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भारत का अर्थतंत्र

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय एजैंसियां पहले ही यह अनुमान जता चुकी हैं कि विश्व में आर्थिक मंदी का दौर आने वाला है।

01:55 AM Oct 13, 2022 IST | Aditya Chopra

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय एजैंसियां पहले ही यह अनुमान जता चुकी हैं कि विश्व में आर्थिक मंदी का दौर आने वाला है।

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय एजैंसियां पहले ही यह अनुमान जता चुकी हैं कि विश्व में आर्थिक मंदी का दौर आने वाला है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन ने हाल ही में अनुमान जताया था कि अगले चार वर्षों में विश्व अर्थव्यवस्था में चार लाख करोड़ डालर की गिरावट आ सकती है और दुनिया की अर्थव्यवस्था लुड़कते हुए ही आगे बढ़ेगी। विश्व व्यापार संगठन ने भी आने  वाले दिनों में व्यापार की गति घटने और अगले वर्ष इसकी रफ्तार और भी धीमी होने का अनुमान जताया था। अब अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2022 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को हटाकर 8.8 फीसदी कर दिया है। इसके पहले जुलाई में आईएमएफ ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.4 रहने का अनुमान व्यक्त किया था, लेकिन भारत के​ लिए राहत की बात यह है कि जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाए जाने के बावजूद भारत सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। आईएमएफ ने यह भी कहा है कि दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका, चीन और यूरो एरिया की ग्रोथ रेट 2022 में सुस्त बनी रहेगी। अर्थशा​​​स्त्रियों का कहना है कि भारत ने दक्षिण एशिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले काफी अच्छा काम किया है। विश्व बैंक के दक्षिण एशिया में उसके मुख्य अर्थशास्त्री हांस टिम्मर ने  भी कहा है कि भारत में विशेषकर सैंट्रल बैंक के पास काफी रिजर्व है, जो कि काफी मददगार साबित होगा।
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उन्होंने कोविड-19 संकट को सम्भालने के लिए भारत सरकार की सराहना भी की। भारत की अर्थव्यवस्था और  विकास की रफ्तार को देखा जाए तो भारत का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा है। अगले वर्ष तक कुछ क्षेत्रीय कारणों के चलते फसलों के कम उत्पाद से खाद्य कीमतों पर असर पड़ सकता है। भारत ने आर्थिक सुधारों को लगातार जारी रखा है और भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका के लिए तैयार है। मंदी की मार से बचने के ​लिए अमेरिका सहित तमाम विकसित देशों ने अपने यहां ब्याज दरों आदि के मामले में कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। मगर महंगाई और नए रोजगार सृजन करने के मामले में चुनौतियां सबके सामने खड़ी हैं। ऐसा नहीं है कि भारत के सामने चुनौतियां नहीं हैं। कच्चे तेल, दवाओं के लिए रसायन और कई अन्य चीजों के ​लिए  भारत दूसरे देशों पर निर्भर है। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में लगातार गई रावट बने रहने से विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार बने रहने के पीछे कई कारण हैं। कोरोना महामारी से उभरने के बाद यद्यपि हमने घरेलू और वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव देखे लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था के लगातार पटरी पर आने के संकेत मिलते रहे। सितम्बर माह में जीएसटी का कुल संग्रहण 1,47,686 करोड़ रुपए हुआ जो पिछले वर्ष इसी महीने के संग्रहण से 26 प्रतिशत ज्यादा है। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से इशारा करते हैं कि आर्थिक और औद्यो​िगक मोर्चे पर भारत लगातार बढ़ रहा है। 
इसके अलावा लगभग पांच महीने उत्सवों का मौसम रहेगा तथा इसी अवधि में नई फसलों की आमद भी बाजार में होगी। खरीद-बिक्री बढ़ने से बाजार को भी हौसला मिलेगा तथा मुद्रास्फीति में राहत की उम्मीद भी है। जीएसटी संग्रहण प्रक्रिया के बेहतर हो जाने तथा कराधान के सहज व पारदर्शी होने का लाभ सभी को मिल रहा है। एक ओर  संग्रहण बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर कारोबारियों को भी सहूलियत हो रही है। सुधारों का सकारात्मक असर प्रत्यक्ष करों के संग्रहण पर दिख रहा है।
​पिछले माह केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने जानकारी दी थी कि कुल प्रत्यक्ष कर संग्रहण में बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बिना आर्थिक गतिविधियों में बढ़ौतरी तथा अधिक आमदनी के इतना बड़ा संग्रहण सम्भव नहीं है। प्रत्यक्ष करों में कार्पोरेट टैक्स और व्यक्तिगत आयकर (प्रतिभूमि लेन-देन समेत) शामिल है। जैसा कि अनेक विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है, करों के अधिक संग्रहण में वृद्धि में आयात बढ़ने तथा महंगाई का भी योगदान है। इन कारकों के पीछे वैश्विक हलचलों की भी भूमिका है। सरकार भारत में उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है तथा रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के ठोस उपाय किए हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचलों के कारण वर्तमान वित्तीय वर्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट की आशंका के बावजूद इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि इस वर्ष निवेश का आंकड़ा 100 अरब डालर तक पहुंच जाएगा। वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 अरब डालर की विदेशी पूंजी भारत में निवेश हुई थी जो अब तक सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है। यह ​​निवेश 101 देशों से आया था। इसका अर्थ यही है कि कई देशों के निवेशक भारत को एक विश्वस्त निवेश स्थल के रूप में स्वीकार कर रहे हैं। कई उद्योगों ने चीन को छोड़ कर अन्य देशों की ओर रुख किया है, जिनमें भारत भी है। भारत एक बड़ा बाजार तो पहले से ही है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के तहत आर्थिक विकास की दिशा में नए आयाम जुड़ने लगे हैं। भारत का निर्यात बढ़ा है और  इस वर्ष इसके 500 अरब डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। अर्थव्यवस्था में उत्साहजनक वृद्धि तथा बढ़ते निर्यात ने वैश्विक निवेशकों का ध्यान भारत की ओर खींचा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के दबाव के बावजूद तेल एवं ऊर्जा मामले में मोदी सरकार ने भारतीय हितों की रक्षा की है। अर्थव्यवस्था के सभी तत्व बेहतर हैं इसलिए  तमाम चुनौतियों के बावजूद हिन्दुस्तानी होंगे सबसे आगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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