Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

फिर खौफ में है देश

04:49 AM Nov 13, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

पिछले 14 वर्षों में भारत के प्रमुख शहरों में शांति का माहौल बना हुआ था। सितम्बर 2011 में दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए बम धमाके के बाद से दिल्ली आतंकवाद की किसी भी बड़ी घटना से दूर रही। कभी दिल्ली में बम धमाकों का खौफ बना रहता था। हर आदमी अपने आप को असुरक्षित महसूस करता था। लाल किला मैट्रो स्टेशन के पास सोमवार की शाम कार में हुए धमाके ने एक बार फिर दिल्ली में खौफ पैदा कर दिया है। लोगों में फिर असुरक्षा का माहौल है। सार्वजनिक पार्किंग स्थलों पर भी लोग अपनी गाड़ियां पार्क करने से डर रहे हैं। सार्वजनिक स्थलों, बस अड्डे, रेलवे स्टेशनों पर लोग एक-दूसरे को शक की नजरों से देखने लगे हैं। दिल्लीवासियों को आशंका है कि कहीं खौफ का बीता दर्द फिर से न आ जाए और यही भय उनके शरीर में सिहरन पैदा कर देती है। हर धमाका शहर के शोरगुल को न सिर्फ बम की तेज आवाज से खामोश कर देता है, बल्कि उन घरों को भी बिखेर देता है जिन्होंेने अपनों को खो दिया है। सरोजनी नगर, कनाट प्लेस, पहाड़गंज और दिल्ली हाईकोर्ट में बीत दो दशकों में हर धमाके ने दिल्ली के दिल पर कई निशान छोड़े हैं।
लाल किला धमाके ने एक बार ​फिर बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए। यह धमाका एक गम्भीर चेतावनी है कि आतंकवाद कभी पूरी तरह से खत्म नहीं होता। पठानकोट, पुलवामा और पहलगाम जैसी आतंकवादी घटनाओं ने हमें बार-बार याद दिलाया है कि भारत के खिलाफ छद्म युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है। भारत के खिलाफ षड्यंत्र लगातार जारी है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लोग यह मानते हैं कि शिक्षा ही वह हथियार बन सकती है जिसकी मदद से दुनिया में बढ़ते आतंकवाद का सफाया किया जा सकता है और विकास तथा शांति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है लेकिन दूसरी तरफ आतंकवादी हिंसा की ऐसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं जिनमें उच्च शिक्षा प्राप्त युवा शामिल हैं। अमेरिका पर 9/11 हमले में शामिल दो-​ितहाई आतंकी शिक्षित थे। ग्लासगो का भारतीय मूल का आरोपी कपील अहमद भी एक इंजीनियर ही था। ब्रिटेन में 9 वर्ष पहले ब्रिटिश डॉक्टरों की हत्या की साजिश रचने वाले माॅड्यूल में शामिल ज्यादातर लोग डॉक्टर थे। कभी यह कहा जाता था कि हथियार उठाकर आतंकवादी बनने वाले युवा गरीब परिवारों से होते हैं, जिन्हें जेहाद के नाम पर धर्मांध बना दिया जाता है। इस संदर्भ में बार-बार मुम्बई के आतंकवादी हमले में ज​ीवित पकड़े गए अजमल कसाब और अन्य का नाम लिया जाता है जिनके परिवार आर्थिक रूप से बहुत पिछड़े हुए थे। अजमल कसाब को बाद में फांसी की सजा दी गई थी। लालकिला धमाके का संबंध उस मॉड्यूल से निकला जिसमें ज्यादातर डॉक्टर ही जुड़े हुए थे। डॉक्टर उमर मोहम्मद ने विस्फोटकों से लैस कार के साथ खुद को उड़ा लिया। पुलवामा का डॉक्टर उमर उन तीन डॉक्टरों का साथी निकला जिनके पास से करीब 2900 किलो विस्फोटक और हथियार मिले हैं। इनमें एक का नाम डाॅक्टर मुजम्मिल है और दूसरे का डाॅक्टर आदिल। दोनों कश्मीर के