूली देश नहीं है। प्राचीन सभ्यता है, सबसे तेज़ी से तरक्की कर रही अर्थ व्यवस्था है। पाकिस्तान हमारे सामने कुछ नहीं है। हम उन्हें आसानी से सम्भाल सकते हैं। पर हमें आंतरिक तौर पर मज़बूत होना है। असुरक्षा की भावना छोड़नी चाहिए। हमारा राष्ट्रवाद इतना कमजोर क्यों हो गया कि एक फ़िल्म जो यहां प्रदर्शित नहीं हो रही, को ले कर हम उत्तेजित हो रहे हैं? यह जनून का दौर कब रुकेगा?