नया भारत गढ़ने वाले महापुरुष थे डा. अंबेडकर
भारतीय संविधान के निर्माता और समाज सुधारक डा. अंबेडकर…
महाराष्ट्र के महू में 14 अप्रैल 1891 को एक गरीब दलित परिवार में जन्मे डा. भीमराव अंबेडकर एक ऐसी महान शख्सियत थे, जिन्होंने न केवल समाज के दलित और शोषित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया बल्कि समूचे भारतीय समाज को समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के मार्ग पर चलने का भी संदेश दिया। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब भारतीय समाज में जाति-व्यवस्था के कारण दलितों को घोर अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता था लेकिन उनके पिता ने उस दौर में भी शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपने बच्चों को शिक्षित करने का हरसंभव प्रयास किया। डा. अंबेडकर की प्रारंभिक शिक्षा सतारा में हुई थी, जिसके बाद उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री प्राप्त की। तत्पश्चात उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उच्च शिक्षा ग्रहण की, जहां उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल सामाजिक मुद्दों की गहराई से समझने की क्षमता प्रदान की बल्कि समाज सुधार के लिए आवश्यक उपकरण भी प्रदान किए।
डा. अंबेडकर भारतीय समाज के ऐसे शिल्पकार थे जिन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक सुधार और समाज के दलित और शोषित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। अछूतों के अधिकारों के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया और उन्हें समान अधिकार दिलाने के लिए कई आंदोलन भी चलाए, जिनमें महाड़ सत्याग्रह, मनुस्मृति दहन और पूना पैक्ट इत्यादि प्रमुख थे। 1927 में चलाया गया ‘महाड़ सत्याग्रह’ आंदोलन दलितों को सार्वजनिक जल स्रोतों का उपयोग करने के अधिकार के लिए था, जिसके जरिये अंबेडकर ने स्पष्ट किया था कि जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर किसी एक वर्ग का अधिकार नहीं हो सकता।
1927 में ही उन्होंने मनुस्मृति को जलाकर जातिवाद और भेदभाव के प्रतीक के रूप में इसका विरोध किया था। अंबेडकर का वह कदम जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक साहसिक कदम था। महात्मा गांधी ने जब दलितों को अलग निर्वाचक मंडल देने के खिलाफ आमरण अनशन शुरू किया था तब 1932 में अंबेडकर और गांधी जी के बीच ‘पूना पैक्ट’ समझौता हुआ था, जिसने दलितों को आरक्षित सीटों का अधिकार दिलाया।
डा. अंबेडकर ने शिक्षा को समाज सुधार का सबसे बड़ा हथियार माना और उनका प्रसिद्ध नारा था ‘शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो’। उनका मानना था कि शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति अपनी स्थिति में सुधार कर सकता है और समाज में अपना स्थान बना सकता है। भारतीय संविधान के निर्माता डा. अंबेडकर का कहना था कि समाज का विकास तभी संभव है जब हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर मिले। उनका सबसे बड़ा योगदान भारतीय संविधान का निर्माण है। भारतीय संविधान को उन्होंने इस प्रकार बनाया कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्रदान करे, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग अथवा वर्ग का हो। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए कुछ प्रमुख सिद्धांतों में समानता का अधिकार, अल्पसंख्यकों के अधिकार, आरक्षण की नीति शामिल हैं।
उन्होंने संविधान में हर नागरिक को समानता का अधिकार सुनिश्चित किया। यह अधिकार जाति, धर्म, लिंग अथवा क्षेत्र के आधार पर भेदभाव को समाप्त करता है। अल्पसंख्यक समुदायों को उनके सांस्कृतिक, शैक्षणिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी उन्होंने संविधान में विशेष प्रावधान किए तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए शिक्षा, नौकरियों और राजनीति में आरक्षण की व्यवस्था की।
डा. अंबेडकर ने भारतीय समाज से जाति व्यवस्था को समाप्त करने के लिए हरसंभव प्रयास किया। उनका मानना था कि जाति व्यवस्था न केवल सामाजिक प्रगति में बाधक है बल्कि यह मानवीय मूल्यों के भी खिलाफ है। वास्तव में डा. भीमराव अंबेडकर का संपूर्ण जीवन संघर्ष, साहस और सेवा का प्रतीक रहा। अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर गहराई से अपने विचार प्रस्तुत किए। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में डा. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया। दरअसल उनका मानना था कि बौद्ध धर्म के सिद्धांत समानता और करुणा पर आधारित हैं जो जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं। नागपुर में हजारों अनुयायियों के साथ उन्होंने 14 अक्तूबर 1956 को बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। 6 दिसंबर 1956 को भारत ने अपने इस महान सपूत को हमेशा के लिए खो दिया लेकिन उनकी विरासत हमें आज भी प्रेरित करती है कि हम अपने देश को एक बेहतर और समतामूलक समाज बनाने की दिशा में कार्य करें। 1990 में डा. अंबेडकर को मरणोपरांत भारत के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।