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डॉ. मनमोहन सिंह, श्याम बेनेगल व चौटाला

इन तीनों में कोई समानता नहीं। मगर तीनों का जाना चर्चा में रहा।

11:30 AM Dec 29, 2024 IST | Dr. Chander Trikha

इन तीनों में कोई समानता नहीं। मगर तीनों का जाना चर्चा में रहा।

इन तीनों में कोई समानता नहीं। मगर तीनों का जाना चर्चा में रहा। वर्ष 2024 जाते-जाते जहां एक ओर ढेरों उपलब्धियों से देश की झोली भर रहा है वहीं दूसरी ओर कुछ अविस्मरणीय शख्सियतों को भी हमारे मध्य से ले गया है। डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी जि़ंदगी में देश के लिए आर्थिक-सुधारों की एक ऐसी खिड़की खोली थी जो आगे आने वाली सरकारों के लिए भी नई संभावनाओं के रास्ते प्रशस्त कर गई है। बेदाग शख्सियतों की हमारे राजनीतिक परिवेश में वैसे भी कमी खलती रही है। डॉ. मनमोहन सिंह का जाना एक और स्थान खाली छोड़ गया है। अपनी निजी पुरानी मारुति-800 कार की जांच के लिए कार को स्वयं चलाकर सम्बद्ध सरकारी दफ्तर तक ले जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह अपनी विनम्रता एवं शालीन व सादी जि़ंदगी के लिए भी जाने जाते थे और अपनी बजट प्रस्तुतियों में उर्दू शायरी का सहारा लेने वाले डॉ. मनमोहन सिंह अक्सर संसद में अपने कुछ हिन्दी भाषण भी उर्दू में ही लिखकर ले जाते थे।

उनकी आर्थिक-बौद्धिकता को अक्सर पूरे विश्व में याद किया जाता रहा। वह पंजाब विश्वविद्यालय में पढ़ते भी रहे, पढ़ाते भी रहे, रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे, देश के वित्त मंत्री भी रहे और प्रधानमंत्री भी। दूसरी शख्सियत, जिसे भुलाया नहीं जा सकता, वह थे श्याम बेनेगल। उन्हें प्रख्यात कलाकार एवं फिल्म निर्माता सत्यजीत रे का असली वारिस माना जाता रहा है। श्याम बेनेगल ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत ‘अंकुर’ से की। इस फिल्म में अनन्त नाग और शबाना आजमी लीड रोल में थे। इस फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया। इसके बाद ‘निशांत’ रिलीज हुई और इसके निर्देशन ने श्याम बेनेगल के करियर ग्राफ को एक झटके में उठा दिया। ये फिल्म 1975 की सबसे च​र्चित और समालोचकों की सराहना बटोरने वाली फिल्म रही। साल 1976 के कान फिल्म समारोह में इस फिल्म ने नामांकन भी हासिल किया। गिरीश कर्नार्ड, शबाना आज़मी, अनंत नाग, अमरीश पुरी, स्मिता पाटिल और नसीरूद्दीन शाह जैसे दिग्गजों ने इस फिल्म में चार चांद लगा दिए थे।

श्याम बेनेगल की बेहतरीन फिल्मों में ‘मंथन’, भूमिका, मार्केट प्लेस, जुनून, जुबैदा, द मेकिंग ऑफ महात्मा और ‘सरदारी बेगम’ जैसी कई फिल्में हैं। उन्हें यथार्थवादी और मुद्दा-आधारित समानांतर फिल्म निर्माण के आंदोलन का संस्थापक माना जाता है, इसी को समानांतर या आर्ट सिनेमा न्यू इंडियन सिनेमा, न्यू वेव इंडियन सिनेमा या न्यू इंडियन सिनेमा के नाम से भी जाना जाता है। फिल्मों में कदम रखने से पहले श्याम बेनेगल ने कई अनूठे काम किए हैं। वह विज्ञापन फिल्में भी बनाते रहे हैं। जब वो 12 वर्ष के थे तब उन्होंने अपने पिता श्रीधर बी. बेनेगल के लिए कैमरे पर अपनी पहली फिल्म बनाई थी। उन्होंने पहले अर्थशास्त्र में पढ़ाई की, उसके बाद उन्होंने फोटोग्राफी शुरू की थी। उन्हें फोटोग्राफी का विशेष रूप से बहुत शौक था।इसी क्रम में एक और राजनीतिज्ञ का जाना भी चर्चा का विषय बना। और वह थे पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला। श्री चौटाला के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए, मगर दो-तीन बातों के लिए वह सदा याद रखे जाएंगे।

कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद उन्होंने अपने जेल-काल में 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं पास कीं और उन पर फिल्म भी बनी है, ‘दसवीं पास’ जिसमें मुख्य भूमिका अभिषेक बच्चन ने निभाई थी। वह इस बात के लिए सदैव याद रखे जाएंगे कि उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रदेश की अकादमियों द्वारा पुरस्कृत सैकड़ों उर्दू, हिन्दी, संस्कृत व पंजाबी लेखकों को आजन्म नि:शुल्क बस-यात्रा की सुविधा प्रदान की थी। ऐसा किसी भी अन्य प्रदेश में नहीं हो पाया। अपने जीवनकाल में शारीरिक कष्टों के बावजूद पाकिस्तान सहित विश्व के 129 देशों की यात्रा का एक अनूठा कीर्तिमान है। इसके अलावा आपातकाल में 19 माह की जेल, संत सूरदास व बाबू बालमुकुन्द गुप्त सरीखे साहित्यकारों के स्मारक बनवाना आदि उनके 89 वर्षीय जीवन की विशिष्ट उपलब्धियां रहीं।

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