हैं। इनकी तीसरी साथी डाॅक्टर शाहीन है। शाहीन लखनऊ की है। इनके और साथियों की भी तलाश की जा रही है। हैरानी नहीं कि उनके संपर्क में और भी ऐसे डाॅक्टर निकलें जो आतंकी हैं। इन डाॅक्टरों के अतिरिक्त एक अन्य डाॅक्टर मोहिउद्दीन गुजरात पुलिस की गिरफ्त में है। उसने चीन से मेडिकल की पढ़ाई की है। उसे गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने उसके दो साथियों के साथ हथियारों संग गिरफ्तार किया। वह अरंडी के बीज से बेहद घातक जहर राइसिन बनाने की तैयारी कर रहा था ताकि एक साथ तमाम लोगों को मारा जा सके। यह पहली बार नहीं है जब किसी आतंकी साजिश और घटना में किसी डाॅक्टर का नाम सामने आया हो। इसके पहले भी कई डाॅक्टर आतंक की राह पर चलते पकड़े जा चुके हैं। हाल के समय में इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम पुणे के डाॅक्टर अदनान अली सरकार का था। उसे एनआईए ने 2023 में गिरफ्तार किया था। वह शहर का प्रतिष्ठित डाॅक्टर था लेकिन खूंखार आतंकी समूह आईएस के लिए काम कर रहा था। बीते वर्षों में डाॅक्टरों के अलावा कई ऐसे आतंकी गिरफ्तार किए गए हैं जो इंजीनियर थे।
मैडिकल या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले युवा आतंकवादी बन रहे हैं। उनके संबंध में ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि वे प्रताड़ित थे या गरीबी से जूझ रहे थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने मौत का रास्ता चुना। धर्म कोई भी हो सभी शांति का संदेश देते हैं लेकिन इस्लाम अब पूरी तरह से कट्टर पंथ की चपेट में है। दुनियाभर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई इस्लाम धर्म से नहीं, बल्कि उस कट्टरपंथी विचारधारा से है जो खुद को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों को काफिर मानती है। जो निर्दोषों की हत्याओं, महिलाओं से क्रूरता और बच्चों पर जुल्म को जायज मानती है। इस्लाम ने हिंसक आक्रामक रूप से एक अलग दुनिया बना रखी है। कट्टरपंथी इस्लाम के प्रचार के लिए अतिवादी संगठन बने हुए हैं। यह संगठन भर्ती के लिए डॉक्टरों, इंजीनियरों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि इन्हें शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी दक्षता होती है। 16 से 34 वर्ष की उम्र के मुस्लिम युवा नरमपंथ के ​िलहाज से काफी संवेदनशील होते हैं। इस्लाम खतरे में है का ढिंढोरा पीट इनके दिमाग में जहर भरा जाता है। जहर भरने के ​लिए संगठनों के पास सोशल मीडिया, डार्कवेब, एआई सब साधन मौजूद हैं। जिहादी गुट मजहबी मान्यताओं से लैस है। फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी की चर्चा चारों ओर है, वहां से खतरनाक जिहादी विचारधारा फैलाई जा रही है, अब किसी से छिपा नहीं है। भारतीय युवाओं आैर महिलाओं को जिहादी बनाने के लिए सीमा पार से आनलाइन अभियान चलाए जा रहे हैं। पाकिस्तान और बैंगलुरु जैश आैर लश्कर जैसे संगठनों के ​िलए जहर फैलाने का ​ठिकाना बन चुके हैं। आतंकवाद से मुकाबला किया जा सकता है लेकिन कट्टरपंथी विचारधारा का मुकाबला अकेले पुलिस आैर ​खुफिया एजैंसियां नहीं कर सकती हैं। अपने बच्चों को बचाने के लिए मुस्लिम समाज को आगे आना होगा। अन्यथा परिणाम बहुत भयंकर होंगे।

Advertisement
Advertisement
Next Article