टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलसरकारी योजनाहेल्थ & लाइफस्टाइलट्रैवलवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

घरेलू बाजार पर आधारित बने अर्थव्यवस्था

गोविंदाचार्य ने संवाददाताओं से कहा कि भारत की आर्थिक नीतियां घरेलू उत्पादन और उपभोग के आधार पर बननी चाहिए। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) गणना को ही विकास समझ लेना सही नहीं है।

07:57 AM Sep 14, 2019 IST | Desk Team

गोविंदाचार्य ने संवाददाताओं से कहा कि भारत की आर्थिक नीतियां घरेलू उत्पादन और उपभोग के आधार पर बननी चाहिए। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) गणना को ही विकास समझ लेना सही नहीं है।

नई दिल्ली : जाने माने चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने आर्थिक मंदी की वर्तमान आहट के लिये 1991 की उदारीकरण की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए शुक्रवार को सरकार से नव-उदारवाद की नीतियों की समीक्षा करने की मांग की। गोविंदाचार्य ने संवाददाताओं से कहा कि भारत की आर्थिक नीतियां घरेलू उत्पादन और उपभोग के आधार पर बननी चाहिए। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) गणना को ही विकास समझ लेना सही नहीं है। 
उन्होंने कहा कि 1991 की आर्थिक नीतियों के कारण कृषि उत्पादों की मांग और पूर्ति में विसंगति बढ़ती गई और इसके कारण बेरोजगारी भी बढ़ी। यह पूछे जाने पर कि आर्थिक मंदी की वर्तमान आहट के लिये क्या वे मनमोहन सिंह की नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं, आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक रहे गोविंदाचार्य ने कहा कि  नहीं, मैं किसी को लक्ष्य करके बात नहीं कह रहा। 
उन्होंने कहा कि विकास की प्रकृति केंद्रित अवधारणा को अपनाना चाहिए और उपभोग पर आधारित जीडीपी आकलन के बजाए अंतिम व्यक्ति के हक और हित के साथ साथ प्रकृति संपोषण को विकास का आधार बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में जनसंख्या और जमीन का अनुपात अन्य विकसित देशों की तुलना में भिन्न है। ‘अगर हम अमेरिका के रास्ते पर चलेंगे तो देश के ब्राजील बनने का खतरा बना रहेगा ।’ 
गोविंदाचार्य ने कहा कि 2014 तक ब्राजील भी दुनिया की तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में शामिल था, लेकिन उसके बाद घोर मंदी का शिकार होता गया । उन्होंने कहा कि 1991 की नव-उदारवाद की नीतियों को लागू हुए करीब 30 वर्ष हो गए हैं, ऐसे में इन नीतियों की समीक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को कृषि उत्पादों पर आधारित उद्योगों पर ध्यान देना होगा तथा तिलहन उत्पादन और खाद्य प्रसंस्करण पर जोर देना होगा जिससे रोजगार का संकट भी दूर होगा।

Advertisement

Advertisement
Next Article