For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

सूखती झीलें प्यासा शहर

04:57 AM Mar 15, 2024 IST | Aakash Chopra
सूखती झीलें प्यासा शहर

भारत में ग्रीष्मकाल में जल संकट कोई नई बात नहीं है। देश के अनेक हिस्सों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है क्योंकि वर्षा अनियमित होने के कारण देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ जाती है, तो कहीं वर्षा न होने के कारण लोग पानी की बूंद-बूंद को तरसते हैं। भारत का आईटी हब कहा जाने वाला बेंगलुरु शहर इन दिनों हर रोज़ बीस करोड़ लीटर पानी की कमी झेल रहा है। लगभग डेढ़ करोड़ की आबादी वाले इस शहर के लिए कावेरी नदी से 145 करोड़ लीटर पानी 95 किलोमीटर का सफर तय करके कर्नाटक की राजधानी में लाया जाता है। समुद्र तल से करीब 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस शहर की जरूरत का शेष 60 करोड़ लीटर पानी बोरवेल के ज़रिए आता है। इस जल संकट की वजह बेंगलुरु शहर का गिरता हुआ भूजल स्तर है, जो दक्षिण-पश्चिम मॉनसून और उत्तर-पूर्वी मॉनसून कमजोर रहने की वजह से लगातार गिर रहा है।
कुछ वर्ष पहले दक्षिण अफ्रीका के शहर केपटाऊन में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई थी तब से ही यह आशंका व्यक्त की जाने लगी थी कि अगर महानगरों का जल प्रबंधन उचित ढंग से नहीं किया गया तो ऐसा ही संकट भारत के कई शहरों में भी उत्पन्न हो सकता है। चेन्नई में भी कई बार भीषण जल संकट देखा गया। दरअसल जलवायु परिवर्तन के चलते अनियमित वर्षा चक्र, शहरों की बढ़ती आबादी और दम तोड़ते बुनियादी ढांचे के चलते ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं। बेंगलुरु को झीलों का शहर इसलिए बनाया गया था ताकि इनका पानी शहर के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
बारिश में कमी की वजह से बेंगलुरु शहर का भूजल स्तर काफ़ी गिर गया है। वहीं, इन इलाक़ों के साथ-साथ शहर की कई झीलें सूख गयी हैं। इनमें से सिर्फ वही बच सकीं हैं जिन्हें बचाने के लिए सिविल सोसाइटी और एनजीओ ने आगे बढ़कर काम किया है। सिलीकॉन वैली की तरह बेंगलुरु के आईटी हब बनने के बाद दक्षिण बेंगलुरु में बहुमंजिला इमारतें बन गईं। नए-नए फाइव स्टार होटल बन गए। आवासीय कालोनियां विकसित हुईं और यहां रहने वाले लोगों की जीवन शैली काफी उच्च स्तरीय है। हाल ही के वर्षों में बेंगलुरु शहर में 110 गांवों को मिलाया गया। शहर का बुनियादी ढांचा इस सबको पानी देने में सक्षम नहीं है।
बेंगलुरु शहर में गर्मियों में तापमान असामान्य रूप से ज्यादा रहता है, जिसके कारण भी पानी की मांग बढ़ जाती है। बेंगलुरु की अत्यंत तेज़ वृद्धि के परिणामस्वरूप क्षेत्र के उन प्राकृतिक भूदृश्यों के कंक्रीटीकरण की स्थिति बनी है जो वर्षा जल को अवशोषित किया करते थे। भूदृश्यों के ऐसे कंक्रीटीकरण से भूजल पुनर्भरण कम हो जाता है और सतही अपवाह बढ़ जाता है, जिससे जल का मृदा के अंदर अंतःश्रवण कम हो जाता है। अब तोे हालात यह ह गए हैं कि बेंगलुरु के चिन्ना स्वामी स्टेडियम में होने वाले आईपीएल मैचों के आयोजन पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन ने हालांकि कहा है कि मैचों के आयोजनों पर कोई परेशानी नहीं है।
स्थानीय नागरिक जल की आपूर्ति के लिये बोरवेल पर निर्भर हैं। लेकिन वर्षा की कमी और अत्यधिक दोहन के कारण भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है, जिससे कई बोरवेल सूख गए हैं। कर्नाटक और पड़ोसी राज्यों के बीच जल बँटवारे पर जारी विवाद, विशेष रूप से कावेरी जैसी नदियों के संबंध में, बेंगलुरु के निवासियों के लिये जल संसाधनों के प्रबंधन तथा उन्हें सुरक्षित करने के प्रयासों को और जटिल बना देता है। कर्नाटक में सूखे की स्थिति से निपटने के लिये धन के वितरण एवं आवंटन को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच खींचतान जारी है।
कर्नाटक की इस खूबसूरत राजधानी जल संकट से निकालने के​लिए एकीकृत प्रयास करने होंगे। सरकारों और आमजनों को जल संचय के स्रोतों को जीवित करने पर ध्यान देना होगा। सरकार अगर प्रयास करे तो यह मुश्किल नहीं। प्रशासन को 2022 की बारिश से सबक लेकर जल संचय का इंतजाम करना होगा। 2022 में पूरे शहर को बारिश ने डूबा दिया था। वर्षा के जल को संचित करके इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aakash Chopra

View all posts

Advertisement
×