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ड्रैगन को लगी मिर्ची

उत्तराखंड के औली में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चल रहे भारत-अमेरिका के सैन्य युद्धाभ्यास पर चीन यानी ड्रैगन को काफी मिर्ची लगी और उसने अनर्गल प्रचार करना शुुरू किया है कि वह सीमा शांति के लिए हुए द्विपक्षीय समझौतों की भावना का उल्लंघन है।

01:38 AM Dec 02, 2022 IST | Aditya Chopra

उत्तराखंड के औली में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चल रहे भारत-अमेरिका के सैन्य युद्धाभ्यास पर चीन यानी ड्रैगन को काफी मिर्ची लगी और उसने अनर्गल प्रचार करना शुुरू किया है कि वह सीमा शांति के लिए हुए द्विपक्षीय समझौतों की भावना का उल्लंघन है।

ड्रैगन को लगी मिर्ची
उत्तराखंड के औली में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चल  रहे भारत-अमेरिका के सैन्य युद्धाभ्यास पर चीन यानी ड्रैगन को काफी मिर्ची लगी और  उसने अनर्गल प्रचार करना शुुरू किया है कि वह सीमा शांति के लिए हुए द्विपक्षीय समझौतों की भावना का उल्लंघन है। भारत-अमेरिका युद्धाभ्यास कोई नया नहीं है, ऐसे युद्धाभ्यास 2004 से हर साल आयोजित किए जा रहे हैं। इसका उद्देश्य भारत प्रशांत क्षेत्र में पारम्परिक जटिल और भविष्य की आक​स्मिक दशा के लिए भागीदारी क्षमता बढ़ाने के लिए  भारतीय और अमेरिकी सेनाओं की अन्तर क्षमता में सुधार करना है। भारत ने चीन की आपत्ति का मुंहतोड़ जवाब दिया है। भारत ने कहा है कि चीन को पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के संदर्भ  में हुए द्विपक्षीय समझौतों पर टिके रहने की जरूरत है। भारत-अमेरिका सैन्य अभ्यास पूरी तरह से अलग है और चीन इसे अलग रंग देने की कोशिश कर रहा है। दरअसल भारत-अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों से चीन घबरा उठा है। चीन को अब 25 साल पुराना समझौता याद आया है। चीन  1993 और 1996 के समझौतों का संदर्भ दे रहा है, जबकि उसने कितनी बार सीमा समझौतों का खुलेआम उल्लंघन किया है। भारत-अमेरिका सैन्य युद्धाभ्यास को निशाना बनाते हुए ड्रैगन ने अमेरिका को भी चेतावनी दे दी है कि वह भारत-चीन संबंधों में दखलंदाजी न करें।
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पूर्वी लद्दाख सैक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई इलाकों में भारत और चीन की सेनाओं के बीच काफी समय से तनाव है। यह तनाव 2020 में गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हिंसक झड़प के बाद से ही कायम है। तनाव कम करने के लिए दोनों देशों में वार्ता के कई दौर हो चुके हैं। कुछ इलाकों से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटी हैं लेकिन चीन के अडि़यल रवैये के चलते अभी भी कुछ इलाकों में तनाव बरकरार है। कड़ाके की स​र्दी में भी दोनों ओर से हजारों सैनिक तैनात हैं। अगर चीन को भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने  की कोई चिंता होती तो वह पूर्वी लद्दाख से अपनी सेनाएं पूरी तरह से हटा लेता। धूर्त्त चीन पूर्वी लद्दाख में तनाव को ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा है कि जैसे कोई गम्भीर बात न हो। अमेरिका को भारत-चीन रिश्ते में दखल देने से दूर रहने की उसकी चेतावनी चोर मचाए शोर जैसी ही है।
चीन अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट से भी चिढ़ा बैठा है, जिसमें उसने कहा है कि चीन जिबूती में अपने सैन्य अड्डे का ​निर्माण कर चुका है और  इस अड्डे पर हिन्द महासागर क्षेत्र में विमानवाहक और पनडुब्बियां तैनात की जा सकती हैं। यह एक ऐेसा कदम है जिसका भारतीय नौसेना के लिए गहरा सुरक्षा खतरा हो सकता है। अमेरिकी रक्षा विभाग पैंटागन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन लगातार अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को बढ़ाने का काम कर रहा है और 2035 तक वह 1500 परमाणु हथियारों का जखीरा तैयार कर लेगा। मौजूदा समय में चीन के पास 400 परमाणु हथियार हैं। इस तरह चीन अगले 12 सालों में दोगुनी रफ्तार से काम करेगा।
उधर चीन में कोराेना महामारी की रोकथाम के लिए चल रही जीरो कोविड पाॅ​लिसी के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा और शी-जिनपिंग इस्तीफा दो के नारों के साथ सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। लोगों का आक्रोश उस समय भड़का जब एक इमारत में आग लगने से कई लोगों की मौत हो गई। लोगों का कहना है कि कड़े कोरोना नियमों के कारण इमारत में फंसे लोगों को बचाने के लिए बचाव कर्मी सही समय पर वहां नहीं पहुंच सके। लॉकडाउन के चलते इमारत को चारों तरफ से बंद कर दिया गया था। लोग इमारत से निकल ही नहीं पाए। दूसरा पहलू यह भी है कि कड़े लॉकडाउन के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को बहुत नुक्सान पहुंच चुका है। चीन में मध्यवर्ग की आबादी 2002 में 75 लाख के आसपास थी, जो आबादी का एक फीसदी हिस्सा था, वह आज बढ़कर 25 प्रतिशत तक हो चुका है। तकनीकी कम्पनी फॉक्सकॉन में दो लाख से अधिक लोग काम करते हैं, वहां भी सख्त कोविड नीति के कारण अस्थिरता पैदा हो गई। लोगों में बेचैनी और आक्रोश है। क्योंकि उन्हें खाने-पीने की वस्तुएं जुुटाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।
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यद्यपि लोगों के गुस्से को देखते हुए चीन ने लॉकडाउन में कुछ ढील दी है, लेकिन इतना तय है कि शी-जिनपिंग सत्ता विरोध को कुचलने के लिए दमनकारी नीतियां अपनाएंगे। लेकिन इस बार आक्रोश केवल छात्रों में ही नहीं बल्कि आम जनता में भी देखा गया। घरेलू परिस्थितियों को देखते हुए चीन की सत्ता तिलमिलाई हुई है और वह लोगों का ध्यान दूसरी तरफ करने के लिए भारत के साथ कोई आैर हरकत कर सकता है। भारत ने चीन की इस आपत्ति को भी दरकिनार कर दिया है कि भारत सीमाई क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाएं विकसित कर रहा है। सरकार का कहना है कि अपनी जमीन पर ऐसी परियोजना के निर्माण का हमें पूरा हक है और इसे कोई रोक नहीं सकता। चीन भी महसूस करता है कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है​ बल्कि यह 2022 वाला सशक्त भारत है, जो उससे आंख झुकाकर नहीं, बल्कि आंख में आंख डालकर बात कर सकता है। पूर्वी लद्दाख में उसे पहली बार भारत के ​कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इस समय भारत से पंगा उसे महंगा भी पड़ सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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