डोनाल्ड ट्रम्प की दादागिरी !
कैसी विडम्बना है कि जिस अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को यह मालूम नहीं कि उसका देश रूस से क्या खरीदता- बेचता है वह भारत पर रूस से कच्चा पैट्रोलियम तेल खरीदने की वजह से तट कर या आयात शुल्क की दर में 25 प्रतिशत की वृद्धि करके इसे 50 प्रतिशत कर रहा है। ट्रम्प की इस मनमानी दादागिरी को भारत कभी सहन नहीं कर सकता है क्योंकि यह एक संप्रभु व सार्वभौमिक स्वतन्त्र देश है जिसे अपने फैसले अपने राष्ट्रहित में करने का पूरा अधिकार है। डोनाल्ड ट्रम्प बहुत बड़ी गफलत में हैं कि भारत उनके एेसे फैसलों से सहम या डर जायेगा। भारत अमेरिका से तब भी नहीं डरा या घबराया था जब 1971 में बंगलादेश युद्ध के दौरान उसने अपना सातवां एटमी जंगी जहाजी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में लाकर तैनात कर दिया था। उस समय तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को साफ कर दिया था कि अमेरिका पाकिस्तान की मदद करके भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। वह दौर तब का था जब वर्ष 1971 में ही भारत-सोवित संघ (रूस) के बीच 20 वर्षीय सैनिक सन्धि हुई थी। रूस आज भी भारत का हर आपदा में परखा हुआ सच्चा मित्र है। अतः वर्तमान समय में भारत के रक्षा सलाहकार श्री अजित डोभाल की रूस यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है और इस महीने के अन्त में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा की महत्ता बहुत विशिष्ट होने जा रही है।
एक जमाना वह भी था कि जब 80 के दशक में अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन के शासन के दौरान ‘भारत-रूस-चीन’ त्रिकोण के सुरक्षा कवच की बातें हुआ करती थीं। मगर पिछले 25 वर्षों के दौरान भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में गुणात्मक परिवर्तन आया है और ये मिठास भरे हुए हैं। खासकर 2008 में दोनों देशों के बीच हुए परमाणु करार के बाद परन्तु श्री ट्रम्प इनमें कड़वाहट घोलने से बाज नहीं आ रहे हैं। वह विश्व व्यापार संगठन की निर्देशावली के विरुद्ध जाकर आपसी व्यापारिक व वाणिज्यिक सन्धि अपनी शर्तों पर करना चाहते हैं और भारत को बार-बार यह धमकी देते रहते हैं कि विगत मई महीने की दस तारीख को भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध को उन्होंने रुकवाया। उनका यह कथन अब भारत में ‘अनर्गल प्रलाप’ की तरह देखा जाने लगा है। भारत की स्वतन्त्रता के बाद से ही यह नीति रही है कि वह दूसरे देश के साथ अपने सम्बन्धों में किसी तीसरे देश को बीच में नहीं डालता है। अतः भारत-रूस सम्बन्धों को लेकर जिस तरह ट्रम्प भारत पर शुल्क बढ़ाने का फैसला सजा के तौर पर कर रहे हैं वह हिन्दुस्तान की अजमत पर हमला है। जिसके विरुद्ध पूरा देश इकट्ठा खड़ा हुआ है। इस सन्दर्भ में विपक्षी कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी का यह बयान बहुत महत्वपूर्ण है कि अमेरिका भारत को ‘ब्लैकमेल’ कर रहा है।
जाहिर है कि अमेरिका के मुद्दे पर भारत का सत्ता पक्ष व विपक्ष एकमत है। भारत के विदेश विभाग ने शुल्क दर दुगनी किये जाने के विरोध में बहुत शालीनता बरतने का कार्य किया है और कहा है कि श्री ट्रम्प का यह फैसला अन्यायपूर्ण, गैर वाजिब व अनुचित है। यह कूटनीति की भाषा है जिसमें भारत ने डोनाल्ड ट्रम्प को समझाने की कोशिश की है कि वह किसी दूसरे देश की संप्रभुता का सम्मान करना सीखें। हाल ही में भारत का व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल अमेरिका की यात्रा करके लौटा है जिसमें इसने साफ कर दिया था कि भारत अपने कृषि क्षेत्र के हितों को पूरी तरह संरक्षित रखेगा और अमेरिकी कृषि जन्य उत्पादों के अमेरिका से आयात को हरी झंडी नहीं देगा। इसके जवाब में अमेरिका का व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी शीघ्र ही भारत की यात्रा करेगा। मगर इससे पहले ही विगत छह अगस्त को ट्रम्प ने घोषणा कर दी कि वह भारत से आयात होने वाले सामान पर 50 प्रतिशत की शुल्क दर लागू करेंगे। हालांकि यह दर 21 दिन बाद लागू होगी। मगर भारत अपनी शालीन मगर स्पष्ट प्रतिक्रिया में कह रहा है कि वह अपने 140 करोड़ नागरिकों की ऊर्जा आपूर्ति के लिए खुले बाजार से कच्चा तेल विभिन्न देशों से खरीदता है। इस सन्दर्भ में साफ हो जाता है कि रूस से भी कच्चा तेल बाजार की शक्तियों के तहत ही खरीदा जाता है। जाहिर है कि कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए भारत केवल रूस पर ही आश्रित नहीं है तो ट्रम्प यह क्यों चाहते हैं कि भारत रूस से तेल न खरीदे? जाहिर है कि इसके पीछे उनकी नीयत साफ नहीं है और वह भारत से बदला लेने की तर्ज पर फैसले कर रहे हैं।
भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्दी ही तीसरी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। वह दिन हवा हुए जब 1947 में इसका विश्व व्यापार में हिस्सा केवल एक प्रतिशत हुआ करता था। अब िवश्व के सकल उत्पाद में भारत का िहस्सा 18 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका 12 प्रतिशत के करीब है। भारत की अर्थव्यवस्था 6.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से आगे बढ़ रही है जबकि विश्व के अन्य देशों की यह दर तीन प्रतिशत के करीब है। अतः ट्रम्प डरा किसे रहे हैं? क्या भारत उनकी वजह से उस रूस से अपने सम्बन्ध खराब कर ले जिसने हर संकट के समय भारत का पूरा साथ दिया है। ट्रम्प को यह समझना चाहिए कि भारत ने यह तरक्की अपने बूते पर पिछले 77 सालों में की है और आज वह एक वैध परमाणु शक्ति है। अमेरिका ने तो पचास के दशक में उसके साथ स्टील के कारखाने स्थापित तक करने से मना कर दिया था और आज अमेरिका खुद भारत से स्टील उत्पादों का आयात करता है। इस सन्दर्भ में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू व अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति आइजनहावर के बीच हुए पत्राचार को देखा जा सकता है। आज श्री मोदी के नेतृत्व में पूरा भारत ट्रम्प की इस नाइंसाफी का जवाब देने के लिए एकजुट खड़ा हुआ है।