कर्म करो फल की चिंता मत करो...
गीता के इस उपदेश को सत्य होते एक के बाद एक देख रहे हैं। आज आम और खास कार्यकर्ता की यही भावना मजबूती से उभर रही है कि कर्म करो फल की चिंता न करो। आज भाजपा सरकार ने साबित कर दिया है कि एक के बाद एक दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता, राजस्थान के सीएम, हरियाणा के सीएम, मध्य प्रदेश के सीएम और अब उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन।
जीवन का कोई भी क्षेत्र हो जो जमीन पर रहकर काम करता है और काम को कभी भी छोटा नहीं मानता बल्कि पूरी तपस्या के साथ लगा रहता है वह सीपी राधाकृष्णन के रूप में देश का उपराष्ट्रपति बनता है। वह भाजपा के और विशेष रूप से आरएसएस के एक कर्मठ कार्यकर्ता रहे हैं और उन्होंने अपने राजनीतिक प्लेटफार्म को केवल सेवा मंच के रूप में ही माना और आज भी एकदम जमीनी व्यक्ति की तरह हैं जिनमें राष्ट्र प्रथम का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है।
उनकी जीत इस बात का संकेत देती है कि वह हमेशा राजनीति से ऊपर उठकर काम करते हैं। सच बात तो यह है कि उनका कार्यक्षेत्र दक्षिण से उत्तर तक रहा। उन्होंने आरएसएस से भाजपा में आकर उस विचारधारा को आगे प्रसारित किया जिसकी भाजपा को राजनीतिक रूप से सबसे ज्यादा जरूरत थी। यह बात अलग है कि उनकी पृष्ठभूमि काम के मामले में दक्षिण की ही रही। जीवन में संघर्ष देखिए कि जब वह 2004 में उस दक्षिण राज्य अर्थात तमिलनाडू के अध्यक्ष बने तो वहां भाजपा के लिए कुछ खास नहीं था लेकिन वह डटे रहे और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में हार के बावजूद उसी दक्षिण में भाजपा को इतना मजबूत कर गए कि भाजपा को लगता है कि जैसे दक्षिण में आदर्श मिल गया हो। यह बात अलग है कि अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान वह 1998 और 1999 में कोयंबटूर से दो बार सांसद चुने गए।
वह मूल रूप से सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। उन्हें लोग कोयंबटूर का वाजपेयी भी कहते हैं। उन्होंने सभी राजनैतिक दलों के साथ अपने रिश्ते सौहार्दपूर्ण बनाए। झारखंड और महाराष्ट्र के राज्यपाल भी वह रहे लेकिन एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने के बाद भी उनके जीवन में धार्मिक और सामाजिक मूल्यों का महत्व बना रहा। जो उनकी स्वच्छ छवि को और भी मजबूत करते हैं। राजनीति में आज बहुत से लोग हैं लेकिन रणनीति को समझना और उसे मजबूत करने के लिए काम करना यह काम राधाकृष्णन से बढ़कर कोई नहीं कर सकता। हिंदुत्व और संस्कारवादी विचारों को पहचान दिलाने के लिए उन्होंने हिंदू समाज के हितों को हमेशा तवज्जो दी वह चाहे तमिलनाडू हो या केरल या महाराष्ट्र या फिर झारखंड। वह मानते हैं कि देश पहले है बाकि बाद में है। आज जब वह उपराष्ट्रपति बन चुके हैं तो कई लोग हैरान होकर उनके बारे में जब पढ़ते हैं तो एक-दूसरे से सवाल करते हुए कहते हैं कि हमें तो पता ही नहीं था कि वह भाजपा के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वह केंद्रीय वित्त मंत्रालय में रहते हुए आर्थिक नीतियों पर भी काम करते रहे। जिस केरल में कोमिनिस्टों और कांग्रेस का दबदबा रहा वहां राधाकृष्णन पूरी तरह से डटे रहे। देश को ऐसे स्वच्छ राजनीतिज्ञों की जरूरत है लेकिन वह सेवा के मामले में राजनीति से भी ऊपर हैं। पद की और अपनी पहुंच बढ़ाने की उनको कभी लालसा नहीं रही। वह हमेशा समाज के उत्थान, संस्कारों और धार्मिक विचारों के साथ-साथ स्वच्छ राजनीति को आगे ले जाने की बात करते रहे।
उनसे एक यही प्रेरणा ली जा सकती है कि आज की तारीख में हिंदू समाज को एकजुट किया जाये और देश की सामाजिक संरचना को मजबूत किया जाये। वह ऐसे ही प्रोग्रामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। उन्होंने केरल में और विशेष रूप से तमिलनाडू में सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे उठाए। जिस तरीके से उन्होंने यह मुद्दे उठाए यह सब भाजपा के लिए पदचिन्ह बन रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि वह धैर्य के साथ आगे चलते हैं और लोगों को अपने साथ जोड़कर चलते हैं। इसी के दम पर आज हिंदू राष्ट्र और उसका परचम दुनिया में अपनी संस्कृति के दम पर लहराए तो इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है। यद्यपि अंतर्राष्ट्ररीय स्तर पर वह संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर चुके हैं तब वह टॉक एक्सचेंज घोटाले की जांच के लिए बनी विशेष समिति के सदस्य भी थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि देश को स्वच्छ छवि के ऐसे नेता की प्राप्ति हुई है जो भारत का उपराष्ट्रपति है और सादगी तथा उच्च आदर्शों के साथ देश को आगे बढ़ाने में राधाकृष्णन यकीन रखते हैं। हम उनकाे इस प्रतिष्ठित पद पर विराजमान होने के लिए बधाई देते हैं।