अर्थव्यवस्था : उम्मीदों भरी राह
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत में एक के बाद एक अच्छी खबरें मिल रही हैं। हमारे देश में नवरात्र फिर दीवापली और उसके बाद क्रिसमस। ये तीन महीने व्यापार के दृष्टिकोण से काफी अच्छे होते हैं।
12:25 AM Nov 04, 2020 IST | Aditya Chopra
Advertisement
Advertisement
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत में एक के बाद एक अच्छी खबरें मिल रही हैं। हमारे देश में नवरात्र फिर दीवापली और उसके बाद क्रिसमस। ये तीन महीने व्यापार के दृष्टिकोण से काफी अच्छे होते हैं। सीजन की बात करें तो एक शादियों का होता है दूसरा त्यौहारों का सीजन होता है। कोरोना वायरस के चलते शादियों का सीजन तो खामोशी से गुजर गया, अब दीपावली और क्रिसमस त्यौहारों का सीजन बचा है।
Advertisement
अब राहत की खबर यह है कि पिछले महीने अक्तूबर में जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपए ये ज्यादा हुआ जबकि 2019 में इसी अवधि में यह पांचनवें हजार तीन सौ उन्नासी करोड़ रुपए रहा था। सालाना हिसाब से इसमें दस प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई है।
एक और राहत भरी खबर यह है कि जहां एक ओर कोराेना वायरस के मामले बढ़ने से दुनिया के कई प्रमुख देशों में फिर से लॉकडाउन लगाया जा चुका है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस के प्रभाव से बाहर निकलती नजर आ रही है। आईएस मार्केट द्वारा संकलित विनिर्माण के आंकड़ों को देखें तो अक्तूबर में मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई 58.9 फीसदी रहा जो इस वर्ष सितम्बर में 56.8 फीसदी रहा था। अप्रैल-जून की तिमाही में आर्थिक विकास में 23.9 फीसदी संकुचन दर्ज करने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह भी काफी राहत भरी खबर है कि नए आर्डर और उत्पादन में वृद्धि हो रही है। वाहनों की बिक्री में काफी सकारात्मक सुधार दिखाई दे रहा है। इलैक्ट्रानिक्स और मोबाइल बिक्री में भी काफी सुधार हुआ है। पैट्रोल-डीजल की खपत भी कोरोना काल से पूर्व की स्थिति जितनी हो गई है। कोरोना की चुनौतियों के बीच एक ओर जहां भारत का आईटी उद्योग तेजी से बढ़ा है और लगातार आर्डर प्रवाह के कारण देश का आईटी उद्योग का लाभ एक दशक के रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुका है। इस वर्ष भारतीय आईटी सैक्टर की आय के 7.7 फीसदी बढ़कर करीब 191 अरब डालर तक पहुंचने का अनुमान है, जो 2025 तक 350 अरब डालर तक पहुंच सकती है। इस समय भारत दुनिया में आईटी सेवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है और भारत की दो सौ से अधिक आईटी फर्में दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में काम कर रही हैं, जिनके कर्मचारियों की संख्या लगभग 43 लाख से ज्यादा है।
वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय भी भारत से आउटसोर्सिंग, खासतौर से तकनीकी कार्यों के लिए, में तेजी आई थी। भारत में श्रम सस्ता होने से भी अउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला था। कोराेना काल में एक बार फिर भारत का आईटी उद्योग न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में कारोबार आैर स्वास्थ्य सेवाओं को गतिशील बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कोरोना काल में आईटी कम्पनियों ने नए डिजिटल अवसर सृजित कर दिए हैं। दुनिया में ज्यादातर कारोबारी गतिविधियां आॅनलाइन हो गई हैं। वर्क फ्राम होम ने नई कार्य संस्कृति पैदा कर दी है और इसकी स्वीकार्यता से आउटसोर्सिंग बढ़ रही है।
रोजगार के आंकड़ों में कोई सुधार फिलहाल नजर नहीं आ रहा और बैंकिंग सैक्टर की चुनौतियां पहले से कहीं अधिक गम्भीर हुई हैं। देश में कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए इस वर्ष मार्च के अंतिम हफ्ते से दो महीने तक के लिए देशभर में लॉकडाउन लागू किया गया था। इस कारण छोटे-बड़े उद्योग धंधे बंद हो गए और करोड़ों का काम छिन गया। लोगों के सामने पैसे का संकट खड़ा हो गया। लॉकडाउन की वजह से मांग, उत्पादन और खपत का पूरा सर्किल ही ध्वस्त हो गया। अब सरकार ने बैंकों से लिए गए ऋण पर ब्याज दर ब्याज माफ कर दिया है। बैंकों को यह आदेश मानना ही पड़ेगा लेकिन इससे बैंकों की सेहत पर असर जरूर पड़ेगा। यह असर बैंकों की बैलेंस शीट पर भी दिखेगा। छोटे-बड़े व्यापारियों को बैंकों से उम्मीद रहती है। अगर बैंकों का मुनाफा कम हुआ, उनकी पूंजी घटी तो फिर ऋण सहजता के साथ दिए नहीं जा सकते।
औद्योगिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए लॉकडाउन में चरणबद्ध तरीके से ढील दी गई और समय-समय पर सरकार ने राहत और प्रोत्साहन पैकेज भी दिए हैं, जिसका असर अब दिखाई देने लगा है। यद्यपि छोटे और मझौले उद्योग अब भी संकट में हैं। जीएसटी हो या फिर अन्य टैक्स, सरकार को राजस्व तभी मिलेगा जब आर्थिक गतिविधियां सामान्य रूप से चलती रहें। जीएसटी का कर संग्रह बढ़ेगा तो सरकार की आय बढ़ेगी और राज्यों को भी उनके हिस्से का पैसा समय पर मिलेगा। कोरोना के चलते कई राज्य जीएसटी में अपना हिस्सा नहीं मिलने के कारण संकट में फंस गए थे तो केन्द्र सरकार को उनकी भरपाई के लिए बाजार से ऋण लेने की व्यवस्था करनी पड़ी।
भारत में कृषि सैक्टर ने कोरोना काल में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह सैक्टर जितना मजबूती के साथ खड़ा रहा, उतना कोई भी सैक्टर प्रदर्शन नहीं कर सका। उम्मीद की जानी चाहिए कि त्यौहारी सीजन में मांग और उत्पादन बढ़ने का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा तो अर्थव्यवस्था पटरी पर दौड़ने लगेगी। नए रोजगार के अवसर पैदा हों, उत्पादन बढ़ाने के लिए नियोक्ताओं को छंटनी किए मजदूर फिर से वापस बुलाने पड़ें, लोगों की जेब में पैसा आए तभी बाजार गुलजार होंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement

Join Channel