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क्या आतंकी हमलों को भूल गया रक्षा मंत्रालय

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12:19 AM Jun 10, 2018 IST | Desk Team

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रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्मी चीफ और डिफैंस सैक्रेट्री के साथ पिछले दिनों हुई बैठक के बाद ऐलान कर दिया कि देश के सभी 62 कैंटोनमैंट एरिया की बंद सड़कों काे आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा आैर अगले ही दिन निर्देेश भी जारी कर दिए गए कि कैंटोनमैंट एरिया के सभी बैरियर, चैकपोस्ट और रोड ब्लाक्स को हटा लिया जाए। यह भी कहा गया कि किसी वाहन को रोका नहीं जाएगा और न ही तलाशी होगी। अगर प्रथम दृष्टि से देखा जाए तो आम जनता के हित में यह फैसला सही प्रतीत होता है लेकिन इस फैसले का दूसरा पहलू यह है कि इस आदेश से हजारों सैनिक परिवारों की जिन्दगियां खतरे में पड़ती दिखाई दे रही हैं। क्या रक्षा मंत्रालय ने उड़ी, पठानकोट, कालुचक, सुजवाल, नगरोटा में सैन्य शिविरों पर हुए आतंकवादी हमलों को नजरंदाज कर दिया है? हम दिन-रात देश के भीतर आैर सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत बनाने की घोषणाएं करते हैं लेकिन इस फैसले से छावनी क्षेत्रों को भी उच्च जोखिम में डाल दिया है। इस आदेश से पहले बिना चैकिंग और तलाशी के किसी को भी आने-जाने की इजाजत नहीं थी।

कैंटोनमैंट बोर्ड की सड़कें सभी के लिए खोलने को लेकर विरोध अब तीव्र होता जा रहा है। सैन्य अधिकारियों के परिवार वाले लगातार सुरक्षा का हवाला देकर इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। सेना की तरफ से बयान जारी कर लोकल मिलिट्री अथारिटी को फ्री हैंड देने की बात कही गई है, लेकिन रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी नए आदेश में साफ है कि बिना मंत्रालय की सहमति के लोकल मिलिट्री अथारिटी सड़कों को स्थाई रूप से बंद नहीं कर सकती। वह सिर्फ आपात स्थिति में दो हफ्तों के लिए सड़कों को बंद कर सकती है। सैन्य कर्मियों और उनके परिवारों को कुछ आशंकाएं हैं आैर उनकी आशंकाएं निर्मूल नहीं हैं। आर्मी अफसरों की पत्नियों की संस्था आर्मी वैलफेयर एसोसियेशन ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से इस फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है। कैंटोनमैंट बोर्ड एरिया प्रतिबंधित एरिया अधिनियम के हिसाब से प्रतिबंधित एरिया है और उसे इस तरह नहीं खोला जा सकता। कैंट बोर्ड मिलिट्री पुलिस के अंतर्गत आता है इसलिए मिलिट्री पुलिस कैसे आम लोगों पर कानून लागू करेगी। इससे सिविल पुलिस और मिलिट्री पुलिस के बीच विवाद का खतरा भी बढ़ जाएगा।

सैन्य अधिकारियों के परिवार देशभर में इस फैसले के ​खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं आैर उन्होंने रक्षा मंत्रालय को सुझाव भी भेजे हैं। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि रक्षा मंत्रालय का यह निर्णय कैंटोनमैंट के इलाकों में सड़कों को आम बनाने से सिर्फ जमीन माफिया और डायरैक्टर जनरल आफ डिफैंस एस्टेट के कुछ लोगों को फायदा पहुंचाएगा। देशभर में सुरक्षा बलों की जमीनों पर दूसरे विभागों के लोगों ने सरकार की अनुमति के बिना कब्जा जमाया हुआ है। 2014 में भी कैग ने सेना की जमीन के गलत इस्तेमाल की शिकायत की थी। 2014 में रक्षा मंत्रालय संभाल रहे अरुण जेतली ने भी एक प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया था कि सेना की 11,455 एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है।

उत्तर प्रदेश में यह सबसे ज्यादा है, जहां सेना की 3,142 एकड़ जमीन पर कब्जा किया गया। महाराष्ट्र और हरियाणा में क्रमशः 1,512 और 1,002 एकड़ जमीन पर कब्जा किया हुआ है। कुछ संगठनों ने इस मामले को अदालत में भी उठाया था। कैंटोनमैंट की सड़कें आम लोगों के लिए खोल देने से अवैध कब्जे नहीं होंगे, इस बात की क्या गारंटी है। फायदा छावनी वाले क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रतिष्ठान चलाने वालों को ही होगा। इस फैसले को लेकर विरोध और राजनीति तेज होती जा रही है। सोशल मीडिया के जरिए सेवानिवृत्त फौजी अधिकारियों ने भी सुरक्षा का हवाला देकर सभी के लिए कैंटोनमैंट एरिया की सड़कें खोलने का विरोध जताया है। छावनी क्षेत्र आतंकवादी संगठनों के निशाने पर है। उड़ी से लेकर नगरोटा तक इसके सबूत हैं। सिपाही से लेकर जनरल तक सिक्योरिटी चैक से गुजरते हैं तो आम नागरिक क्यों नहीं। छावनी क्षेत्रों की सुरक्षा अहम है। रक्षा विशेषज्ञ भी इस फैसले को सही नहीं ठहरा रहे। रक्षा मंत्रालय को याद तो होगा ला​लकिले पर आतंकी हमला और यह भी याद होगा कि आतंकी सिर्फ सैनिकों की बस्तियों और उनके ठिकानों को ही निशाना बनाते हैं। ऐसे में छावनी क्षेत्रों को जनता के लिए खोलना बेहद खतरनाक ही होगा।

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